'प्रवर्तकों को अपनाना चाहिए लचीला रुख' | |
सुदीप्त दे / 04 22, 2018 | | | | |
पूर्व केंद्रीय विधि सचिव टीके विश्वनाथ दिवालिया कानून सुधार समिति के चेयरमैन और दिवालिया कानून समिति के सदस्य के रूप में ऋणशोधन एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के एक प्रमुख शिल्पकार रहे हैं। दिवालिया कानून समिति ने हाल में संहिता की समीक्षा की है। उन्होंने सुदीप्त दे के साथ एक साक्षात्कार में संहिता को लागू करने में आ रही चुनौतियों के बारे में अपनी राय साझा की। बातचीत के अंश:
संहिता की समीक्षा की जरूरत पर आपका क्या कहना है?
ऋणशोधन एवं दिवालिया संहिता भागीदारों के साथ लंबे विचार-विमर्श के बाद तैयार की गई है और यह वैश्विक स्तर के कानून के अनुरूप है। हम एक रिकॉर्ड समय में कानून बनाने और इसे लागू करने में सफल रहे हैं। हालांकि संहिता का मकसद उद्यमों को बेचना नहीं है। इसमें उद्यमों को उबारने पर ध्यान दिया गया है। इसका मकसद एक मजबूत ऋण बाजार बनाए रखना है। जब आप ऐसी कोई संहिता बनाते हैं तो यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि इसे लागू करने में कैसी दिक्कतें आएंगी। शुरुआत में हमने कई मुद्दों पर विचार नहीं किया। इनमें से एक यह है कि कौन बोली लगाएगा और कौन नहीं। हमने सोचा था ये फैसले ऋणदाताओं की समिति लेगी। हमारा मानना था कि समिति संप्रभु हैं और यह जानती हैं कि कंपनी को उबारने के लिए सबसे बेहतर तरीका क्या है। हमने यह सोचा था कि उनका फैसला अंतिम होगा और इस पर अदालत में सवाल नहीं उठाया जाएगा। लेकिन समस्या यह है कि बैंक अधिकारी फैसले लेने में सक्षम नहीं हैं, उनमें आत्मविश्वास का अभाव है। इस वजह से हमें धारा 29ए के तहत कुछ प्रावधान शामिल करने पड़े, जिनकी वजह से मुकदमे भी हो रहे हैं। इस धारा के तहत बोलीदाताओं पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं। हम इस सब से बचना चाहते थे और इन्हें ऋणदाताओं की समिति पर छोडऩा चाहते थे। हालांकि लोगों की शिकायतें दूर करने के लिए इस संहिता की समीक्षा करना जरूरी था।
फ्लैट मालिकों की चिंताओं को दूर करने पर आप क्या कहेंगे?
फ्लैट मालिकों का मामला एक अस्थायी समस्या है। यह लंबे समय तक नहीं बनी रहेगी। हम उन सभी दिक्कतों का अनुमान नहीं लगा सकते, जो हमारे सामने आएंगी। यह समस्या भारत में रियल एस्टेट बाजार की कमजोर स्थिति की वजह से आई। हमने ऋणदाताओं की समिति और पुनर्वास योजना में घर खरीदारों को भी प्रतिनिधित्व दिया है। हमारा मानना है कि आने वाले समय में रियल एस्टेट रेग्यूलेटरी अथॉरिटी (रेरा) इन दिक्कतों से प्रभावी तरीके से निपटने में सक्षम होगी।
प्रवर्तकों का अपने कारोबार से भावनात्मक जुड़ाव कैसे संहिता में बाधक बन रहा है?
किसी कारोबार पर नियंत्रण दैवीय नहीं है। प्रवर्तक भावुक होते हैं और अपने कारोबार से लगाव रखते हैं। अब उन्हें अपने उद्यम को छोडऩा और ज्यादा लचीला बनना सीखना चाहिए। उस उद्यम का बने रहना ज्यादा जरूरी है। अगर कोई उद्यम ठीक से चलता है तो इसका समाज को फायदा मिलता है। यह मायने नहीं रखता कि कौन प्रवर्तक है। हमने यह मुख्य संदेश संहिता में देने की कोशिश की है।
सीमापार दिवालिया प्रावधानों की मौजूदगी से नीरव मोदी मामले में कैसे मदद मिलती?
मेरा मानना है कि हमें सीमा पार दिवालिया कानून के लिए यूनिसिट्रल मॉडल कानून को अपनाना चाहिए। इससे भारत को अन्य विदेशी अदालतों के साथ संवाद करने के लिए एक मंच मिलेगा। नीरव मोदी मामले में अमेरिका की एक अदालत ने भारत समेत सभी विदेशी अदालतों के खिलाफ यह निषेधाज्ञा जारी की है कि वे उसकी संपत्तियों की बिक्री को मंजूरी नहीं देंगे। अगर हम यूनिसिट्रल मॉडल कानून का हिस्सा होते तो वे ऐसा कोई आदेश जारी नहीं कर सकते थे। इससे भारतीय अदालतों को वरीयता मिलती क्योंकि उसका कारोबार भारत में होने के चलते सीमा पार दिवालिया कानून में भारत मुख्य केंद्र होता। इससे हम न्यायिक सहयोग समझौते का भी हिस्सा होते। इस समझौते में शामिल देशों की दिवालिया अदालतें संयुक्त रूप से सीमापार मुद्दों को हल करती हैं। अगर कानून सही स्थिति में है तो हम वर्तमान मामलों में भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि ये प्रक्रिया से संबंधित मसले हैं।
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