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इंदिवजल धस्माना और अरिहन जैन / नई दिल्ली 01 01, 2017 | | | | |
आगामी बजट कई मायनों में अहम है। एक तो यह मोदी सरकार के कार्यकाल के लगभग मध्य में पेश होने जा रहा है। वहीं पिछले साल नवंबर में नोटबंदी के असर से निपटने का जिम्मा भी बजट के सिर है। कई अहम राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार के लिए सियासी समीकरण साधना भी उतना ही अहम है। ऐसे में नोटबंदी के प्रभाव, राजकोषीय सुधार और अपनी राजनीतिक संभावनाओं के लिए आखिर सरकार को कौनसे कदम उठाने की होगी दरकार? बता रहे हैं इंदिवजल धस्माना और अरिहन जैन
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वर्ष2017-18 का बजट नरेंद्र मोदी सरकार के लिए काफी अहम है। अपने कार्यकाल का आधा सफर पूरा कर चुकी मोदी सरकार लोकलुभावन और वोट दिलावन की ओर कदम बढ़ा सकती है। नववर्ष की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह राहत की सौगात दी, वह संकेत है कि बजट का तानाबाना कैसा होगा। भारत की अर्थव्यवस्था भले ही दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रही हो, मगर रोजगार पैदा करने और निजी निवेश के मामले में वह ठिठकी हुई है। इतना ही नहीं नोटबंदी (विमुद्रीकरण) की जो चोट अर्थव्यवस्था को लगी है, उस पर मरहम का उपाय भी इस बजट में किया जा सकता है। कारण कि इस साल देश के सात राज्यों में चुनाव हैं। इनमें उत्तर प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव भाजपा सरकार के लिए नाक का सवाल हैं। इनमें हार का मतलब होगा, 2019 में दिल्ली दूर हो जाना।
लिहाजा सरकार अर्थ के साथ जन का कुछ ज्यादा ही खयाल रख सकती है। यह खयाल तमाम तरह की राहत और खैरात के रुप में सामने आ सकता है। जनता की सुध लेने के लिए सरकार के पास पर्याप्त धन और संसाधन मौजूद हैं। अगर कोई कसर रहेगी तो वह राजकोषीय घाटा बढ़ाकर पूरा कर लेगी। यानी उसे पैसों को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं रहेगी। इसलिए वह गांव और कृषि के साथ-साथ रोजगार देने वाले छोटे कारोबारों को नजराना दे सकती है। मध्यवर्ग की मिजाजपुर्सी कर सकती है।
इस वित्त वर्ष में कालेधन की स्वैच्छिक घोषणा योजना से सरकार को धन तो मिला मगर वह उम्मीद के मुताबिक कामयाब नहीं रही। अब नोटबंदी के बाद सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना अथवा आय घोषणा योजना (आईडीएस-2) लाई है। इससे अगर ठीक-ठाक राजस्व मिल गया तो उसकी पौ-बारह है। जिस तरह से नकदी रहित लेनदेन को बढ़ावा दिया गया है, उससे भी सरकार की आय बढ़ेगी। आईडीएस-2 से मिलने वाले पैसों का इस्तेमाल राजकोषीय घाटे को पाटने में किया जा सकता है। चालू वित्त वर्ष में यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.5 फीसदी के दायरे में है। ई-लेनदेन के चलते बढ़े कर दायरे का इस्तेमाल आम आदमी को कर राहत देने और विभिन्न पात्रता योजनाओं में आवंटन बढ़ाने में किया जा सकता है, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह संभव है।
सरकार ने कुछ राहत भरे कदमों का ऐलान पहले ही कर दिया है। बजट में इसका विस्तार करके आंवटन बढ़ाया जा सकता है। लेकिन नोटबंदी के कारण सरकार को कितना धन और मिलेगा, इसका जिक्र बजट में होगा। ऐसे में वेतनभोगी वर्ग को आयकर में राहत, ग्रामीण आबादी को सुकून, कृषि और छोटे एवं मझोले उद्यमों को मदद जैसे कदम देखने को मिल सकते हैं। प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र का आवंटन भी बढ़ाया जा सकता है।
काफी उम्मीद है कि बजट में आयकर छूट की मौजूदा सीमा 2.5 लाख रुपये से बढ़ाई जा सकती है। वैसे इस बारे में कोई ठोस अनुमान नहीं है कि यह बढ़ोतरी कितनी होगी? हालांकि आयकर दरों के 10, 20 और 30 फीसदी के स्तर पर बरकरार रहने की संभावना है लेकिन कर श्रेणियों का दायरा बढ़ाया जा सकता है। फिलहाल 2.5 लाख रुपये से 5 लाख रुपये तक की आय पर 10 फीसदी कर लगता है जबकि 10 लाख रुपये तक की आय पर 20 फीसदी और 10 लाख रुपये से ऊपर की आय पर 30 फीसदी की दर से कर लगता है।
आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत आयकर बचत का दायरा भी मौजूदा 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये किया जा सकता है। फिलहाल 1.5 लाख रुपये के अलावा राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) में 50,000 रुपये तक की राशि पर कर छूट हासिल है। सस्ते घरों को बढ़ावा देने के लिए आवास ऋण की मद में ज्यादा कर राहत दी जा सकती है।
विपक्षी दल जहां बजट घोषणाओं का यह कहकर विरोध कर सकते हैं कि यह मतदाताओं को लुभाने का प्रयास है। उत्तर प्रदेश जैसे अहम राज्य सहित पांच प्रदेशों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को देखते हुए इसे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन भी करार दिया जा सकता है। इन राज्यों में फरवरी से लेकर मार्च तक चुनाव होंगे। इसमें पेच यह है कि बजट पेश होने के तीन दिन बाद ही 4 फरवरी को पहले चरण का चुनाव है। विपक्षी दलों ने बजट टालने की मांग करते हुए इसे चुनाव बाद पेश करने को कहा है जबकि वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि बजट संवैधानिक कवायद है, जो आचार संहिता के दायरे में नहीं आती।
बहरहाल बजट सत्र और बजट को सदन में पेश करने का काम वर्ष 2012-13 में राज्य विधानसभा चुनावों के कारण आगे टाल दिया गया था। बजट सत्र की शुरुआत 12 मार्च को हुई थी और आम बजट 16 मार्च को पेश किया गया था। सामान्य तौर पर बजट सत्र 20 फरवरी के आसपास शुरू होता है और 28 फरवरी को बजट पेश किया जाता रहा है। अगर चुनाव के चलते पहले बनी योजना बदली नहीं गई तो इस बार बजट 1 फरवरी को निर्धारित तिथि पर ही पेश होगा।
सरकार के पास यह पहला मौका है जब बजट में इतने सारे बदलाव किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए रेल बजट का आम बजट में विलय, योजनागत और गैर योजनागत व्यय को राजस्व और पूंजीगत व्यय से बदलना और बजट कवायद को एक महीने पहले खिसकाना।
आम बजट में डिजिटलीकरण अहम थीम हो सकती है। सरकार पहले ही डिजिटल तरीके अपनाने वालों के लिए कई तरह की रियायतों, कर छूट और प्रोत्साहन की घोषणा कर चुकी है। छोटे कारोबारियों और कंपनियों को भी 2 फीसदी की छूट दी जा रही है बशर्ते कि वे नकद रहित लेनदेन करें। अगर इन कारोबारियों का सालाना कारोबार 2 करोड़ रुपये तक है तो इससे उन्हें कर के रूप में 46 फीसदी तक की बचत होगी। बजट में ग्रामीण इलाकों पर आधारित योजनाओं के लिए आवंटन बढ़ सकता है। इनमें बुनियादी विकास, स्वास्थ्य और रोजगार के अलावा निर्माण गतिविधियां शामिल हैं। एक वरिष्ठï अफसर कहते हैं कि सरकार ने नोटबंदी की तकलीफ के बाद ऐसा बजट तैयार करने की योजना बनाई है, जो राहत लेकर आए। सरकार यह भी नहीं चाहती कि संप्रग की किसान कर्ज माफी जैसी योजनाओं का अनुसरण किया जाए।
आगामी बजट में ग्रामीण इलाकों को होने वाले कुल आवंटन में 23 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। अब यह पहले अनुमानित 86,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 1.06 लाख करोड़ रुपये हो सकता है। बजट में ऐसी नई योजनाएं भी आ सकती हैं, जो गांव में लोगों को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकालें। बजट में ग्रामीण विकास पर ध्यान देकर गांवों में नोटबंदी का असर कम किया जा सकता है।
वरिष्ठï अधिकारियों के मुताबिक अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो ग्रामीण विकास मंत्रालय की सभी प्रमुख योजनाओं के आवंटन में इजाफा किया जा सकता है। इनमें मनरेगा शीर्ष पर होगी। मनरेगा के तहत कुछ और काम भी जोड़े जा सकते हैं। बजट में 'मिशन अंत्योदय' नाम से नई योजना आ सकती है। मिशन अंत्योदय का लक्ष्य एक निश्चित अवधि में एक करोड़ घरों को गरीबी से मुक्त करना है। यह काम गरीबी को 36 मानकों पर लगातार आंकते हुए किया जाएगा। अधिकारियों के मुताबिक मनरेगा जैसी प्रमुख योजना के लिए वर्ष 2017-18 में मनरेगा के तहत कुल 38,500 करोड़ रुपये की जरूरत हो सकती है। हालांकि इस वित्त वर्ष में मनरेगा के मद में अब तक का सबसे बड़ा आवंटन किया गया था।
ग्रामीण विकास के तीन और कार्यक्रम अधिक धन पा सकते हैं। जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के मद में इस बजट में 3,500 करोड़ रुपये का इजाफा किया जा सकता है तो प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का बजट भी बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये हो सकता है। सरकार का लक्ष्य सबको घर मुहैया कराना है। खुद प्रधानमंत्री ने हाल में राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में इस योजना के तहत कई रियायतों की घोषणा की है। उम्मीद है कि बजट में इनको अमलीजामा पहनाया जा सकता है। पिछले साल इस योजना के तहत 15,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। ग्रामीण इलाकों की सड़कों के निर्माण से संबंधित योजनाओं को भी ज्यादा धन मिलेगा। यह भी सरकार की प्राथमिकता में है। केंद्र सरकार पहले ही यह कह चुकी है कि ग्रामीण इलाकों में सड़क विकास योजना में 81,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जाएगी। इसमें राज्य का हिस्सा भी शामिल होगा। उसकी योजना अगले तीन साल के दौरान 500 से कम की आबादी वाले इलाकों को संपर्क मार्ग से जोड़ना है।
अर्थव्यवस्था की दिक्कत यह है कि इसमें निजी निवेश नहीं बढ़ रहा और इसमें कमी भी आ रही है। ऐसे में सरकार पर ज्यादा जिम्मेदारी आ गई है। वह सार्वजनिक खर्च बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को गति दे सकती है। खर्च का यह रास्ता कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से होकर गुजरता है। उसके पास आवंटन बढ़ाने और खर्च करने की गुंजाइश है। मगर इसके साथ ही राजकोषीय घाटे को अगले वित्त वर्ष में 3 फीसदी तक सीमित रखने की चुनौती भी है। यह चुनौती उसकी राह में रोड़ा बन सकती है। लेकिन एन के सिंह की अध्यक्षता वाले एफआरबीएम पैनल की मदद से सरकार इसे 3.5 फीसदी तक ले जा सकती है।
चालू वित्त वर्ष का राजकोषीय घाटा पहले ही आठ माह के दौरान बजट अनुमान की 86 फीसदी सीमा पार कर चुका है। फिर भी उम्मीद यही है कि सरकार अपने राजकोषीय लक्ष्य को साध लेगी। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना अथवा आईडीएस-2 तथा कालेधन पर सख्ती और छापे अग्रिम कर संग्रह की भरपाई कर देंगे और सरकार अपना लक्ष्य हासिल कर लेगी।
यह अलग बात है कि आईडीएस-1 योजना अनुमानित कर प्राप्ति पर खरी नहीं उतरी। इससे 30 नवंबर तक 7,500 करोड़ रुपये मिलने की सरकार की उम्मीद टूट गई। पहले अनुमान था कि 67,382 करोड़ रुपये मिलेंगे लेकिन अब शायद 60,000 करोड़ रुपये से कम ही मिलें। नोटबंदी की कवायद ने अग्रिम कर संग्रह को प्रभावित किया है। दैनिक उपयोग की वस्तुएं बनाने वाली कुछ कंपनियों और बैंकों के सालाना अग्रिम कर में गिरावट आई है। कुल मिलाकर 43 कंपनियों का अग्रिम कर आंकड़ा 10.1 फीसदी बढ़कर 27,322 करोड़ रुपये हुआ है। ये कंपनियां अग्रिम कर भुगतान के मामले में शीर्ष 100 कंपनियों में आती हैं। अगर आरआईएल और तीन तेल कंपनियां भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और इंडियन ऑयल इसमें नहीं होतीं तो तस्वीर अधिक धुंधली नजर आती। इन चारों कंपनियों को निकाल दिया जाए तो शेष 39 कंपनियों का अग्रिम कर भुगतान महज 3.7 फीसदी रहा।
एक प्रमुख अर्थशास्त्री का कहना है कि अग्रिम कर का आंकड़ा लोगों के नई आईडीएस योजना में घोषित आयकर की तुलना के लिहाज से अभी तक तो ज्यादा है। नोटबंदी ने नवंबर में अप्रत्यक्ष कर संग्रह को भी प्रभावित किया है। मगर सरकार के अतिरिक्त राजस्व उपायों के कारण यह बहुत ज्यादा रहा। ईंधन पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने और सेवा कर में इजाफा ऐसे ही उपाय हैं।
कुल मिलाकर वर्ष के पहले आठ महीनों में अप्रत्यक्ष कर संग्रह पिछले वर्ष की इस अवधि की तुलना में 26 फीसदी बढ़कर 5.52 लाख करोड़ रुपये रहा। पहले अनुमान था कि यह वृद्धि 10.80 फीसदी रहेगी। अगर अतिरिक्त राजस्व उपायों की बात की जाए तो उनके बिना अप्रत्यक्ष कर संग्रह में होने वाला इजाफा अप्रैल से नवंबर के बीच 8 फीसदी रहा। एक अर्थशास्त्री के अनुासर राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल हो जाएगा। अप्रत्यक्ष कर संग्रह की स्थिति अब तक ठीक है और राजकोषीय लक्ष्य पर कोई प्रत्यक्ष खतरा नहीं दिखता है।'
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी कहते हैं कि पिछले वित्त वर्ष के उलट राजकोषीय घाटे का लक्ष्य इस वर्ष बड़ी समस्या नहीं लगता। उन्होंने कहा कि जनवरी से मार्च तिमाही में अप्रत्यक्ष कर में कुछ कम बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। इसका प्रमुख कारण नोटबंदी के कारण धीमी आर्थिक गतिविधियां हैं। कुल मिलाकर नोटबंदी के वक्त राजकोषीय संसाधनों को बढ़ावा देना नीति निर्माताओं का लक्ष्य नहीं था परंतु बाद में भी इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है।
सांकेतिक मानकों पर जीडीपी की वृद्धि दर में कमी आएगी तो राजकोषीय घाटे का लक्ष्य भी जीडीपी के 3.5 फीसदी के स्तर पर नहीं रहेगा। इससे सरकार की दिक्कतें बढ़ेंगी। बजट में अनुमान लगाया गया था कि जीडीपी 11 फीसदी की दर से बढ़कर 150.65 लाख करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंच जाएगा। जीडीपी के 3.5 फीसदी के स्तर के हिसाब से राजकोषीय घाटे का स्तर 5.33 लाख करोड़ रुपये होगा। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सांकेतिक जीडीपी 71.48 लाख करोड़ रुपये बढ़ा। यह बढ़ोतरी 11.3 फीसदी रही। मगर दूसरी छमाही में नोटबंदी का दबाव रह सकता है और जीडीपी की वृद्धि दर गिर सकती है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक, सेवा और विनिर्माण के लिए परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स से लेकर वस्तु निर्यात आदि इसी ओर संकेत कर रहे हैं। हालांकि जीडीपी के अग्रिम अनुमान के आंकड़ों में अर्थव्यवस्था के आकार में बढ़ोतरी का दावा किया गया है लेकिन अंतिम आंकड़ों में मुमकिन है कि यह कम ही रहे।
नवंबर तक राजकोषीय घाटा वर्ष 2016-17 के बजट अनुमान के 86 फीसदी तक पहुंच चुका था। पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह लगभग 87 फीसदी था। इस बीच यह भी देखा जाना चाहिए कि अक्तूबर तक यह आंकड़ा 73.9 फीसदी था। पिछले वर्ष गैर कर राजस्व और अप्रत्यक्ष कर ने प्रत्यक्ष कर की कमी की भरपाई की थी। वहीं इस वर्ष नोटबंदी के चलते प्रत्यक्ष कर के लक्ष्य हासिल हो सके और अगले साल के लिए उन्हें संशोधित भी नहीं किया गया।
स्पेक्ट्रम की नीलामी और विनिवेश लक्ष्य के रूप में दो बातें और सामने आईं। स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए 64,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य तय किया गया है। लेकिन अब तक हुई नीलामी के बाद केंद्र सरकार को आधी रकम मिलेगी। विनिवेश के लिए 56,500 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया था। इसमें 20,500 करोड़ रुपये का लक्ष्य अल्पांश हिस्सेदारी और पुनर्खरीद जैसी रणनीतिक बिक्री से जुड़ा था। मगर इसमें केवल सामान्य बिक्री ही सफल हुई है। अभी तक इसमें करीब 20,000 करोड़ रुपये की प्राप्तियां हासिल हुईं। ऐसे में रणनीतिक बिक्री गतिविधियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके बाद ही विनिवेश के आंकड़ों में सुधार हो सकता है।
गैर कर राजस्व के मोर्चे पर केंद्र सरकार को सरकारी कंपनियों के अलावा बैंकों और आरबीआई से मिलने वाले लाभांश पर निर्भर रहना होगा ताकि अंतर को पाटा जा सके। पीएसयू से मिलने वाला लाभांश 53,833 करोड़ रुपये तक हो सकता है। यह पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान से 22 फीसदी अधिक है। बैंकों और आरबीआई का लाभांश करीब 70,000 करोड़ रुपये अनुमानित है, जो गत वर्ष से 4,000 करोड़ रुपये कम है। अगर इनमें से किसी में भी कोई कमी होती है तो केंद्र सरकार को खर्च में कटौती करनी होगी। वित्त मंत्री पहले ही यह अनुमान लगा चुके हैं कि रक्षा क्षेत्र के पूंजीगत बजट से 10,000 से 12,000 करोड़ रुपये तक की बचत होगी। देखा जाए तो नरेंद्र मोदी सरकार ने सरकारी पेंशन, बुनियादी और ग्रामीण योजनाओं में होने वाले खर्च में भारी इजाफा किया है। केंद्र सरकार से उम्मीद है कि वह इस वर्ष पूंजीगत व्यय में 2.47 लाख करोड़ रुपये की राशि खर्च करेगी। वेतन आयोग और उच्च सैन्य पेंशन में 85,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि लग सकती है।
अगर व्यय की बात करें तो केंद्र ने वर्ष 2016-17 के राजकोषीय घाटे का जो गुणाभाग किया, वह काफी हद तक सब्सिडी में किए जाने वाले व्यय को समेटे रहा। खाद्य सब्सिडी की मद में सरकार ने करीब 1,35,000 करोड़ रुपये आवंटित किए। अधिकारियों के मुताबिक अगर अनुमान के मुताबिक आकलन किया जाए तो वर्ष 2016-17 में खाद्य सब्सिडी 1,40,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है। अगर केंद्र बकाया खाद्य सब्सिडी को राष्ट्रीय अल्प बचत कोष (एनसीएसएसएफ) में समायोजित करता है तो भारतीय खाद्य निगम को वर्ष 2016-17 में 9,000 करोड़ रुपये का ब्याज बोझ उठाना पड़ेगा। वर्ष 2016-17 से लेकर पांच वर्ष की अवधि में एफसीआई के 50,000 करोड़ रुपये के बकाया को खत्म करने के लिए एनसीएसएसएफ कोष में 45,000 करोड़ रुपये तक की कमी करनी पड़ सकती है। कच्चे तेल की बात करें तो अधिकांश विशेषज्ञों और विश्लेषकों का कहना है कि वर्ष 2016-17 के बजट में तेल सब्सिडी की मद में 26,000 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया गया था। हालांकि इसमें बहुत अधिक इजाफा होने की संभावना नहीं है क्योंकि चालू वित्त वर्ष में मुख्यत: कच्चे तेल की कीमतें नरम ही बनी रहीं।
उर्वरक सब्सिडी का बजट अनुमान 75,000 करोड़ रुपये है। इसके बावजूद उर्वरक मंत्रालय ने पहले ही 25,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त मांग कर दी है ताकि वह बकाया निपटा सके। उर्वरक उद्योग के बड़े कारोबारियों को लगता है कि मार्च में वित्त वर्ष समाप्त होने तक उनके बकाये का आंकड़ा 40,000 करोड़ रुपये तक हो जाएगा जो पिछले वर्ष से थोड़ा कम है। यह कमी गैस की नरम कीमतों की वजह से आई है। अतिरिक्त सब्सिडी का यह अधिकांश हिस्सा अगले वर्ष ले जाया जा सकता है लेकिन केंद्र के बहीखाते में वह बोझ बना रहेगा।
वित्त मंत्री पहले ही कह चुके हैं कि वर्ष 2018-19 तक निगम कर को 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी तक लाया जाना है। इसलिए अगले दो बजट में रियायतें कम करने के अलावा इससे संबंधित कदम भी उठाए जा सकते हैं। देसी उद्योग जगत अब चाहता है कि इन दरों में और अधिक कटौती की जाए क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के बाद उभरते बाजारों के लिए विदेशी पूंजी जुटाने की चुनौती बढ़ जाएगी। भारतीय कारोबारी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) यानी जीएसटी को लेकर भी चिंतित हैं। बजट पेश होने में अब ज्यादा वक्त नहीं रह गया है लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि जीएसटी अप्रैल 2017 में लागू किया जा सकेगा या नहीं। जीएसटी परिषद को भी अभी कुछ मसलों पर सहमति हासिल करनी है।
अगर ऐसा नहीं हो सका तो इसे तय मियाद में लागू कर पाना मुश्किल होगा। राज्य सरकारों के तेवर से लगता है कि यह काम बेहद मुश्किल लग रहा है। अगर जीएसटी को अप्रैल, 2017 में लागू नहीं किया जा सका तो बजट में मौजूदा अप्रत्यक्ष कर का प्रावधान करना होगा ताकि कुछ अरसे तक राजस्व अर्जित किया जा सके। बाद में जीएसटी लागू होगा। इससे बजट की प्रक्रिया जटिल हो जाएगी। निरंतरता बनाए रखने के लिए वित्त मंत्रालय शायद उत्पाद और सेवा कर के मौजूदा ढांचे से छेड़छाड़ नहीं करे।
उम्मीद यह भी है कि बजट प्लेस ऑफ इफेक्टिव मैनेजमेंट (पीओईएम) और जनरल ऐंटी अवॉयडेंस रूल्स (गार) के लिए भी उचित व्यवस्था करेगा। हालांकि उद्योग जगत एक बार फिर इनको टालने की मांग कर रहा है क्योंकि इन दोनों के लिए नियम और दिशानिर्देश अब तक जारी नहीं हुए हैं।
बजट में जहां अर्थव्यवस्था में निजी निवेश बढ़ाने के उपाय हो सकते हैं, वहीं उद्यमशीलता और रोजगार बढ़ाने की नई योजनाओं की शुरुआत हो सकती है, खासतौर पर युवाओं और महिलाओं को केंद्र में रखकर कुछ नई पहल घोषित हो सकती है। सरकार की दूसरी चिंता वैश्विक मंदी के कारण लगातार घटता निर्यात है। इसे बढ़ाने के लिए बजट में कुछ कदम उठाए जा सकते हैं, खासतौर पर हस्तशिल्प और लघु उद्योग के निर्यात को लेकर राहत भरे उपायों का ऐलान हो सकता है।
कृषि पर मेहरबानी बरकरार रखते हुए इससे जुड़े खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की लिए नई पहल की भी संभावना है। कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउसेज को बढ़ावा देने के साथ ही कृषि प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है। सरकार बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं के लिए आवटंन बढ़ाते हुए इस क्षेत्र को कुछ प्रोत्साहन दे सकती है जिससे कि सुस्ती के शिकार इस क्षेत्र में फिर से हरकत बढ़े। बजट इस लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण होगा।

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