'बाल विवाह पर रोकथाम के लिए जल्द हो संशोधन' | |
निकिता पुरी / 04 03, 2018 | | | | |
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बाल विवाह में कमी आई है लेकिन इसकी रफ्तार कम है। सर्वोच्च न्यायालय ने कम उम्र की लड़कियों के साथ यौन संबंध बनाने पर कानूनी रोक लगा दी है लेकिन बाल विवाह अभी भी वैध है। सर्वोच्च न्यायालय की वकील और बेंगलूरु के सेंटर फॉर लॉ ऐंड पॉलिसी रिसर्च की कार्यकारी निदेशक जयना कोठारी ने निकिता पुरी से बातचीत में बताया कि कमी के बावजूद बाल विवाह पर पूरी तरह रोक क्यों नहीं लग रही
बाल विवाह को जुर्माने के साथ अवैध करार दिए जाने के बावजूद वर्तमान में बाल विवाह की वैधता को बरकरार कैसे रख सकते हैं?
भले ही बाल विवाह पर कानूनन रोक है लेकिन उसकी वैधता अब भी बरकरार है। बाल विवाह रोकथाम अधिनियम 2006 में केवल इतना कहा गया है कि बाल विवाह अमान्य है और वधू यदि नाबालिग है तो किसी भी पक्ष के संरक्षक द्वारा उसे तोड़ी जा सकता है। इसके लिए बालिग होने के दो साल के भीतर याचिका दायर की जा सकती है। केवल कर्नाटक में बाल विवाह रोकथाम अधिनियम में संशोधन लाया गया ताकि सभी बाल विवाह को अमान्य और कानून की नजरों में अवैध करार दिया जा सके।
तो बाल विवाह फिलहाल वैध और केवल कर्नाटक में अमान्य है। लेकिन बाल विवाह को रद्द करने अथवा इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए कम उम्र की दुल्हन सामने कम आएंगी? क्या आपको लगता है कि दो वर्षों की ऊपरी सीमा होनी चाहिए?
कम उम्र की दुल्हन के लिए सामने आकर शिकायत करना और विवाह को खत्म करने के लिए पहल करना काफी कठिन है। बाल विवाह के शिकार बच्ची किसी भी समय जिला अदलात में याचिका दायर कर अपने विवाह को खत्म कर सकती हैं और बालिग होने पर विवाह को खत्म करने की याचिका दायर करने के लिए उनके पास दो वर्षों का समय होता है। इसका मतलब यह हुआ कि बच्ची के पास 20 वर्ष की उम्र होने तक का समय है। हालांकि इसकी संभावना काफी कम है कि वह अपने मातापिता, परिवार के लोगों और संबंधियों के खिलाफ जाकर विवाह को खत्म करने के लिए याचिका दायर करेगी क्योंकि यदि वह ऐसा करने में समर्थ होती तो पहले ही चरण में विवाह का विरोध करती। इसलिए उसे एक वकील और वित्तीय मदद की भी जरूरत होगी।
तमाम मामलों की तरह यदि वह 20 वर्ष की उम्र तक पहुंचने से पहले ही गर्भवती हो जाती है तो विवाह को खत्म करने के लिए कोई भी कदम उठाना उसके लिए काफी कठिन हो जाएगा। ऐसे में उसे इस बात की चिंता सताएगी कि वह अपने बच्चे और खुद की मदद कैसे करेगी। ऐसे मामले विरले ही दिखते हैं जहां कम उम्र की लड़की कोई कदम उठाती है और ऐसे मामले तभी सामने आते हैं जब कोई गैर-लाभकारी संगठन उसकी कानूनी मदद के लिए सामने आता है।
मुझे नहीं लगता कि इसके लिए कोई समय-सीमा होनी चाहिए क्योंकि गर्भावस्था, बच्चे का जन्म, वित्तीय क्षमता और शिक्षा जैसी तमाम परिस्थितियां हो सकती हैं जो लड़कियों और युवतियों को विवाह खत्म करने के लिए अदालत में याचिका दायर करने से रोक सकती हैं।
चर्चा है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय मौजूदा कानून में संशोधन के लिए एक प्रस्ताव ला रहा है ताकि बाल विवाह कानूनी रूप से अवैध करार दिया जा सके। क्या आप ऐसी कोई पहल देखना चाहती हैं? इस कानून को लागू करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा?
इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले में बाल विवाह के बाद शारीरिक संबंध को बलात्कार बताया गया है। साथ ही कहा गया है कि कर्नाटक से सीख लेते हुए केंद्र सरकार को बाल विवाह रोकथाम अधिनियम में संशोधन कर बाल विवाह को अमान्य कर देना चाहिए। यह संशोधन जल्द से जल्द लाया जाना चाहिए। इस संशोधन को लागू करने में प्रमुख चुनौती इस कानून के बारे में लोगों को जागरूक करने की होगी ताकि उन्हें पता चल सके कि बाल विवाह अवैध होगा। ऐसे में लोग इस प्रकार के विवाह से परहेज करेंगे।
पिछले अक्टूबर में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि बाल विवाह बच्चियों के संवैधानिक एवं मानवाधिकारों का हनन है। साथ ही अदालत ने बाल विवाह के तहत बिना सहमति के शारीरिक संबंध को बलात्कार करार दिया था। क्या इसके दुरुपयोग का कोई खतरा है?
मुझे नहीं लगता है कि इसका दुरुपयोग होगा क्योंकि पति के खिलाफ बाल विवाह रोकथाम अधिनियम के तहत आपराधिक मामला दायर किया जा सकता है। लेकिन मुझे लगता है इसका शायद ही कभी इस्तेमाल होता है। बाल विवाह के मामले में पति के खिलाफ बहुत कम शिकायत देखने को मिली है। इसलिए इस बात की संभावना बहुत कम है कि बाल विवाह मामले में बलात्कार के प्रावधान का दुरुपयोग होगा। वास्तव में लोग इस फैसले के बारे में जानते ही नहीं है। इसलिए इस संबंध में व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाने की जरूरत है ताकि इस फैसले से बाल विवाह पर रोक लग सके।
भारत में बाल विवाह कानून को लागू करना अभी भी एक चुनौती क्यों है?
सभी धर्मों और समुदायों में कम उम्र की विवाह को है जबरदस्त सामाजिक स्वीकार्यता है। बाल विवाह की रोकथाम के लिए कानून होने के बावजूद हमारे परिवार और समुदाय यह मानने को तैयार नहीं हैं कि बाल विवाह से बच्चियों को उनके स्वास्थ्य एवं जनन अधिकारों को क्या नुकसान होता है। जबकि ऐसे विवाह को अभी भी समाज मान्यता देता है।
यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पिछले दशक के दौरान बाल विवाह 47 फीसदी से घटकर 27 फीसदी रह गया है। क्या आप इसे एक अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड मानती हैं?
यह एक अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड है लेकिन 27 फीसदी अभी भी भारत में बाल विवाह का काफी बड़ा आंकड़ा है। हालांकि विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिशत के लिहाज से आंकड़े भिन्न हो सकते हैं और कुछ क्षेत्रों में आंकड़े अभी भी 40 फीसदी तक अधिक हैं। हम आत्म संतुष्टï नहीं हो सकते बल्कि इसके खिलाफ अभियान को लगातार जारी रखने की जरूरत है।
|