पिछले एक दशक में बैकिंग क्षेत्र में अच्छे काम तो कई हुए। लेकिन उन सब पर नीरव मोदी का नाम भारी पड़ गया। इसी साल 14 फरवरी को पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी) ने स्टॉक एक्सचेंजों को बताया कि उसके साथ तकरीबन 11,500 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा किया गया है। यह फर्जीवाड़ा मशहूर हीरा और जेवरात कारोबारी नीरव मोदी की कंपनियों ने किया था। इन कंपनियों ने विदेश से माल भेजने वाले निर्यातकों को भुगतान करने के लिए इस्तेमाल होने वाले लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) का गलत इस्तेमाल किया था। एलओयू के तहत आयातक की ओर से बैंक निर्यातक को माल की कीमत अदा कर देता है और आयात करने वाली कंपनी को एक तय मियाद के भीतर वह रकम लौटानी होती थी। लेकिन पीएनबी के मुताबिक नीरव मोदी की कंपनियों को पुरानी रकम लौटाए बगैर ही नए एलओयू जारी होते रहे।
इसके बाद तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। शेयर बाजार पर भी इसका तगड़ा असर पड़ा। कुछ ही दिन में विक्रम कोठारी नाम का एक और बम फूट गया। रोटोमैक ब्रांड के बॉलपेन बनाने वाले कोठारी ने बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ 3,695 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी की थी। कोठारी को कुछ दिनों में गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन नीरव मोदी विदेश भागने में सफल रहे। इन घोटालों की परतें खुलीं तो कई दूसरे बैंक भी इनकी जद में पाए गए। मामले में ऑडिटरों, बैंक अधिकारियों पर तो दोष आया ही है, भारतीय रिजर्व बैंक की निगरानी प्रक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं।
लेकिन विजय माल्या, नीरव मोदी और विक्रम कोठारी ही बैंकिंग फर्जीवाड़े के चुनिंदा मामले नहीं हैं। पिछले एक दशक में हजारों छोटे-बड़े मामलों में बैंकों को तगड़ा चूना लगा है। विदेशी समाचार एजेंसी रॉयटर्स को रिजर्व बैंक से मिले आंकड़ों के मुताबिक 1 अप्रैल, 2012 से 31 मार्च, 2017 तक सरकारी बैंकों ने कर्ज में धोखाधड़ी के केवल 8,670 मामले दर्ज कराए थे। इनमें 61,000 करोड़ रुपये से भी अधिक की रकम फंसी थी। पिछले वित्त वर्ष में बैंकों के 'बैड लोन' बढ़कर 14,900 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाने के पीछे बहुत बड़ी वजह ये मामले भी हैं। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2012-13 में 6,357 करोड़ रुपये के कर्ज की ही धोखाधड़ी हुई थी। लेकिन पिछले वित्त वर्ष में कुल 17,634 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी दर्ज की गई।
रिजर्व बैंक ने पिछले साल जून में अपनी वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं के साथ हो रही धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े को 'वित्तीय क्षेत्र में उभरता बड़ा जोखिम' बताया था। उसकी बात सही भी थी क्योंकि पीएनबी के साथ पिछले पांच वर्ष में सबसे ज्यादा 6,562 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई है। बैंक ऑफ बड़ौदा को ऐसे मामलों में 4,473 करोड़ रुपये और बैंक ऑफ इंडिया को 4,050 करोड़ रुपये का चूना लगा है। धोखाधड़ी के मामले तो कई गुना हो सकते हैं क्योंकि इन आंकड़ों में वे मामले ही शामिल हैं, जिनकी खबर दी गई है।
बैंकिंग फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी के केंद्र सरकार द्वारा बताए गए आंकड़े तो और भी गंभीर हैं। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि 1 अप्रैल, 2014 से 31 मार्च, 2017 के बीच सभी वाणिज्यिक बैंकों में धोखाधड़ी के 12,778 मामले सामने आए हैं। इनमें 8,622 मामले सरकारी बैंकों में और 4,156 निजी बैंकों में हुए। सबसे ज्यादा मामले भारतीय स्टेट बैंक में हुए और चार सरकारी बैंकों में 500-500 मामले सामने आए।
चिंता की बात यह भी है कि ऐसे मामलों में बैंक कर्मियों की लिप्तता बढ़ती जा रही है। सरकार ने बताया कि धोखाधड़ी के 13 फीसदी से अधिक मामलों में कर्मचारियों का हाथ था। पीएनबी घोटाले में भी बैंक कर्मचारी लिप्त पाए गए हैं। यह स्थिति तब है, जब सरकार के अनुसार धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के मामलों में जनवरी, 2015 से मार्च, 2017 सरकारी बैंकों के 5,200 कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
फर्जीवाड़े या धोखाधड़ी का सबसे बुरा असर यह होता है कि एनपीए का बोझ बढ़ जाता है। रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के मुताबिक फर्जीवाड़े की पुष्टि हो जाने के बाद बैंक को कर्ज की पूरी रकम बट्टे खाते में डालनी पड़ती है। इस तरह बैंक को लगभग 12,000 करोड़ रुपये बट्टे खाते में डालने होंगे। अब बैंक 8,000 करोड़ रुपये और बट्टे खाते में डालने जा रहे हैं।
यह अजीब स्थिति है क्योंकि सरकारी बैंकों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार उनमें बड़ी पूंजी डालने जा रही है और बैंक एनपीए से मुक्ति पाने में नाकाम हैं। रिजर्व बैंक के पिछले वर्ष दिसंबर में जारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर, 2017 तक सरकारी बैंकों के बैड लोन 7.34 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुके थे, जबकि निजी बैंकों के मामले में आंकड़ा केवल 1.03 लाख करोड़ रुपये था। सबसे ज्यादा 1.86 लाख करोड़ रुपये का एनपीए स्टेट बैंक के ऊपर है। उसके बाद 57,630 करोड़ रुपये के एनपीए के साथ पीएनबी खड़ा है। नीरव मोदी मामले के बाद उसकी स्थिति और बिगड़ेगी। हालांकि 2012 से 2015 के बीच सरकारी बैंकों के एनपीए में कमी आई थी, लेकिन उसके बाद एक बार फिर इसमें इजाफा होने लगा।
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