नई शक्ल संग नए सफर पर | |
अनूप रॉय / 03 01, 2018 | | | | |
सबप्राइम संकट से बच गए भारतीय बैंकों ने पिछले एक दशक में जबरदस्त बदलाव
देखे हैं और नए जमाने के लिए वे तैयार दिख रहे हैं
बैंकों का कारोबार यूं तो पारंपरिक है, लेकिन यह हरदम बदलता रहता है। दुनिया भर में पिछले 10 साल में बैंकिंग कारोबार में जो बड़े बदलाव हुए हैं, उनसे ही अंदाजा लग जाता है कि अगले 10 साल में इस क्षेत्र में क्या-क्या होगा। बदलाव की रफ्तार इतनी तेज है कि विशेषज्ञ भी हैरत में हैं। उन्हें लगता है कि इतनी ही तेजी से बदलाव होते रहे तो पिछले 10 साल में जितनी तस्वीर बदली है, उतनी तो अगले दो साल में ही बदल जाएगी।
महज 10 साल गुजरे हैं, जब पूरी दुनिया को वित्तीय माध्यमों में बड़ा संकट पनपता दिखने लगा था। वह 2008-09 के ऋण संकट का दौर था। सदियों पुराने नामीगिरामी वैश्विक बैंक बरबाद हो गए और ग्राहकों को जोड़ने तथा उनके साथ काम करने के नए कायदे उभरकर आए। भारत के बैंक खुशकिस्मत रहे कि उस भंवर में फंसकर डूबे नहीं। लेकिन यहां की बैंकिंग प्रणाली को भी वैश्विक बैंकों के लिए तय हुए नए कायदों पर चलना पड़ा जैसे अधिक पूंजी की जरूरत, खराब ऋण को पहचानने के कठिन नियम आदि।
पिछले एक दशक में बैंकों में सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ है कि हाशिये पर पड़े हुए लोगों को भी औपचारिक बैंकिंग माध्यमों में शामिल होने का मौका मिल गया है। हालांकि 1960 के दशक में जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था तो उसका प्रमुख लक्ष्य आम लोगों को बैंकिंग प्रणाली में लाना ही था। लेकिन असली समावेशन तब हुआ, जब 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर जोर दिया। उसके बाद ही बैंकों ने हरेक परिवार के लिए खाता खोलना शुरू किया। यह अलग बात है कि खोले गए ज्यादातर खाते इस वक्त निष्क्रिय पड़े हैं, लेकिन ऐसा बहुत दिनों तक नहीं रहेगा।
सरकार जल्द ही सभी सामाजिक योजनाओं में मिलने वाली सब्सिडी की रकम सीधे इन खातों में डालना शुरू कर देगी तो हालात काफी बदल जाएंगे। इसमें आधार से काफी मदद मिलेगी और उसके बल पर यह प्रक्रिया बहुत सुगम बन जाएगी, सामाजिक क्षेत्र के लाभ अधिक पारदर्शी हो जाएंगे और बिचौलियों का काम बिल्कुल खत्म हो जाएगा। इसे पिछले एक दशक में सरकार और बैंकिंग प्रणाली की बहुत बड़ी उपलब्धि माना जाना चाहिए।
इस उपलब्धि से भी बड़ा बदलाव है बैंकों की तादाद में इजाफा। अप्रैल, 2014 के बाद से भारतीय रिजर्व बैंक ने 23 नई कंपनियों या संस्थाओं को बैंकिंग लाइसेंस दिए हैं। इनमें से दो को संपूर्ण बैंक के लाइसेंस दिए गए हैं और 11 को भुगतान (पेमेंट्स) बैंक के लाइसेंस मिले हैं। 10 कंपनियों या संस्थाओं को लघु वित्तीय बैंकों का लाइसेंस दिया गया है। भुगतान बैंकों के लाइसेंस तो 11 बांटे गए, लेकिन अभी तक केवल चार ने ही बैंक शुरू किए हैं, जिनके नाम फिनो, एयरटेल, पेटीएम और इंडिया पोस्ट हैं।
बैंकों की जमात में नए नाम एक दशक बाद जोड़े गए हैं। इससे पहले रिजर्व बैंक ने कोटक महिंद्रा बैंक और येस बैंक लिमिटेड को लाइसेंस दिए थे। इस हिसाब से देखें तो 10 साल के भीतर ही देश में बैंकों की संख्या एकाएक बढ़ गई है। केंद्रीय बैंक ने अब जो योजना बनाई है, उसके मुताबिक कोई भी संस्था या कंपनी किसी भी समय बैंक का लाइसेंस हासिल करने के लिए अर्जी डाल सकती है। रिजर्व बैंक द्वारा तय किए गए पैमाने और शर्तों पर वह खरी उतरती है तो उसे लाइसेंस दिया जा सकता है।
दिलचस्प बात यह भी है कि इसी दौरान बैंकों के विलय के कारण नामी-गिरामी बैंकों की संख्या में कमी भी आई। भारतीय स्टेट बैंक ने अपने बाकी पांच सहयोगी बैंकों का विलय स्वयं में कर लिया। भारतीय महिला बैंक का विलय भी उसी में कर दिया गया। इस विलय के बाद स्टेट बैंक दुनिया के 50 शीर्ष बैंकों में शामिल हो गया है। अब योजना यह है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण किया जाए, उनमें से कुछ का विलय कर केवल 7-8 बड़े सरकारी बैंक बनाए जाएं ताकि वे वैश्विक स्तर पर मुकाबला कर सकें और सही मायनों में भारत के अंतरराष्ट्रीय बैंक बन सकें। अगले 10 साल में विलय और निजीकरण की यह योजना और भी रफ्तार पकड़ेगी।
बैंकिंग क्षेत्र में बड़ा बदलाव लेनदेन के तौर-तरीके में भी आया है। डिजिटलीकरण की रफ्तार बढ़ती ही जा रही है। वह दिन दूर नहीं, जब बैंकों में डिजिटल भुगतान के अनुकूल बुनियादी ढांचा ही बनाया जाएगा। डिजिटल बैंकिंग ने तब जोर पकड़ा, जब 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के ऐलान के बाद लोग इसके लिए बाध्य हुए। नोटबंदी ने चंद महीनों में ही इतना डिजिटलीकरण कर दिया, जिसे पूरा होने में तीन साल लग जाते। ऐक्सिस बैंक लिमिटेड में खुदरा विभाग के प्रमुख राजीव आनंद कहते हैं, 'मोबाइल फोन के जरिये करीब 15,000 करोड़ रुपये के लेनदेन किए जा रहे हैं, जिनकी संख्या एटीएम लेनदेन से ज्यादा है। साफ है कि ग्राहक नकदी के बजाय मोबाइल लेनदेन की दिशा में बढ़ रहे हैं।' उन्होंने कहा कि भारत में ऐक्सिस बैंक के लिए यह बड़ा बदलाव है। यह सबूत है कि ग्राहक अब नकदी छोड़कर डिजिटल लेनदेन पसंद कर रहे हैं।
हालांकि यह भी सच है कि भारत को पूरी तरह डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने में अभी बहुत वक्त लगेगा और विकसित देशों में भी नकदी का चलन अभी पूरी तरह खत्म नहीं हो पाया है। लेकिन यह भी सच है कि मोबाइल फोन के कारण अब बैंकों की शाखा या एटीएम तक जाने की जरूरत भी खत्म हो रही है। इंटेक्स इंडिया लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक और भारतीय भुगतान परिषद के पूर्व अध्यक्ष नवीन सूर्या कहते हैं कि बैंकिंग प्रणाली में अगला धमाका ब्लॉकचेन प्रक्रिया होगी। वह कहते हैं, 'भविष्य में ब्लॉकचेन बहुत अहम होगी। उसके अलावा नियर फील्ड कम्युनिकेशन (एनएफसी), यूपीआई, पीपीआई पर भी प्रयोग किए जा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि ग्राहक अपने बैंक तक ही सीमित नहीं रह जाएगा। उसी प्रणाली से वह दूसरे बैंकों की सुविधाओं का इस्तेमाल भी कर पाएगा।'
नीति आयोग के मुख्य कार्य अधिकारी अमिताभ कांत ने कुछ अरसा पहले कहा था कि अगले तीन साल में देश में बैंकों की शाखाएं बेकार हो जाएंगी। उन्होंने कहा था कि शाखाओं का काम सिमट जाएगा और जो डेटा यानी जानकारी मौजूद होगी, उसके बल पर बैंकिंग आगे बढ़ेगी, जिससे वित्तीय समावेशन भी बढ़ेगा। कांत को यह भी लगता है कि आने वाले तीन-चार साल में डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और एटीएम की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी क्योंकि लोग वित्तीय लेनदेन के लिए मोबाइल फोन का ही इस्तेमाल करेंगे। मगर रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर के सी चक्रवर्ती ने पिछले साल दिसंबर के मध्य में बिजनेस स्टैंडर्ड के सालाना राउंड टेबल के दौरान कहा था कि डिजिटल बैंकिंग कम से कम अगले 25 साल तक तो मौजूदा बैंकिंग की जगह नहीं ले पाएगी।
चक्रवर्ती की बात गलत नहीं है। सभी स्मार्टफोन धारकों को कल का डिजिटल बैंकिंग ग्राहक मान लेना बेतुका होगा। डिजिटल लेनदेन की सुरक्षा को लेकर लोग सशंकित हैं। बैंकों, रिजर्व बैंक, सरकार अैर तकनीक प्रदाताओं को यह समझाने के लिए लगातार प्रयास करने होंगे कि डिजिटल लेनदेन वास्तव में सुरक्षित हैं। अधिकतर स्मार्टफोन धारकों को मोबाइल फोन से डिजिटल लेनदेन करने लायक जानकारी भी नहीं है। लेकिन बैंकरों का कहना है कि एनएफसी जैसी तकनीकों के मुख्यधारा में आने से आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल का डर भी कुछ अरसे में ही खत्म हो जाएगा।
चक्रवर्ती ने कहा था कि बैंकों को नई शाखाएं खोलनी होंगी क्योंकि भारतीय ग्राहकों के लिए पैसा बड़ी चीज है और उन्हें नकदी के इस्तेमाल की आदत है। यह बात गांवों के लिए ही नहीं, शहरों के लिए भी एकदम सच है। लेकिन भुगतान के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा डिजिटलीकरण बहुत बड़ा बदलाव है। अब फिनटेक कंपनियों और भुगतान बैंकों जैसे माहिर खिलाड़ी भी इसमें आ गए हैं, जो चुपचाप इस क्षेत्र को मजबूत बना रहे हैं। फिनो पेमेंट्स बैंक के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी ऋषि गुप्ता ने कहते हैं, 'फिनटेक कंपनियों ने पहले ही बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में उथलपुथल मचानी शुरू कर दी है। बैंकिंग को आम जनता तक लाने के लिए ही नहीं बल्कि उसे अधिक किफायती और सुविधाजनक बनाने के लिए भी ऐसे बदलाव लाने की जरूरत है।'
मगर डिजिटल भुगतान आने वाले 10 सालों में अहम चलन होगा। आईसीआईसीआई बैंक के मुख्य प्रौद्योगिकी और डिजिटल अधिकारी बी मढि़वनन ने बीएस बैंकिंग राउंड टेबल में कहा था अगले डेढ़-दो साल में 40 फीसदी डिजिटल ऋण होगा। कार लोन, पर्सनल लोन या होम लोन पुरानी पीढ़ी के लिए ही रह जाएंगे। नई पीढ़ी खास जरूरतों के लिए चुटकियों में कर्ज मांगेगी, जो बैंक शाखाएं नहीं कर पाएंगी। इसका असर रोजगार पर भी पड़ेगा। फिलहाल बैंक बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करते हैं। लेकिन पहले जो काम मनुष्य करते थे, उसमें अब ढेर सारे रोबोट लगे हैं। इससे और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण लागत कटौती से रोजगार घटेगा।
अगले दशक में बैंकिंग क्षेत्र का विकास काफी हद तक अर्थव्यवस्था के विकास के तरीके और वैश्विक अर्थव्यवस्था से भारत के जुड़ाव से तय होगा। विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी भी इस लिहाज से अहम होगी। भारतीय बैंक बहुत हद तक वैश्विक बैंकिंग तौर-तरीकों को अपना चुके होंगे और बहुत संभव है कि दुनिया बिटकॉइन सरीखी आभासी मुद्राओं की तरह बढ़ रही हो। यह बात अलग है कि बिटकॉइन को अभी शक की नजर से देखा जा रहा है और यह उचित भी है।
.jpg)
|