► ऋणशोधन कानून की विभिन्न धाराओं की व्याख्या को दी जा रही चुनौती ► कुछ विशेषज्ञों ने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले की तरफ ध्यान दिलाया जिसमें उसने अदालत से बाहर निपटारे की एनसीएलटी की रजामंदी को खारिज कर दिया था ► विशेषज्ञों का कहना है कि ऋण आईबीसी में कहा गया है कि एनसीएलटी को कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ अथवाप्रक्रिया या आवेदन पर खुद गौर करने का अधिकार प्राप्त है
दबावग्रस्त परिसंपत्तियों के संभावित खरीदारों द्वारा चार प्रमुख क्षेत्रों में ऋणशोधन कानून की धाराओं की व्याख्या को चुनौती देने के मद्देनजर उनमें से कई का समाधान नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के अंतिम फैसले अथवा सरकार द्वारा इस कानून में किए जाने वाले संशोधन पर निर्भर करेगा। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि इस संबंध में कानूनी मामलों की अधिकता कोई असामान्य बात नहीं है। उनका कहना है कि नया कानून वाइंडिंग-अप याचिका के मुकाबले बेहतर है। इससे पहले लेनदार कंपनी कानून के तहत समापन याचिका दायर करते थे। इन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि आधिकारिक परिसमापक की नियुक्ति के बावजूद यह समयबद्ध नहीं था।
एनसीएलटी के कई मामलों में शामिल रह चुके एक वरिष्ठ वकील ने कहा, 'चाहे बोली का चयन हो अथवा प्रतिस्पर्धी बोलीदाताओं की पात्रता, लेनदारों की समिति द्वारा लिए गए सभी फैसलों को एनसीएलटी में चुनौती दी जा सकती है। वही अब हो रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि एनसीएलटी इन मामलों के तहत अपने फैसले में इस कानून की व्याख्या को स्पष्ट करेगा। और उन्हें नौ महीने की समय-सीमा के भीतर अनिवार्य तौर पर ऐसा करना होगा।' उन्होंने कहा कि उस सूरत में इस कानून में तमाम क्षेत्रों के लिए संशोधन करने की आवश्यकता नहीं होगी।
तो किन क्षेत्रों की जांच होगी? उदाहरण के लिए, इस सप्ताह अल्ट्राटेक ने जब 7,266 करोड़ रुपये में बिनानी सीमेंट के प्रवर्तकों की 98 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की पेशकश की तो सभी की भौहें तन गईं। यदि ऐसा हुआ तो ऋण शोधन प्रक्रिया खत्म हो जाएगी। एवी बिड़ला समूह ने डालमिया भारत को कंपनी की पेशकश संबंधी लेनदारों की समिति के निर्णय को एनसीएलटी में चुनौती दी है। उसने लेनदारों की समिति द्वारा डालमिया भारत को एच1 बोलीदाता चुने जाने के बाद उससे अधिक बोली की पेशकश की है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऋण शोधन एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) में कहा गया है कि एनसीएलटी को कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ अथवा प्रक्रिया या आवेदन पर खुद गौर करने का अधिकार प्राप्त है। उसके प्रस्तावना में भी कहा गया है कि उद्देश्य दबावग्रस्त संपत्ति के मूल्य को अधिक से अधिक बढ़ाना है और यह कोई दंडात्मक उपाय नहीं है।
ऐसे ही एक मामले में शामिल एक वकील ने कहा, 'यदि स्वामी देनदार एनसीएलटी के बाहर किसी समझौते के जरिये बेहतर मूल्य की पेशकश करता है तो आईबीसी के तहत उस पर रोक लगाने का कोई विधान नहीं है।' इस पेशकश के जरिये बिनानी सभी लेनदारों को पूरा भुगतान कर सकती है और इसके बावजूद उसके पास रकम बची रहेगी। (वह 3,884 करोड़ रुपये के ऋण बोझ तले दबी है।) हालांकि कुछ विशेषज्ञों ने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले के तरफ ध्यान दिलाया जिसमें उसने अदालत से बाहर निपटारे की एनसीएलटी की रजामंदी को खारिज कर दिया था।
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