नियामक का बाहरी नियंत्रण कहां है | |
दिलाशा सेठ / 02 18, 2018 | | | | |
पंजाब नैशनल बैंक में 110 अरब रुपये की धोखाधड़ी के मामले पर मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने नियामक की तरफ से किए जाने वाले बाहरी नियंत्रण पर सवाल उठाया। दिलाशा सेठ को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि सरकारी बैंकों में आंतरिक नियंत्रण कमजोर है, ऐसे में इन बैंकों का निजीकरण होना चाहिए। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश ...
सरकारी बैंकों में एक और बड़ा संकट देखने को मिला है। नीतिगत स्तर पर क्या किया जाना चाहिए?
पीएनबी के घटनाक्रम में स्पष्ट है कि आंतरिक नियंत्रण टूटा है। लेकिन नियामक की तरफ से होने वाले बाहरी नियंत्रण का क्या हुआ। यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह मामला निजीकरण की अनिवार्यता पर फिर से जोर देता है क्योंकि सरकारी मालिकाना हक के चलते आंतरिक नियंत्रण की प्रवृत्ति कमजोर होती है।
सरकार बैंक राष्ट्रीयकरण अधिनियम 1969 व 1980, भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम और एसबीआई (सहायक) अधिनियम से बंधी है। क्या आप ऐसे अधिनियम निरस्त करने की बात करेंगे?
यह फैसला सरकार को करना है। संभवत: अधिनियम ही सबसे बड़ा अवरोध है। लेकिन इसका फैसला मुझे नहीं करना है। लेकिन हम बैंकिंग क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी चाहते हैं।
आप निजी भागीदारी पर जोर दे रहे हैं, लेकिन पीएनबी की तरफ से जारी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग में ऐक्सिस बैंक भी शामिल है, हालांकि इसने बाद में इसे बेच दिया?
आप सही हैं, लेकिन सरकारी बैंकों में आंतरिक नियंत्रण ज्यादा टूटा है, जैसा कि इतिहास बताता है। ऐक्सिस बैंक भी शामिल है, जो बताता है कि यहां भी आंतरिक नियंत्रण टूटा है। इसी वजह से हमें बाहरी नियामक की तरफ से नियंत्रण की दूसरी रेखा की दरकार है। निजी स्वामित्व कोई रामबाण नहीं है और भविष्य के संकट के खिलाफ किसी तरह की गारंटी भी नहीं है। लेकिन सरकारी स्वामित्व जटिल त्रिस्तरीय नियंत्रण करता है - सरकार के बीच स्वामित्व व नियंत्रण, नियामक और खुद बैंक। जहां निजी क्षेत्र की भागीदारी से इनमें से कुछ जटिलताएं कम हो जाएंगी। वैश्विक वित्तीय संकट में हमने देखा है कि समस्याएं निजी स्वामित्व में भी पैदा हुई हैं, इसलिए हमें प्रभावी नियमन की दरकार है।
ऐसी धोखाधड़ी रोकने के लिए आप किस तरह के बाहरी नियंत्रण की सिफारिश करेंगे?
मुझे लगता है कि साल 2016 में पूर्व डिप्टी गवर्नर एस एस मूंदड़ा ने भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि कोर बैंकिंग ऑपरेशन के साथ स्विफ्ट को जोड़ा जाना चाहिए। इस पर कदम क्यों नहीं उठाया गया? लेकिन धोखाधड़ी के खिलाफ कुछ भी विश्वसनीय व आसान नहीं होती बल्कि यह इससे जुड़ी है कि हमें बेहतर नियमन कैसे हासिल हो सकता है।
निजीकरण के मामले में क्या निजी व सरकारी बैंक कर्मचारियों के लिए वेतन आदि के स्तर की विषमता दूर होगी?
हां, यह एक वजह हो सकती है। आपको जोखिम प्रबंधन व आकलन की व्यवस्था के लिए अच्छी प्रतिभा की दरकार होती है। निजी बैंकों की तरह सरकारी बैंकों के पास नियुक्ति और अपने कर्मचारियों को बनाए रखने की आजादी होनी चाहिए। अभी वे फैसला लेने की प्रक्रिया में अवरोध का सामना करते हैं।
दबाव वाली परिसंपत्तियों में फंसे कर्ज पर बैंकों को होने वाले नुकसान पर आप क्या कहेंगे?
यह मामला दर मामला तय होगा। एनसीएलटी की प्रक्रिया नुकसान तय करेगी कि बैंकों को कितनी राशि बट्टे खाते में डालनी है। उन्हें यह नुकसान उठाना होगा।
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