इलेक्ट्रॉनिक वे (ई-वे) बिल व्यवस्था को 1 फरवरी से पूरे देश में लागू किया जाना था लेकिन इसे अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया गया। इसे शुरू करने के लिए राज्यों ने अलग-अलग तारीखों का ऐलान किया है जिससे उद्योग जगत में अनिश्चितता की स्थिति है। गुजरात ने नए प्रारूप के तहत 21 फरवरी से अंतरराज्यीय ई-वे बिल व्यवस्था शुरू करने की अधिसूचना जारी की है जबकि आंध्र प्रदेश का कहना है कि उसके यहां 8 फरवरी से ही यह व्यवस्था लागू हो जाएगी।
असम, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने अपने सर्कुलर में कहा है कि अंतरराज्यीय स्तर पर माल की आवाजाही के लिए बिल की पुरानी व्यवस्था जारी रहेगी। उत्तर प्रदेश ने भी 10 फरवरी से पुरानी व्यवस्था बहाल करने की बात कही है जबकि राजस्थान ने 33 वस्तुओं पर इसकी अनुमति दी है। बिहार ने पुरानी व्यवस्था के तहत अंतरराज्यीय स्तर पर सामान की आवाजाही के लिए 50,000 रुपये की सीमा तय की है जबकि राज्य के भीतर यह सीमा दो लाख रुपये रखी गई है।
एफएमसीजी, दवा और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स क्षेत्र की कंपनियां इससे सबसे ज्यादा चिंतित हैं क्योंकि उनका सामान कई राज्यों से गुजरता है और हर राज्य में बिल व्यवस्था अलग-अलग है। जीएसटी राजस्व में कमी के कारण जीएसटी परिषद ने ई-वे बिल व्यवस्था को निर्धारित समय से पहले लागू करने का फैसला किया था। सामान की अंतरराज्यीय आवाजाही पर इसे 1 फरवरी से और राज्य के भीतर 1 जून से लागू किया जाना था। राज्यों ने 1 फरवरी को अपनी पुरानी बिल व्यवस्था को बंद कर दिया था। लेकिन जीएसटी नेटवर्क के जरिये केंद्रीय ई-वे बिल व्यवस्था को स्थगित किए जाने के बाद राज्य अब पुरानी व्यवस्था बहाल कर रहे हैं। इससे उद्योग जगत में चिंता का माहौल है।
पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर प्रतीक जैन ने कहा कि जीएसटी परिषद को हस्तक्षेप करके राज्यों को समान तारीख से नई व्यवस्था लागू करने के लिए मनाना चाहिए था। पहले अंतरराज्यीय ई बिल व्यवस्था को लागू करने के विकल्प तलाशे जाने चाहिए जिसका बाद में राज्यों के भीतर भी विस्तार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर अलग-अलग राज्य ई-वे बिल के लिए अलग-अलग प्रारूप और तारीख लेकर आते हैं तो फिर इससे कारोबारियों में भ्रम पैदा होगा।
ईवाई के विपिन सपरा ने कहा कि इस भ्रम को दूर करने की जरूरत है क्योंकि इससे सामान की आवाजाही प्रभावित हो रही है। ई-वे बिल व्यवस्था को राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केंद्र विकसित कर रहा है जबकि जीएसटी से जुड़ी दूसरी आईटी सामग्री को एक निजी संस्था जीएसटी नेटवर्क संभाल रहा है। ई-वे बिल व्यवस्था को लागू करने के लिए एनआईसी को 40 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान किया गया है।
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