► रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के विरोध के बावजूद बाजार नियामक को डिफॉल्ट खुलासा प्रावधान के लागू होने की उम्मीद
► इस प्रस्ताव के लागू होने पर बैंकों पर डूबते ऋण के लिए प्रावधान का काफी बोझ बढ़ सकता है
► सेबी इस प्रस्ताव में काफी दिलचस्पी दिखा रहा है क्योंकि इससे निवेशकों को फायदा होगा
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अपने उस प्रस्ताव पर विचार के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और कंपनी मामलों के मंत्रालय (एमसीए) से संपर्क किया है जिसमें सूचीबद्ध कंपनियों को ऋण में चूक करने के एक दिन बाद सार्वजनिक तौर पर खुलासा करने का प्रावधान है। सूत्रों के अनुसार बाजार नियामक शुरुआती प्रस्ताव को ही कुछ संशोधन के साथ लागू करने के पक्ष में है। इस नए नियम को अक्टूबर 2017 से प्रभावी होना था लेकिन कार्यान्वयन संबंधी बाधाओं के कारण उसे लागू नहीं किया जा सका।
28 दिसंबर को आयोजित सेबी की बोर्ड बैठक में एक संशोधित प्रस्ताव पर विचार किया गया था। हालांकि फिलहाल उसे रोकने का निर्णय लिया गया क्योंकि बाजार नियामक को उस पर और अधिक चर्चा करने की जरूरत दिखी। सूत्रों के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और कंपनी मामलों के मंत्रालय ने इस प्रस्ताव पर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई थी क्योंकि इसे लागू होने पर बैंकों को 26,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी की दरकार होगी। इस प्रस्ताव के लागू होने पर डूबते ऋण के लिए बैंकों के प्रावधान में काफी इजाफा होगा।
इस मामले से अवगत एक व्यक्ति ने कहा, 'प्रस्तावित प्रावधान से निवेशकों को समय रहते कंपनी की वित्तीय सेहत का अंदाजा लगाने और सूचनाओं के आधार पर निर्णय लेने की गंभीर खाई को पाटने में मदद मिलेगी।' उस व्यक्ति ने बताया कि बाजार नियामक नकद उधारी जैसे लघु अवधि के ऋण को खुलासा प्रावधान के दायरे से बाहर रखने पर विचार कर रहा है। संशोधित खुलासा प्रावधान पर विचार के लिए बाजार नियामक बजट 2019 से पहले अपनी बोर्ड बैठक के सामने रखेगा। सेबी इस नियम को 1 अप्रैल से लागू करना चाहता है।