'नकदी से डिजिटल की ओर बढ़ रहा है उपभोक्ताओं का व्यवहार' | |
चिराग मडिया और अनूप रॉय / 12 24, 2017 | | | | |
ऐक्सिस बैंक अब एटीएम नेटवर्क से निकासी के बजाय मोबाइल फोन के माध्यम से ज्यादा लेनदेन की ओर बढ़ रहा है। बैंक के कार्यकारी निदेशक और खुदरा क्षेत्र के प्रमुख राजीव आनंद ने चिराग मडिया और अनूप रॉय से बातचीत में कहा कि भले ही डिजिटल का ही अब भविष्य हो, लेकिन बैंक, फिनटेक स्टार्टअप से भयभीत नहीं हैं क्योंकि स्थापित बैंक स्टार्टअप की तुलना में बेहतर या उनके जैसी सेवाएं ही पेश कर रहे हैं। संपादित अंश...
डिजिटलीकरण के मामले में बीते वर्ष खासकर बैंकिंग क्षेत्र में व्यापक बदलाव देखा गया है। ऐक्सिस बैंक इस बदलाव को किस रूप में देखता है?
यह एक साल की कहानी नहीं है। यह बदलाव 3-4 साल पहले शुरू हुआ था और आज भी इस दिशा में बदलाव जारी है। खासकर नोटबंदी के बाद से डिजिटल भुगतान में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी जा रही है। नोटबंदी के बाद से डेबिटेड पीओएस (प्वाइंट आफ सेल्स मशीन में डेबिट कॉर्ड का इस्तेमाल) बहुत तेज बढ़ा है। यूपीआई में हम बहुत जोरदार बढ़ोतरी देख रहे हैं। सिर्फ नवंबर में यूपीआई से 10 करोड़ लेन देन हुए और हमारी बाजार हिस्सेदारी करीब 35 प्रतिशत है। मोबाइल बैंकिंग के क्षेत्र में तेज बढ़ोतरी हो रही है। इंटरनेट बैंकिंग में बढ़ोतरी जारी है, वहींं हमारे एक तिहाई ग्राहक हमारी वेबसाइट का इस्तेमाल मोबाइल पर करने लगे हैं। अब हमारे पास ऐसे उपभोक्ताओं का बड़ा आधार है, जिनके पास फीचर फोन हैं। यह अहम नहीं है कि हमारी सेवाएं आप किस रूप में लेना चाहते हैं, सभी मामलों में हम इसे यथासंभव सरल बनाने की कवायद करते हैं। करीब 70 प्रतिशत लेन देन हम डिजिटल माध्यमों से कर रहे हैं। उपभोक्ता सेवा अनुरोध, खाते खोलने आदि का काम ज्यादातर डिजिटल प्लेटफॉर्म से हो रहा है।
क्या डिजिटल प्लेटफॉर्म की वृद्धि के आंकड़े बता सकेंगे?
मोबाइल से लेन लेन के आंकड़े करीब 15,000 करोड़ रुपये के हैं। यह आंकड़ा एटीएम से निकासी करने वाले ग्राहकों से ज्यादा का है। इससे पता चलता है कि आप नकदी से मोबाइल द्वारा लेन देन की ओर बढ़ रहे हैं। यह भारत में हमारे लिए युगांतरकारी क्षण है। उपभोक्ताओं का व्यवहार नकदी से डिजिटल की ओर बढ़ रहा है।
डेटा लीकेज को लेकर डर सामने आ रहा है और कई मामले सुनने में आए हैं। उपभोक्ताओं के अविश्वास को कम करने के लिए आप क्या कर रहे हैं?
डेटा की सुरक्षा और व्यक्तिगत पहचान की रक्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हम इस तरह की चिंता को बहुत गंभीरता से लेते हैं। इस पर व्यापक स्तर पर चर्चा होदी है और हमने सभी संभव कदम उठाए हैं। विशेषज्ञोंं की एक उच्च कौशलयुक्त आईटी सिक्योरिटी टीम इस पर नजर रखती है और हम डेटा की सुरक्षा और इस तरह की कमजोरियों को दूर करने के लएि वैश्विक स्तर के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल कर रहे हैं। उदाहरण के लिए मोबाइल फोन मेंं हम कई स्तर की सुरक्षा का प्रबंध करते हैं। आपको अपना पंजीकृत मोबाइल नंबर रखना होता है, दूसरे यह आईएमईआई से जुड़ा होता है। इस तरह से उपकरण भी लॉक रहता है। मान लीजिए कि कल आप अपना फोन बदलते हैं तो आपको फिर से अपना पंजीकरण कराना होगा। और तीसरे, आपका एक एमपीआईएन नंबर होगा, जो तीसरे स्तर की सुरक्षा है। हमारे पास एडवांस डेटा एनलिस्ट और मशीन लर्निंग तकनीक है जिससे उपभोक्ताओं के व्यवहार को समझा जाता है, जिससे धोखाधड़ी वाले संभावित लेन देन को चिह्नित किया जा सके। हैकर्स दिन प्रतिदिन उन्नत होते जा रहे हैं, ऐसे में बहुत कमजोरियां हैं, लेकिन हम नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हम इन जोखिमों से निपटने, ऐसी स्थिति में कदम उठाने की दिशा में अहम कदम उठा रहे हैं। यह क्षमता पहले ही विकसित कर ली गई है, लेकिन यह निरंतर चलने वाली यात्रा है, जो कभी खत्म नहीं होती।
नोटबंदी के बाद से डिजिटल भुगतान की दिशा में बहुत तेजी आई है। बहरहाल हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि उपभोक्ता बैंकों से नकद निकासी की ओर बढ़ रहे हैं?
मैं आपको बताना चाहता हूं कि हमने नोटबंदी पर ध्यान दिया, जिसमेंं 86 प्रतिशथ नकदी बैंकिंग व्यवस्था से हटा दी गई, आप फिर से व्यवस्था में नोट डालने की बात कर रहे हैं। बैंकिंग व्यवस्था से जितने नोट निकाले गए थे, उसका करीब 90 प्रतिशत फिर डाल दिया गया है। इस तरह से देखें तो 10 प्रतिशत कम नकदी होने से चीजें बेहतर चल रही हैं और लोगों ने डिजिटल तकनीक को स्वीकार किया है और अपनी आदत बदली है।
अगर नोटबंदी के पहले पीओएस पर डेबिट कार्ड से लेन देन 100 रुपये का था तो अब वह 190 रुपये हो चुका है। हां, यह सही है कि नोटबंदी के 2 महीने के दौरान डेबिट कॉर्ड का इस्तेमाल बहुत तेज बढ़ा था, लेकिन यह अब 100 से नीचे नहीं आ गया है। इस तरह से हम नए सामान्य स्तर की ओर बढ़े हैं। साफ है कि ग्राहकों की आदत में बदलाव हुआ है और अगर आप यूपीआई पर विचार करें तो यह नोटबंदी के पहले जहां शून्य के करीब था, आज एक साल बाद इससे 10 करोड़ से ज्यादा लेन देन हो रहा है और इसमें तेजी जारी है। उपभोक्ता देख रहे हैं कि छोटे डिजिटल भुगतान भी आसान हो गए हैं।
सरकारी व निजी क्षेत्र के तमाम बैंक अपने उत्पाद/तकनीकी विकास ग्राहकों के लिए तैयार कर रहे हैं, आप खुद को उनसे अलग कहां पाते है?
उपभोक्ताओं की जरूरतों को समझना अहम है। यह देखना है कि बैंक उन जरूरतों को पूरा करने के लिए किस तरह के सॉल्यूशंस मुहैया कराते हैं। हम सभी इस समय करीब 2 घंटे रोजाना मोबाइल पर बिताते हैं। लोगों से जुड़े रहने के अलावा हम इसका इस्तेमाल कैब बुक करने, सिनेमा का टिकट बुक करने सहित कई अन्य कामों में करते हैं। यही वजह है कि बाधारहित बैंकिंग सेवा प्रदान करना अहम हो गया है, जो ग्राहकों के उपयोग के अनुरूप हो। बैंक के रूप में हम ग्राहकों को उनकी जरूरत के मुताबिक सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। हमारे सभी सॉल्यूशंस का यह आधार है।
तकनीक की खूबसूरती यह है कि वह ग्राहकों को बेहतर अनुभव प्रदान करे। तकनीक में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है और उसी के मुताबिक ग्राहकों की उम्मीदें भी बदल रही हैं। उनकी जरूरतोंं को पूरा करने के लिए हमने नवोन्मेष प्रयोगशाला स्थापित की है, जिसे हम थॉट फैक्टरी कहते हैं। यहां स्टार्टअप समुदाय लगातार लगा रहता है और देश भर मेंं हम हैकाथन का आयोजन करते हैं। हमारा मुख्य मकसद है कि बैंंक के रूप मेंं हम नवोन्मेष पेश करें और लोगों की समस्याओंं का समाधान हो सके।
क्या आपको लगता है कि फिनटेक और भुगतान बैंक सामान्य बैंकों के लिए खतरा हैं?
अब यह सवाल आपको उनसे पूछना चाहिए कि अगर बैंक भी नवोन्मेषी डिजिटल सॉल्यूशन मुहैया करा रहे हैं और उपभोक्ताओंं को सेवाएं दे रही हैं तो फिनटेक या भुगतान बैंक किस तरह टिक पाएंगे। बैंकों को ब्रांड, भरोसा का लाभ है और उनके पास बड़ा वितरण नेटवर्क भी है ऐसे में भुगतान बैंक किस तरह से प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे? एक बात और ध्यान में रखी जानी चाहिए कि हम कर्ज मुहैया कराते हैं और भुगतान बैंकों को यह अधिकार नहीं है। उदाहरण के लिए हमारे उपभोक्ता पहले से मंजूरी या पहले से योग्य ग्राहक होने पर 5 सेकंड के भीतर हमाले डिजिटल प्लेटफॉर्म या किसी भी बैंक की शाखा से कर्ज ले सकते हैं और इन इकाइयों को इन सब सेवाओं से प्रतिस्पर्धा करनी है।
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