पिछड़े जिलों की विकास पहल | |
अभिषेक वाघमारे / 12 20, 2017 | | | | |
बिहार के खगडिय़ा, झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम, हरियाणा के मेवात और उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में आखिर क्या समानता है? ऊपरी तौर पर तो कोई समानता नहीं दिखती है लेकिन यह बात सही नहीं है। गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के लिहाज से ये जिले देश के सबसे पिछड़े जिले की फेहरिस्त में शीर्ष पर हैं और ये देश के 115 पिछड़े जिले में पहली बार रैंक वाली सूची में शामिल हुए हैं।
हालांकि ऐसा नहीं है कि 28 राज्यों के 115 जिले देश में 'अति पिछड़े' जिले हैं। प्रत्येक राज्य के पिछड़ेपन और इन राज्यों की वास्तविक लक्ष्य हासिल करने की क्षमता में संतुलन बनाने की कोशिश नीति आयोग ने सूची तैयार करते वक्त की है। इसके लिए पिछड़ेपन के पूर्ण स्तर को भी ध्यान में रखा गया। किसी दूसरे राज्य के मुकाबले इस सूची में झारखंड के सबसे ज्यादा 19 जिले शामिल किए गए हैं। इसके बाद बिहार का स्थान है जहां के 13 जिले इस फेहरिस्त में शामिल हैं। ग्रामीण-शहरी संपन्नता के बीच अंतर बढ़ रहा है वहीं मानव विकास सूचकांक और विकास से जुड़े विभिन्न अध्ययन लगातार क्षेत्रीय अंतर दिखा रहे हैं जो दरअसल वृद्धि के आंकड़ों में जाहिर नहीं होते। सरकार का मकसद अब ऐसी योजना तैयार करना है जिसका जोर पिछड़े क्षेत्रों को ऊपर उठाना और अंतर क्षेत्रीय विकास में संतुलन लाना है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के मुताबिक आगामी बजट में पूरी योजना पाइपलाइन में होगी। आधिकारिक दस्तावेजों की मानें तो वर्ष 2022 तक 'न्यू इंडिया' बनाने की दिशा में यह एक अहम पहल है।
केंद्र सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी को प्रत्येक जिले का प्रभारी बनाया गया है जिन्हें राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी सहयोग देंगे और ये मिलकर जिलाधिकारी, जिला आयुक्त से विकास मानकों से जुड़े आंकड़े जुटाएंगे। साथ ही यह समझने की कोशिश होगी किस तरह का और कितना पिछड़ापन है। इसके अलावा लक्षित तरीके से मौजूदा योजनाओं (स्थान के आधार पर अस्थायी तौर पर) पर अमल करने की कोशिश की जाएगी और इससे संकेतकों के लिए बेहतर आंकड़ा तैयार हो सकेगा। उप महानिदेशक और नीति आयोग में वरिष्ठ सलाहकार राकेश रंजन का कहना है, 'ऐसा पहली बार हो रहा है जब अनुभवी केंद्र सरकार के प्रभारी अधिकारी अपनी सूझ-बूझ को राज्य अधिकारी और जिला प्रशासकों के साथ साझा करेंगे ताकि सुधार वाले विकास संकेतकों के रूप में नतीजा निकले।' हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब देश के पिछड़े क्षेत्रों का खाका तैयार किया जा रहा है बल्कि पहली बार जिला स्तर के आंकड़ों का इस्तेमाल कर चार मानकों के आधार पर सूचकांक तैयार कर रैकिंग तय की गई है। गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के चार मानकों पर जिला स्तर के मौजूदा आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है ताकि जिला पर आधारित डेटा तैयार किया जा सके। गरीबी को 25 फीसदी, स्वास्थ्य को 30 फीसदी, शिक्षा पर 15 फीसदी और बुनियादी ढांचा के लिए 30 फीसदी तवज्जो देकर नीति आयोग ने प्रत्येक मानक के लिए एक सूचकांक तैयार करते हुए 115 जिले का चयन इसी सिद्धांत के आधार पर किया है। बुनियादी ढांचे के सूचकांक की गणना चार संकेतकों, बिजली, सड़क, शौचालय और पीने योग्य पानी का इस्तेमाल कर की गई है।
पुरानी व्यवस्था में बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड (बीआरजीएफ) जो करीब एक दशक तक 2007 से 2017 तक चली उसमें 272 जिले (2007 की मूल सूची के 250 जिले से अधिक) शामिल थे जो देश के सभी जिले का लगभग 40 फीसदी हिस्सा है। लेकिन ऐसा महसूस किया गया कि यह प्रस्ताव बेहद व्यापक है और राज्यों द्वारा पूंजी का पर्याप्त इस्तेमाल नहीं हो रहा है जिन्हें अंतिम रूप से इसका क्रियान्वयन करना था। ऐसे में नीति आयोग सरकार ने एक प्रशासन संरचना का इस्तेमाल कर व्यावहारिक लक्ष्य के साथ इस योजना पर अमल करने का फैसला किया जिससे लंबे समय तक के लिए जवाबदेही सुनिश्चित होगी। रंजन ने कहा, 'नई योजना बीआरजीएफ की परवर्ती योजना नहीं होगी बल्कि यह पिछड़ेपन को दूर करने और इसे कम करने का एक नया तरीका होगा।'
बीआरजीएफ योजना अपनी दूरदर्शिता में सफल नहीं रही जिसका खुलासा विभिन्न मूल्यांकन शोध करते हैं। महज एक-तिहाई फंडों का इस्तेमाल राज्यों ने किया। स्वीकृत कार्यों में से 10 फीसदी पर कोई काम नहीं हुआ, दो-तिहाई काम पूरे हुए जबकि एक-तिहाई सर्वे वाले जिलों को क्षमता निर्माण के लिए अनुदान मिला। करीब 2,840 करोड़ रुपये की स्वीकृत रकम का महज 5 फीसदी हिस्से का इस्तेमाल राज्यों ने अपने परिचालन के अंतिम वर्ष (2014-15) में किया। प्रशासनिक और प्रक्रियागत देरी, भूमि अधिग्रहण की समस्या और समय-समय पर निगरानी न होने की वजह से योजना पर कोई काम नहीं हो पाया जिसकी वजह से 2015-16 में केंद्र ने अपना समर्थन देना बंद कर दिया। करीब 115 जिले में से 35 जिले नक्सली प्रभाव में होने की वजह से इस सूची मेंं शामिल हैं। इस योजना का इरादा जिले के विकास के दौरान अलग जगहों के लिए अलग रणनीति अपनाना है लेकिन प्रशासन प्रक्रिया में एकरूपता सबसे ऊपर है। इस योजना के जरिये किसी विशेष जिले के विकास के लिए आंकड़े जुटाने के लिए बेहतर प्रणाली तैयार करना है और इसका इस्तेमाल अमलीकरण के अंतर को भरना है।
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