दो साल बाद मैगी पर फिर संकट! | विवेट सुजन पिंटो और अर्णव दत्ता / मुंबई/नई दिल्ली November 29, 2017 | | | | |
बुधवार को इंस्टैंट नूडल ब्रांड मैगी उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में आयोजित प्रयोगशाला जांच में विफल रहने की वजह से सुर्खियों में आ गया। मई 2015 में इसके नूडल में सीसे की मात्रा पाए जाने और 2016 में इस मामले को निपटाए जाने के बाद अब नेस्ले इंडिया द्वारा निर्मित मैगी में राख की मात्रा अत्यधिक पाए जाने से संकट के बादल घिर गए हैं। इससे कंपनी और नियामक के बीच संबंधों में फिर से तल्खी घुलती दिख रही है।
हालांकि पिछले कुछ महीनों में नियामक की जांच के दायरे में आने वाली नेस्ले अकेली कंपनी नहीं है। बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेेद भी इस साल अपने आटा नूडल्स और आंवला जूस से संबंधित खाद्य सुरक्षा मानकों के उल्लंघन की वजह से इस साल दो बार सुर्खियों में आई। इस सालके शुरू में राज्य में खाद्य सुरक्षा पर नजर रखने वाले महाराष्ट्र खाद्य एवं दवा प्रशासन (एफडीए) ने हार्डकैसल रेस्टोरेंट्ïस से सिर्फ चेतावनी लेबल के साथ ही सॉफ्ट-डिंक बेचने को कहा था। हार्डकैसल रेस्टोरेंटï्ïस पश्चिम और दक्षिण भारत में मैकडॉनल्ड के आउटलेट चलाती है।
शाहजहांपुर में एफडीए के जिला कार्यालय ने मैगी नूडल की निर्माता नेस्ले इंडिया और इलाके की इसकी ट्रेड पार्टनर को नोटिस भेजा है और खाद्य सुरक्षा नियम के उल्लंघन के चलते 71 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति मांगी है। यूपी एफडीए ने नूडल के नमूने में राख की उच्च मात्रा पाई और इसके बाद कंपनी को नोटिस जारी किया। नेस्ले इंडिया को नोटिस की प्रति नहीं मिली है, लेकिन कंपनी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि प्रयोगशाला की रिपोर्ट शायद गुणवत्ता मानक के आधार पर तैयार की गई होगी, जो अब अप्रचलित है। हालांकि लाखों ग्राहकों व इसके संरक्षकों के सामने सवाल पैदा हो रहा है कि नूडल प्रयोगशाला की जांच में कैसे नाकाम रही, जबकि यह मामला 2016 में सुलझ गया था।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मुख्य कार्याधिकारी पवन कुमार अग्रवाल ने कहा कि उन्हें अभी इस मामले पर विचार करना है। उन्होंने कहा, 'हम इस मामले पर गंभीरता से नजर रख रहे हैं। हमने इस बारे में न तो कंपनी (नेस्ले) और न ही राज्य की संस्था (यूपीएफडीए) से कुछ सुना है। हां यह सही है कि हमने नूडल्स के लिए मानकों और राख की मात्रा में संशोधन किया है जिसमें अघुलनशील एसिड राख को अलग रखा गया है। हां जब बात एसिड अघुलनशील राख की हो तो एफएसएसएआई द्वारा इसके लिए सीमा तय की गई है और यह देखना होगा कि क्या नए मानकों (नूडल्स के लिए) के आधार पर इस सीमा का उल्लंघन हुआ है।'
एफएसएसएआई ने खाद्य कंपनियों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद पिछले साल पैकेज्ड फूड में राख की मात्रा देागुनी कर दो फीसदी कर दी थी। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के उप महानिदेशक चंद्र भूषण का कहना है कि वे इसे लेकर आश्चर्यचकित नहीं हैं कि खाद्य कंपनियों और नियामकों (केंद्र या राज्य) के बीच खाद्य नियमन को लेकर मतभेद पैदा हुआ है। वह कहते हैं, 'पर्यावरण की तरह खाद्य सुरक्षा भी बेहद गंभीर मुद्दा है, क्योंकि यह लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। ऐसे में यदि कंपनियां इसकी अनदेखी कर रही हैं तो नियामक भी अपना काम कर रहा है।'
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