सौर उद्योग को अब है धूप की तलाश | |
श्रेया जय / 11 06, 2017 | | | | |
चीन से आयात होने वाले सोलर पैनल व मॉड्यूल पर अंकुश से मदद मिल सकती है लेकिन
कम मांग और क्षमता की समस्या है बरकरार
गुजरात के मुंद्रा में स्थित अदाणी विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) में आयातित कोयले पर आधारित दो मेगा पावर परियोजनाएं हैं। आजकल इस एसईजेड में एक मेगा ग्रीन योजना जोरशोर से चल रही है। अदाणी ग्रीन एनर्जी ने वहां 1,200 मेगावॉट क्षमता का सोलर सेल और मॉड्यूल इकाई स्थापित की है। देश में सोलर पैनल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इस इकाई में उत्पादन शुरू हो गया है। यह मुंद्रा बंदरगाह में जीवाश्म ईंधन से जुड़े ढांचों, कोयला संयंत्र और दूसरी विनिर्माण इकाइयों के बीच स्थित अपनी तरह का एकमात्र केंद्र है और इस बदलाव का संकेत है कि भारतीय उद्योग जगत को अपने ऊर्जा मिश्रण की समीक्षा करने की जरूरत है। इस इकाई में रोबोटिक्स सहित अत्याधुनिक तकनीक और सौर ऊर्जा क्षेत्र की दुनिया की जानीमानी कंपनियों के उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें करीब 2,000 लोगों को रोजगार मिला है।
इस इकाई का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह ऐसे वक्त स्थापित की गई है जब चीन में बने सस्ते सोलर पैनलों की भारतीय बाजार में बाढ़ आ गई है। अदाणी ग्रीन एनर्जी के अधिकारियों का दावा है कि उनकी तकनीक दुनिया की बेहतरीन तकनीक के माफिक है लेकिन प्रतिस्पर्धी कीमत और मांग उनके लिए चुनौती बनी हुई है। चीन से आयात होने वाले सोलर पैनल भारतीय कंपनियों से 10 से 20 फीसदी तक सस्ते हल्के होते हैं। साल 2010 में राष्ट्रीय सौर मिशन की शुरुआत से ही चीन के सोलर पैनल भारत आने शुरू हो गए थे। पिछले तीन वर्षों के दौरान पैनल की कीमत 50 सेंट प्रति किलोवॉट प्रति घंटे से घटकर 32 किलोवॉट प्रति घंटा रह गई है। इसका कारण यह है कि दुनिया में इनका उत्पादन मांग से ज्यादा बढ़ गया है। सोलर मॉड्यूल बनाने वाली घरेलू कंपनियों ने चीन से सस्ते आयात पर डंपिंग ड्यूटी लगाने के लिए एंटी डंपिंग महानिदेशालय से दूसरी बार अनुरोध किया है।
सोलर पैनल बनाने वाली भारतीय कंपनियों की संस्था इंडियन सोलर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईएसएमए) ने आयातकों पर पिछली तारीख से शुल्क लगाने की मांग की है। उनका तर्क है कि आयात के कारण घरेलू कंपनियों को नुकसान हुआ है। सोलर सेल बनाने वाली भारतीय कंपनियों की कुल स्थापित क्षमता करीब 1,386 मेगावॉट और मॉड्यूल की क्षमता करीब 2,500 मेगावॉट है। मांग के कारण इस क्षमता का 20 फीसदी से भी कम उपयोग हो पा रहा है। देश की कुल सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता में से 75 फीसदी से अधिक में चीन से आयातित सेलों का, 15 फीसदी अमेरिका से मंगाई गई सेलों का और शेष में घरेलू कंपनियों की सेलों का इस्तेमाल किया गया है।
भारत में सौर ऊर्जा की मौजूदा स्थापित क्षमता 10,000 मेगावॉट है। लेकिन सरकार ने 2022 तक इसे 100 गीगावॉट पहुंचाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। सौर पैनल बनाने वाला उद्योग इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं हैं कि सरकार का यह लक्ष्य उनके लिए अच्छे दिन लाएगा या नहीं। टाटा पावर सोलर के मुख्य कार्याधिकारी और कार्यकारी निदेशक आशीष खन्ना ने कहते हैं, 'हमें सौर ऊर्जा क्षमता की बढ़ती मांग को पूरा करने की तैयारी का समय नहीं मिला। साथ ही चीनी उत्पादों से भारतीय बाजार पट गया। हमारे यहां अक्षय ऊर्जा उत्पादन में अचानक तेजी आई लेकिन इसमें निर्माण की बाधाओं को ध्यान में नहीं रखा गया।'
कैसी बाधाएं? इसका जवाब कंसल्टेंसी ब्रिज ऑफ इंडिया के पास है। कंपनी के ताजा सीईओ सर्वेक्षण के मुताबिक सौर ऊर्जा क्षेत्र के 55 फीसदी सीईओ का मानना है कि कीमतों में भारी गिरावट के कारण भारत को घटिया उपकरणों का निर्यात किया जा रहा है। चीन से आ रहे सस्ते आयात के कारण देश में 85,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश निष्क्रिय पड़ा है। उद्योग के एक विश्लेषक ने कहा कि यह खुद को नुकसान पहुंचाने वाला उद्योग बन गया है।
खन्ना का मानना है कि आयात पर डंपिंग ड्यूटी लगाने से शायद ही कोई फायदा होगा क्योंकि देश में सौर पैनलों के निर्माण के लिए माहौल नहीं है। आमतौर पर सोलर मॉड्यूल के 25 साल तक काम करने की गारंटी होती है। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हर साल चीन में पांच में से एक कंपनी बाजार से बाहर हो रही है। इस तरह इस बात की पूरी संभावना है कि पांच साल में सभी कंपनियां बाहर हो जाएंगी। फिर आप उन्हें कहां ढूंढते फिरेंगे।
हाल में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने हाल ही में सोलर पैनल सहित सौर ऊर्जा परियोजनाओं में लगने वाले उपकरणों के लिए नए मानक बनाए हैं। इसका मकसद घटिया उपकरणों के इस्तेमाल पर रोक लगाना है और घरेलू तथा आयातित दोनों तरह के पैनल इसके दायरे में आएंगे। मंत्रालय ने विभिन्न उपकरणों के लिए 6 मानक बनाए हैं। इनमें सौर ऊर्जा परियोजनाओं में इस्तेमाल होने वाली सोलर पैनल और बैटरियों सहित विभिन्न उपकरणों के लिए 6 मानक तय किए हैं। ये मानक भारतीय मानक ब्यूरो कानून के तहत डिजाइन किए गए हैं और ब्यूरो के ही दायरे में आएंगे। हिंदुस्तान पावर के चेयरमैन रतुल पुरी ने कहा, 'यह अच्छा कदम है जिससे घटिया गुणवत्ता का आयात हतोत्साहित होगा और यह खुदरा उत्पादन और छतों पर सोलर पैनल लगाने की श्रेणी में बहुत लाभदायक रहेगा जहां लक्षित उपभोक्ता तकनीकी रूप से दक्ष नहीं है।'
उधर सौर ऊर्जा उद्योग कारोबारी अवसरों की तलाश में है। राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत शुरुआत में सौर परियोजनाओं के एक हिस्से को घरेलू कंपनियों के लिए आरक्षित रखा गया था लेकिन विश्व व्यापार संगठन ने इसे खारिज कर दिया। टाटा पावर के खन्ना खुदरा उत्पादन पर दांव लगा रहे हैं। खुदरा उत्पादन का मतलब घरों या छोटे कारोबारियों द्वारा छोटे पैमाने पर सौर ऊर्जा उत्पादन से है। उन्होंने कहा कि इस क्षमता को घरेलू उद्योग के लिए आरक्षित रखना सही और व्यावहारिक है क्योंकि वहां कम प्रतिस्पर्धा है। उन्होंने कहा, 'हम छतों पर लगने वाले, कृषि में काम आने वाले सौर पंप और खुदरा उत्पादन से जुड़े उपकरणों का निर्माण भारतीय कंपनियों के लिए आरक्षित कर सकते हैं। गुणवत्ता मानकों के साथ इससे हमें स्थायी कारोबारी मॉडल मिलेगा। इस तरह जब इसमें अवसर बढ़ेंगे तो फिर घरेलू सौर उद्योग भी बढ़ेगा।' 2022 के लिए निर्धारित 100 गीगावॉट के लक्ष्य में से छतों पर लगे सोलर पैनल की हिस्सेदारी 40 गीगावॉट होगी।
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