आयुर्वेद के योग से अमीरी का संजोग | अर्णव दत्ता / September 29, 2017 | | | | |
देश की सबसे तेजी से बढ़ रही उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों में से एक पतंजलि आयुर्वेद के वास्तविक प्रमुख आचार्य बालकृष्ण करीब एक साल पहले उस समय सुर्खियों में आए थे जब उन्हें अरबपतियों की सूची में शामिल किया गया था। अलबत्ता हाल में जारी हूरून इंडिया रिच लिस्ट के मुताबिक 45 साल के बालकृष्ण देश के सबसे अमीर लोगों की सूची में आठवें स्थान पर पहुंच गए हैं। उन्होंने दूरसंचार क्षेत्र की प्रमुख कंपनी एयरटेल के कर्ताधर्ता सुनील मित्तल को भी पछाड़ दिया है और वह दिग्गज उद्योगपति गौतम अदाणी के बेहद करीब पहुंच गए हैं। बालकृष्ण सुनील मित्तल से दो स्थान ऊपर हैं और अदाणी से एक पायदान नीचे। बालकृष्ण की संपत्ति जिस हिसाब से बढ़ रही है वह भी चौंकाने वाली है। उनके पास अभी 70,000 करोड़ रुपये की संपत्ति है जो पिछले साल की तुलना में दोगुना से भी ज्यादा है।
गैरसूचीबद्घ कंपनी पंतजलि आयुर्वेद में बालकृष्ण की करीब 94 फीसदी हिस्सेदारी है लेकिन वह वेतन और लाभांश नहीं लेते हैं। वह दो दर्जन से अधिक कंपनियों के बोर्ड में हैं जिसमें से अधिकांश कंपनियां पतंजलि की हैं। लेकिन उनके दफ्तर में कंप्यूटर नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के नाम पर उनके पास ऐपल का एक आईफोन है। नेपाली दंपती सुमित्रा देवी और जय वल्लभ के घर 1972 में पैदा हुए बालकृष्ण के जीवन में अहम मोड़ 1980 के दशक के आखिरी वर्षों में उस समय आया जब उनकी योग गुरु बाबा रामदेव से हरियाणा के कलवा गुरुकुल में मुलाकात हुई। 21वीं शताब्दी के अधिकांश हाई प्रोफाइल प्रबंधन पेशेवरों के बरक्स बालकृष्ण के पास प्रबंधन या इंजीनियरिंग की डिग्री नहीं है। उन्होंने संस्कृत साहित्य और आयुर्वेद की औपचारिक शिक्षा ली है। लेकिन ऐसा लगता है कि ये खामियां कॉरपोरेट जगत में उनके उभार में बाधक नहीं बनी हैं।
सच्चाई यह है कि पतंजलि उत्पादों के लॉन्च और बाजार में उनकी चौंका देने वाली सफलता से बालकृष्ण को कोई नहीं जानता था। अलबत्ता उनके मार्गदर्शक बाबा रामदेव सुर्खियों में थे लेकिन कारोबारी कारणों से नहीं। रामदेव ने 2011 में कांग्रेस की अगुआई वाली तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के खिलाफ भ्रष्टïाचार निरोधक आंदोलन चलाया था। इसके अलावा उन्होंने देश में सक्रिय कई बहुराष्टï्रीय कंपनियों के खिलाफ भी आंदोलन की अगुआई की थी। रामदेव की करीबी का बालकृष्ण को फायदा हुआ।
भाजपा की सरकार बनने के बाद पतंजलि का कारोबार दिन दोगुना रात चौगुना बढ़ा। 2011-12 और 2013-14 कंपनी की चक्रवृद्घि वार्षिक दर 62.4 फीसदी रही। लेकिन इसके बाद कंपनी ने जो छलांग लगाई उसके सामने यह वृद्घि दर कुछ भी नहीं है। वर्ष 2014-15 और 2016-17 के दौरान पतंजलि की चक्रवृद्घि वार्षिक दर 98.7 फीसदी रही जबकि इस क्षेत्र की वृद्घि दर 10 फीसदी रही। मार्च 2017 में कंपनी का कुल वार्षिक राजस्व 9,300 करोड़ रुपये पार कर गया जो 5 साल पहले की तुलना में करीब 20 गुना ज्यादा है।
कंपनी ने अपना हालिया लेखाजोखा कंपनी रजिस्ट्रार के पास दाखिल नहीं किया है और इसके उत्पाद सामान्य मानक प्रमाणन के अधीन नहीं है। फिर भी कंपनी ने बैंकों से 320 करोड़ रुपये का ऋण लिया है। उसकी फूड पार्क स्थापित करने के लिए बैंकों से और 5,000 करोड़ रुपये ऋण लेने की योजना है। कंपनी ऐसे वक्त बैंकों से ऋण लेने की कोशिश में है जब फंसे ऋण के कारण बैंक ऋण देने के इच्छुक नहीं है।
पतंजलि समूह ने बालकृष्ण को आचार्य की उपाधि दी है लेकिन वह कंपनी की सफलता का श्रेय नहीं लेना चाहते। उनका कहना है कि उन्हें कभी भी संपत्ति या प्रसिद्घि की चाहत नहीं रही बल्कि वह देश सेवा करना चाहते थे। उनका कहना है कि पतंजलि की वृद्घि उसी समर्पण का परिणाम है। बालकृष्ण के लंबे और उतार-चढ़ाव भरे सफर में विवादों का भी साथ रहा। जून 2012 में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने धोखाधड़ी के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया था लेकिन लगता है कि उस मामले में तबसे ज्यादा प्रगति नहीं हुई है। वह स्वदेशी विचारधारा को बढ़ावा देने, भ्रष्टïाचार मुक्त समाज बनाने और शिक्षा तथा संस्कृति के भारतीयकरण की बात करने वाले लोगों की जमात में शामिल हैं।
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