इमली चलाती है बस्तर के ग्रामीणों की आजीविका | बीएस संवाददाता / जगदलपुर September 27, 2017 | | | | |
जगदलपुर सहित बस्तर जिले में इमली आदिवासियों के एक बड़े वर्ग की आजीविका का प्रमुख साधन है। इमली तोडऩे से लेकर इसे फूल में बदलने और चपाती बनाने तक ग्रामीण इलाकों के घरों में बड़े बुजुर्ग तथा बच्चे तक इस काम में जुटे होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक बस्तर में हर साल तकरीबन 500 करोड़ रुपये का इमली का कारोबार होता है, वहीं ग्रामीण अंचलों के आदिवासी संग्राहकों का एक मुख्य व्यवसाय इमली की चपाती बनाना है।
बस्तर जिले में रहने वाले आदिवासियों का इमली के पेड़ हैं। इनमें कई ग्रामीण तो ऐसे भी हैं जिनके घर के आसपास डेढ़ दर्जन से अधिक पेड़ हैं। इमली के मौसम में वे इसकी तुड़ाई करते हैं। इसके बाद इसका संग्रहण करने का कार्य किया जाता है और पूरी तरह से तैयार कर इमली को बाजारों में बेचा जाता है। कई बार तो इमली तोडऩे को लेकर ग्रामीण तकरीबन एक महीने पहले से ही तैयारी कर लेते हैं। इमली तोडऩे के बाद छिलके उतारने का काम होता है। छिली इमली को आंटी कहा जाता है। इसमें इमली के बीज और रेशे मौजूद होते हैं। बाद में इससे रेशा और बीज निकाला जाता है, जिसे फूल इमली कहा जाता है। फूल इमली बनाने के बाद इसकी चपाती बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। फूल इमली को लेकर ग्रामीण संग्राहक इसे करीने से जमाकर इसे चपाती का रूप देते हैं, जिसके बाद धूल व गर्द से बचाने इसे एक पॉलिथीन में पैक कर दी जाती है।
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