सत्ता का सेमीफाइनल और कांग्रेस | बीएस संवाददाता / August 06, 2017 | | | | |
गुजरात- अंतर्कलह और दुश्वारियां
कांग्रेस गुजरात में 19 साल से सत्ता से बाहर है और उसके लिए इस पश्चिमी राज्य की सत्ता को भाजपा से छीनना कतई आसान नहीं है। गुजरात कांग्रेस में चल रही रस्साकशी के बीच दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ दिया है जो इस बात का संकेत है कि पार्टी के लिए आगे की राह कितनी मुश्किल होने वाली है। वाघेला राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस में आए थे। वह पिछले कुछ समय से भरत सिंह सोलंकी को हटाकर उन्हें गुजरात कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की मांग कर रहे थे। लेकिन पार्टी हाई कमान ने उनकी इस मांग को मानने से इनकार कर दिया। वाघेला की विदाई से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल की फिर से राज्य सभा पहुंचने की उम्मीदों को भी झटका लग सकता है। खबरों के मुताबिक कांग्रेस के 8 विधायकों ने राष्टï्रपति चुनाव में राजग उम्मीदवार को वोट दिया था। इससे पार्टी रणनीतिकारों की चिंता बढ़ गई है। सोनिया के वफादार और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के महासचिव अशोक गहलोत गुजरात के प्रभारी हैं लेकिन सूत्रों का कहना है कि उनकी नियुक्ति देरी से हुर्ई। गहलोत को गुरुदास कामत की जगह यह जिम्मेदारी सौंपी गई है जिन्होंने राज्य इकाई से नाराजगी के कारण पार्टी में सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। कांग्रेस ने प्रभावशाली पटेल समुदाय को रिझाने के लिए हार्दिक पटेल को अपने पाले में करने की कोशिश की लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।
मध्य प्रदेश - वरिष्ठ नेताओं का साथ रखने की चुनौती
मध्य प्रदेश में कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ जैसे दिग्गज नेताओं के धड़ों में बंटी है। यही वजह है कि कांग्रेस आला कमान राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए किसी एक चेहरे को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश नहीं कर पा रही है। राज्य इकाई के प्रमुख अरुण यादव तटस्थ माने जाते हैं लेकिन उनका राजनीतिक कद बड़ा नहीं है और वह पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश नहीं भर पाए हैं। सूत्रों के मुताबिक मंदसौर में हाल में पुलिस गोलीबारी में किसानों की मौत के मुद्दे पर राज्य के कांग्रेसी नेताओं को एकजुट होने का मौका मिला था लेकिन पार्टी इसे किसानों में व्याप्त रोष को भुनाने में नाकाम रही। दिग्विजय की संगठन पर मजबूत पकड़ है और वह खुद को राज्य की राजनीति में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए पूरे राज्य में पैदल मार्च की योजना बना रहे हैं। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ व्यापम घोटाले का मुद्दा उठाया था लेकिन यह मतदाताओं पर असर छोडऩे पर नाकाम रहा।
हिमाचल प्रदेश-पहाड़ सी चुनौती
वरिष्ठï नेता अंबिका सोनी ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से उन्हें हिमाचल के प्रभारी पद से मुक्त करने का अनुरोध किया था। इसके बाद पार्टी आलाकमान ने यह जिम्मेदारी एआईसीसी के महासचिव सुशील कुमार शिंदे को सौंपी है। इसी साल पार्टी को हिमाचल से सटे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में हार का सामना करना पड़ा था। उत्तराखंड की प्रभारी भी अंबिका ही थीं। कांग्रेस को शिमला नगर निगम में चुनावों में भी हार झेलनी पड़ी थी। इन चुनावों में भाजपा को 17 और कांग्रेस को 12 वार्ड में जीत मिली थी। इस निगम पर पिछले 15 साल से कांग्रेस का कब्जा था। वर्ष 2012 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह की अगुआई में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। लेकिन वित्तीय अनियमितताओं के कारण वीरभद्र केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच से जूझना पड़ रहा है। भाजपा भ्रष्टïाचार और कामकाज के मुद्दे पर उन्हें घेरने की तैयारी में है। सूत्रों के मुताबिक अंबिका ने वीरभद्र और राज्य इकाई के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के बीच मतभेद सुलझाने में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन यह समस्या अभी खत्म नहीं हुई है। पार्टी पर अब भी वीरभद्र की मजबूत पकड़ है और बागियों के हौंसले पस्त हैं।
कर्नाटक - कुर्सी के लिए मारामारी
सोनिया गांधी ने पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले मुख्यमंत्री सिद्घरमैया की अगुआई में फिर से विधानसभा चुनावों में उतरने का फैसला किया है। अलबत्ता उनके काम करने का तरीका और पार्टी में हैसियत राज्य के कई वरिष्ठï नेताओं को नागवार गुजरी है। इस तरह की अफवाहें थी कि राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष जी परमेश्वर को हटाया जा सकता है लेकिन पार्टी ने एस आर पाटिल को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। पिछले साल दिनेश गुंडू राव को भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। बड़े राज्यों में अब केवल कर्नाटक में ही कांग्रेस की सरकार है। एआईसीसी के महासचिव के सी वेणुगोपाल को राज्य का नया प्रभारी बनाया गया है। वह राष्टï्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के मार्गदर्शन में राज्य इकाई में एक नई कार्यशैली लाने की कोशिश कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता एस एम कृष्णा भाजपा में शामिल हो चुके हैं और जिससे मांड्या और हासन जैसे वोक्कालिगा बहुल इलाकों में कांग्रेस की संभावनाएं प्रभावित होंगी। पार्टी विधायकों और स्थानीय नेताओं के बीच संवाद की कमी को भांपते हुए वेणुगोपाल ने अपने सहयोगियों से पूरे राज्य का दौरा करने और जमीनी स्तर पर जनता का मूड़ का पता लगाने को कहा है। उन्होंने मुख्यमंत्री को भी विधायकों और स्थानीय नेताओं के बीच संवाद की कमी को जल्दी से जल्दी दूर करने को कहा है।
राजस्थान- कठिन चुनौती
कांग्रेस के लिए सबसे अधिक संभावनाएं राजस्थान में ही हैं। राज्य इकाई के अध्यक्ष सचिन पायलट पार्टी में नई जान फूंकने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरह पायलट भी पिछड़ी जाति से संबंध रखते हैं। गहलोत को गुजरात की जिम्मेदारी दी गई है लेकिन राजस्थान की राजनीति में उनका प्रभाव और दखल अब भी है। एक अन्य वरिष्ठï नेता सी पी जोशी ने कभी भी राज्य की राजनीति से नजरें नहीं हटाई हैं। जोशी ब्राह्मïण हैं। पायलट पार्टी को एकजुट रखने में सफल रहे हैं। उन्होंने स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं को एकजुट किया है है और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कार्यशैली पर हमले किए हैं। राजे की कार्यशैली से भाजपा नेतृत्व भी खुश नहीं है। पायलट की सबसे बड़ी चुनौती अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले सत्ता विरोधी लहर को भुनाना है। उन्हें सोनिया और राहुल गांधी का आशीर्वाद प्राप्त है और यह बात उन्हें अगले विधानसभा चुनावों में अपने विरोधियों को गलत साबित करने में मददगार हो सकती है।
छत्तीसगढ़ - टकराव की परंपरा
छत्तीसगढ़ में पार्टी लंबे समय से अंतरकलह से जूझ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के मनमौजी बयानों से एआईसीसी के रणनीतिकारों और राज्य इकाई के प्रमुख भूपेश बघेल को खासी परेशानी हुई है। बी के हरिप्रसाद के छत्तीसगढ़ के प्रभारी पद से इस्तीफा देने के लंबे समय बाद पार्टी ने हाल में उत्तर प्रदेश के दलित नेता पी एल पूनिया को यह जिम्मेदारी सौंपी है। जोगी के कारण कांग्रेस को 2013 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में शिकस्त का सामना करना पड़ा था। जोगी अब नई पार्टी बनाकर कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं लेकिन वह कांग्रेस के दलित वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं। अलबत्ता कांग्रेस विधायक दल के नेता टी एस सिंहदेव ने राज्य इकाई और केंद्रीय नेतृत्व के बीच संतुलन बिठाने का सफल रहे हैं।
|