सूचीबद्धता समय घटाकर 3 दिन कर सकता है सेबी | ऐश्ली कुटिन्हो / मुंबई July 21, 2017 | | | | |
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) किसी प्रतिभूति को सूचीबद्ध कराने में लगने वाला वक्त घटाने की योजना बना रहा है और इसका इरादा आरंभिक सार्वजनिक निर्गम के बंद होने की तारीख से तीन दिन के भीतर सूचीबद्धता का काम पूरा कराने का है जबकि पहले चार दिन में ऐसा कराने की योजना बनी थी। अभी सार्वजनिक निर्गम के बंद होने के बाद छह दिन में यह सूचीबद्ध होता है। विशेषज्ञों ने कहा, सूचीबद्धता की समयसीमा घटाकर तीन दिन किए जाने से बाजार के उतारचढ़ाव का असर कम करने में मदद मिलेगी।
1 जनवरी 2016 को सेबी ने शेयरों की सूचीबद्धता अवधि 12 दिन से घटाकर 6 दिन कर दिया था। निवेशकों को अपने आवेदन बैंकों, ब्रोकरों, डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट्स और रजिस्ट्रार व ट्रांसफर एजेंट को देने की अनुमति मिली थी। पहले ये आवेदन सिर्फ बैंक व ब्रोकरों के जरिए ही भेजे जा सकते थे। नियामक ने ऐप्लिकेशन सपोर्टेड बाय ब्लॉक्ड अमाउंट (अस्बा) का इस्तेमाल हर श्रेणी के निवेशकों के लिए अनिवार्य कर दिया था। इसमें आईपीओ आवेदक के खाते से तब तक रकम नहीं निकलती जब तक कि शेयर का आवंटन नहीं हो जाता। इससे शेयर आवंटन न होने पर रिफंड की दरकार नहीं पड़ती। अस्बा ने सूचीबद्धता का समय घटाने में अहम भूमिका निभाई है और विशेषज्ञों का कहना है कि तीन दिन में सूचीबद्धता पूरी करने के लिए बड़े बदलाव की जरूरत होगी कि कैसे आईपीओ का वितरण होता है।
प्राइम डेटाबेस के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा, मूल रूप से पूरे बैंकिंग सिस्टम को अस्बा के दायरे में लाने पर ध्यान होना चाहिए। अभी भी कई शाखाएं अस्बा नहीं संभाल पाती और यह कई खुदरा निवेशकों को परेशानी में डालता है। ऐसे में उनके आवेदन को किसी शहर में भेजा जाता है जो अस्बा के लिहाज से सक्षम शाखा हो, जिसमें वक्त लगता है। अब करीब-करीब सभी बैंक कोर बैंकिंग सॉल्यूशन के तहत हैं, ऐसे में इस तरह की नेटवर्किंग आसानी से हो सकती है। इससे निवेशकों का आधार बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। अस्बा फॉर्म मोटे तौर पर विभिन्न शहरों में एक केंद्र पर इकट्ठा किए जाते हैं। ऐसी करीब 60 बैंक शाखाएं 50-60 शहरों में फैली हुई है और बैंकों को फॉर्म की डिलिवरी करना ब्रोकरों का भारी-भरकम काम बन गया है।
विशेषज्ञों ने कहा, सूचीबद्धता की समयसीमा घटाने के लिए दो चीजें की जा सकती हैं। पहला, आईपीओ का समय चार दिन से घटाकर तीन दिन कर दिया जाए - एक दिन एंकर निवेशकों के लिए और दो दिन खुदरा, एचएनआई और संस्थागत निवेशकों के आवेदन के लिए। दूसरा, अस्बा के बजाय सूचीबद्धता के लिए ओएफएस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
पीएल कैपिटल मार्केट्स के उपाध्यक्ष दारा कल्याणीवाला ने कहा, बड़े ओएफएस इश्यू (खास तौर से सरकारी इकाइयों के) सिर्फ दो दिन के लिए खुले और इसका प्रबंधन आसानी से हुआ। सेबी को आईपीओ भी ओएफएस की तरह अंजाम देने की अनुमति देनी चाहिए। एक फायदा यह भी होगा कि हर आवेदक एक ब्रोकर के पास क्लाइंट के तौर पर पंजीकृत हो जाएंगे, ऐसे में इस तरह का कोई मामला नहीं होगा जहां ब्रोकर के पास गैर-पंजीकृत निवेशक बोली के लिए संपर्क करेंगे। ब्रोकर निवेशक को नहीं जानता हो, केवाईसी न हुआ हो, तो एक अन्य ब्रोकर को फॉर्म स्वीकार कर उनके बदले बोली लगानी होगी। इसके करोड़ों रुपये बचेंगे क्योंकि बोली का कोई फॉर्म तैयार नहीं करना होगा और अस्बा फॉर्म की डिलिवरी के लिए बैंकों के पास जाने की दरकार नहीं होगी।
|