ट्रक पर रिपोर्टर : ट्रकों की कतार, ढाबे गुलजार, परिवार का इंतजार | |
एन सुंदरेश सुब्रमण्यन / 07 18, 2017 | | | | |
जीएसटी ने ट्रक ड्राइवरों का जीवन प्रभावित किया है, लेकिन यह अकेला कारण नहीं है
रघु और नागेंद्र के ट्रकों के साथ एनएच-8 और एनएच-79 पर सफर मुंबई जाने वाले ट्रक दिल्ली के पश्चिमोत्तर इलाके में पंजाबी बाग ट्रांसपोर्ट सेंटर से निकलते हैं। हमने करीब 30 साल के रघु के साथ सफर किया। बिहार में हाजीपुर जिले के रघु अब दिल्ली में रहते हैं। हमारी यात्रा तय समय से करीब एक घंटे बाद करीब मध्य रात्रि में शुरू हुई। गुलाबी कमीज और चुस्त पतलून पहने रघु गुडग़ांव की किसी आईटी कंपनी के कर्मचारी से कम नहीं लगते। गुटखा खाकर रंगीन हो गए उनके दांत चुगली कर देते हैं। उन्होंने बताया कि वह बेटे के दाखिले के संबंध में किसी से मिलने गए थे, इसलिए देर हो गई।
रघु अपना भारतबेंज ट्रक दिखाने को बेकरार हैं। इसमें डिजिटल कंट्रोल पैनल है जो ईंधन टंकी में मौजूद तेल की सही मात्रा दिखाता है। साथ ही शानदार वाइपर लगे हैं। रघु गर्व के साथ कहते हैं, 'यह मर्सिडीज बेंज का ट्रक है। एकदम कार की तरह है।' पिछले 5 साल में देश में डेमलर ट्रक बहुत लोकप्रिय हुए हैं। इस रास्ते पर डेमलर के अलावा आयशर और टाटा के ट्रक खूब चलते हैं। ट्रांसपोर्ट सेंटर के भीतर ट्रक आड़े तिरछे खड़े हैं। रघु ट्रक में अगले पड़ाव तक के लिए ईंधन भरते हैं और फिर हम अपने सफर पर निकलते हैं। अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पार करके हम कब रजोकरी बॉर्डर पहुंच गए, पता ही नहीं चला। सड़क खाली मिलते ही रघु ने मुझसे इस सफर की असली वजह पूछी। मैं बताता हूं, 'हम दोनों एक ही ट्रक में सवार हैं दोस्त। मैं भी मकसद समझने की कोशिश ही कर रहा हूं। असल में हम पता लगाना चाहते हैं कि जीएसटी से ट्रकों के सफर का वक्त कितना कम हुआ और ट्रक ड्राइवरों की जिंदगी में कितना बदलाव आया है।'
रघु हमें बताने लगते हैं कि पिछले दो हफ्तों से कारोबार में मंदी आ गई है और यह भी बताते हैं कि किस तरह वह मुंबई में फंस गए थे क्योंकि वापसी के लिए माल मिला ही नहीं था और खाली ट्रक वापस लाया नहीं जा सकता था। इसके बाद अचानक वह खामोश हो जाते हैं और उनका ध्यान बगल से गुजर रहे ट्रक पर जम गया है। 18 टायरों वाला ट्रक बाईं ओर से हमसे आगे निकलने की कोशिश कर रहा है। वह फिर सवाल दागते हैं, 'हम जैसे ड्राइवरों का जीएसटी से क्या लेनादेना है?' रघु आठवीं तक ही पढ़े हैं। वह कहते हैं, 'गंदे लड़के से दोस्ती हो गया। पिता जी ने तो मुझे स्कूल भेजने की पूरी कोशिश की थी।' हालांकि रघु को इसका बहुत मलाल नहीं है क्योंकि उन्हें खलासी का काम मिल गया था। ज्यादातर ड्राइवर पहले खलासी ही बनते हैं। शुरू में खलासी को खाली सड़क पर ही स्टीयरिंग थामने का मौका मिलता है और बाद में जब भी ड्राइवर को नींद आती है तो ट्रक खलासी के हवाले कर दिया जाता है। रघु भी इसी तरह खलासी से ड्राइवर बने हैं। वह कहते हैं, '2008 से ड्राइविंग कर रहा हूं। दो साल बाद शादी किया।' रघु के दो बेटे हैं और उनकी पगार 10,000 रुपये महीने भी नहीं है। शहर में ड्राइवर खासा कमा लेते हैं, लेकिन रघु को वहां गाड़ी चलना उबाऊ लगता है। वह कहते हैं, 'इसमें मजा है।'
कुछ ही वक्त गुजरा है और हम धारूहेड़ा पहुंच गए हैं, जहां दिल्ली वाला कमोबेश हरेक ट्रक ड्राइवर रुकता है। यहां तेल भी मिलता है, सर्विसिंग की सुविधा भी है, पानी भी भरा जा सकता है और मनोरंजन भी हो जाता है। हम रिलायंस पंप पहुंच गए हैं। वह बताते हैं कि धारूहेड़ा में डीजल सस्ता है और रिलायंस का डीजल सबसे सस्ता। रघु ने कहा, 'हम कुछ देर आराम करेंगे और फिर सूरज निकलने पर आगे का सफर करेंगे।' उन्होंने साथ ही मुझे चोरों के बारे में आगाह किया जो शीशा काटकर सामान चुरा लेते हैं। लेकिन हमारी चिंता मच्छरों से बचने की है और हम ओडोमॉस की खोज में हैं।
हमारे साथ रघु का सफर अचानक खत्म हो गया क्योंकि अगली सुबह उन्हें महसूस हुआ कि इंजन ऑयल रिस रहा है। रघु ने कहा, 'अच्छा हुआ हम आगे नहीं गए।' उन्होंने कहा कि ट्रक में बड़ी खराबी आई है और इसकी मरम्मत में समय लग सकता है। फारूक और नागेंद्र के ट्रक मुंबई जा रहे हैं। फारूक आयशर ट्रक चला रहे हैं और उनका कहना है कि उनके केबिन में दो आदमी नहीं आ सकते हैं। नागेंद्र के पास खलासी के रूप में शशिकांत हैं। नरम बोलने वाले शशिकांत की उम्र 20 साल के आसपास है। नागेंद्र के पास टाटा ट्रक है और उसके केबिन में तीन आदमी आराम से सफर कर सकते हैं।
गहरे नीले रंग का गद्दा सीट के साथ बिस्तर का काम करता है। आधी नींद में ऐसी सीट मिल जाए तो फिर कहना ही क्या। नागेंद्र की ट्रक कंपनी ने 1 जुलाई से फास्टैग प्रणाली लगाने का फैसला किया है। फास्टैग आईसीआईसीआई और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम की संयुक्त पहल है और इससे टोल पर नकदीरहित भुगतान होता है। धारूहेड़ा में कंपनी के सुपरवाइजर पंडितजी ने फारूक और नागेंद्र के ट्रकों के अगले शीशे पर फास्टैग की आयताकार पट्टïी लगाई। साढ़े 7 बजे हम अपना आगे का सफर शुरू करते हैं। नागेंद्र मुझे सहज बनाने के लिए ब्रेड पकौड़ा लाए हैं। हमें यात्रा शुरू किए हुए 8 घंटे हो चुके हैं और पेट की चिंता भी सता रही है।
नागेंद्र को कोई जल्दबाजी नहीं है। वह रास्ते में हर ढाबे पर रुकने के लिए कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेते हैं। रेवाड़ी से आगे बढऩे पर राजस्थान सीमा से ऐन पहले उन्होंने ट्रक रोका और एक पंखा निकालकर उसे मरम्मत के लिए पास की दुकान में ले गए। वहां करीब आधा दर्जन दुकानें हैं जो ट्रक ड्राइवरों का सामान बेचते हैं। उनमें एक दुकान बुजुर्ग शीशा राम की भी है। हम उनसे बात करने की कोशिश की। वह भी मंदी की शिकायत करते हैं और हम जैसे लोगों से जानना चाहते हैं कि जीएसटी का उनके लिए छोटे कारोबारी के लिए क्या महत्व है।
जल्दी ही हम एक पिल्लर से गुजरे जिस पर लिखा है, राजस्थान। सुबह के पौने 9 बज चुके हैं। हम एक फ्लाईओवर से गुजर रहे हैं और देखते हैं कि हाइवे पर बांयी लेन पर सफेद रंग की एक जीप रास्ता घेरती है। शशिकांत ने कहा, 'आरटीओ वाले हैं।' हमने देखा कि कुछ लोग सफेद कपड़ों में और बाकी खाकी कपड़ों में हैं। उनमें से कुछ के पास लंबी लाठियां हैं। नागेंद्र ने ट्रक की रफ्तार कम कर दी है। वह खाकी पहने व्यक्ति को कुछ पकड़ाते हैं। जीप के करीब खड़ा सफेद लिबास वाला एक व्यक्ति आननफानन में दायीं तरफ आता है। ऐसा लगता है कि नागेंद्र रफ्तार कम कर रहे हैं लेकिन जब वह व्यक्ति करीब पहुंचता है तो अचानक वह पैडल दबा देते हैं। सड़क पर मौजूद व्यक्ति चिल्लाता रह जाता है।
ऐसे ही राजस्थान सीमा पार की जाती है। हमने पूछा कि कितने दिए, नागेंद्र ने कहा, 'सौ'। उन्होंने एक टूथब्रश स्टैंड की तरफ इशारा करते हुए कहा, 'ऐसे निकाल कर रखे हैं।' इसका गुलाबी रंग अब फीका पड़ चुका है और इस पर ट्रक से निकलने वाले काले धुएं की परत चढ़ चुकी है। इसमें 100 रुपये के कुछ नोट रखे हुए हैं। नागेंद्र कहते हैं कि टोल और आरटीओ ज्यादा परेशान करते हैं।
उन्होंने साथ ही हमें चेताया कि उदयपुर के पास एक आरटीओ में पूरी रात लग सकती है। कभी-कभी तो वहां कई किलोमीटर तक वाहनों की कतारें लगी रहती हैं। आरटीओ वाहनों और उनमें लदे अतिरिक्त भार को चेक करते हैं। साथ ही वे डबल डीजल टैंक के लिए ड्राइवरों का कई हजार का चालान भी बना देते हैं। एक और आम मसला बिना लाइसेंस के खलासी के ट्रक चलाते पकड़े जाने का भी है। ड्राइवरों और आरटीओ के बीच एक अलिखित समझ बन गई है। ड्राइवर 50 से 200 रुपये तक देकर आराम से निकल जाते हैं। नागेंद्र और शशिकांत राजस्थान में 5 स्थानों पर आरटीओ कर्मचारियों की जेब गर्म करते हैं। एक जगह तो उन्होंने 40 रुपये पकड़ाते हुए कहा, 'साब दस कम हैं।'
राष्ट्रीय राजमार्ग-8 को देश की ट्रक राजधानी कहा जा सकता है। यह एक लेन से दो लेन और अब छह लेन का हो गया है लेकिन इस पर वाहनों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इस पर सभी तरह के ट्रक चलते हैं। इनमें मारुति कारों को ले जा रहे बंद ट्रक, स्वराज ट्रैक्टरों को ले जा रहे खुले ट्रक, मवेशी ढो रहे ट्रक, सजावटी पौधे ले जा रहे ट्रक, जेसीबी, ट्रकों को ले जा रहे ट्रक, औद्योगिक सामान ले जा रहे ट्रक, खाली ट्रक और पता नहीं क्या ले जा रहे ट्रक शामिल हैं। उदयपुर और खेरवाड़ा के बीच हाइवे पर गुजर रहे ट्रक में मेट्रो का पूरा कोच लदा है। शनिवार का दिन है। सुबह साढ़े 10 बजे हम कोटपुतली और पावटा के बीच स्थिति श्री बालाजी पवित्र भोजनालय पहुंचते हैं। वहां कई ट्रकों के अलावा करीब एक दर्जन मोटसाइकिलें भी एक कतार में खड़ी हैं।
शशिकांत ने कहा, 'ये मोटरसाइकिलें ड्राइवरों की हैं। कई ड्राइवरों के परिवार आसपास के गांवों में रहते हैं। वे बालाजी में अपने ट्रक खड़े करके बाइक से अपने परिवारों से मिलने चले जाते हैं।' सामान से लदे ट्रक अपने ड्राइवरों की वापसी का इंतजार करते हैं। इसमें कुछ घंटे लग सकते हैं और पूरी रात भी लग सकती है। दो दिन भी लग सकते हैं। हम सोच में पड़ गए कि आखिर हम जीएसटी के किस असर की बात कर रहे हैं। नागेंद्र मलाई रोटी खाने पर जोर देते हैं। वह दो रोटियां के बीच रखी मलाई को अपनी हथेलियों से मसलते हैं और एक मुझे देते हैं। इस तरह गर्म चाय के साथ हमने मलाई रोटी का मजा लिया। हमसे पीछे चल रहे फारूक ने फोन करके बताया कि वह पहले ही जयपुर पहुंच चुके हैं।
जब हम दोपहर के भोजन के लिए एक ढाबे पर रुके तो हमने महसूस किया कि नागेंद्र अपनी पूरी रफ्तार के साथ ट्रक नहीं चला रहे हैं। 12 बजे से अधिक समय हो चुका है और हम अब भी जयपुर से करीब 100 किमी दूर हैं। नागेंद्र ने कहा कि उनके टायर गर्म हो रहे हैं। इसी वजह से वह एक घंटे से ज्यादा नहीं चला रहे हैं और कुछ न कुछ बहाना बनाकर अगले ढाबे पर रोक देते हैं।
इन ढाबों में केवल खाना नहीं मिलता है बल्कि ये ट्रक ड्राइवरों की जीवनरेखा हैं। उनके पास ड्राइवर की जरूरत का हर सामान मौजूद है। कई ढाबों में बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है, 'शराब पीना मना है।' लेकिन शराब और शबाब बहुत दूर नहीं है। नागेंद्र ने ऐसे ही एक ढाबे के पीछे मुझे यौनकर्मियों की एक पूरी बस्ती दिखाई। नागेंद्र ने कहा कि अगर बारिश हुई तो हम बिना रुके 5 घंटे में भीलवाड़ा पहुंच सकते हैं। नागेंद्र अपनी पत्नी, तीन बच्चों, गायों और दो कुत्तों के साथ भीलवाड़ा के करीब एक गांव में रहते हैं। उनके सेठ ने आते-जाते उन्हें यहां रुकने की छूट दे रखी है।
नागेंद्र ने कहा, 'हमें बारिश की जरूरत है।' इंद्र देवता ने भी उन्हें मायूस नहीं किया लेकिन हमें तपती दोपहरी में जयपुर के दो टोल प्लाजा को रेंगरेंगकर पार करना पड़ा। इनमें से एक प्लाजा पर तो एक कर्मचारी के पास एक ही मशीन थी और वह हर लेन में जाकर फास्टैग को रीड करता था। इससे फास्टैग बहुत धीमा टैग बनकर रह गया। करीब एक घंटे तक हम वहां फंसे रहे और इस दौरान नागेंद्र उस कर्मचारी को कोसते रहे।
टाटा के पुराने ट्रक धीमे हो सकते हैं और आगे दो शीशों के साथ वे गुजरे जमाने के लगते हैं लेकिन अधिकांश नए ट्रकों पर आगे एक ही शीशा रहता है। दो शीशों के बीच में एक हत्था लगा है जिसे खींचने पर ताजी हवा का झोंका अंदर आता है। इसके सामने अत्याधुनिक एयरकंडीशनर भी फीके हैं। किशनगढ़ बाइपास पर बायां टर्न लेने के बाद हम चाय का इंतजार कर रहे हैं कि तभी बारिश की पहली बूंद हमारे चेहरे पर पड़ती है। पहले रेत का तूफान आया और फिर झमाझम बारिश।
तभी शानदार कद काठी और शरीर पर टैटू गुदवाए प्रवीण कुमार शर्मा हमारे लिए चाय ले आए। उन्होंने कहा कि जीएसटी ने इस इलाके में संगमरमर के कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया है। उन्होंने कहा, 'कहां 80-90 चाय और कहां 20-25 चाय।' शर्मा और शराब बेचने वाले उनके पड़ोसी को जीएसटी की मार झेलनी पड़ रही है। शराब की दुकान पर बिक्री 35,000-40,000 हजार रुपये से घटकर 13,000 से 14,000 रुपये रह गई है।
बारिश आने की खुशी में नागेंद्र ने मैकडॉवेल का एक पव्वा खरीदा। उनके पास अफीम की एक पुडिय़ा है जो उन्होंने गियर बॉक्स के करीब गद्दे के बीच में छिपाकर रखा है। उन्होंने कहा, 'थोड़ी सी अफीम लीजिए और एक कप चाय पी लीजिए, नींद पूरी तरह भाग जाएगी और आप पूरा दिन ड्राइविंग कर सकते हैं।' अपने घर में रात का खाना खाने के बाद वह स्टीयरिंग की कमान शशिकांत के हाथ में देना चाहते हैं। कुछ घंटे बारिश में ट्रक चलाने के बाद नागेंद्र रात करीब 10 बजे अपने गांव पहुंच जाते हैं। गांव के अधिकांश लोग गहरी नींद में हैं लेकिन उनका परिवार उनके इंतजार में जाग रहा है। जीएसटी अभी इंतजार कर सकता है। नागेंद्र के लिए तो यह जश्न मनाने का समय है।
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