कर्ज न चुकाने वालों पर सख्ती के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय
बीएस संवाददाता / May 28, 2017
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि भारी कर्ज की मदद से कमाई करने वाले लोग आम तौर पर कर्ज का भुगतान नहीं कर रहे हैं लिहाजा अब समय आ गया है कि उनके साथ सख्ती बरती जाए। न्यायालय ने 10 साल पहले 75 करोड़ रुपये का कर्ज लेने वाले एक शैक्षणिक ट्रस्ट के कर्ज नहीं चुकाने पर यह टिप्पणी की। कर्ज नहीं चुकाने की वजह से उस ट्रस्ट की कुल देनदारी ब्याज के साथ बढ़कर 480 करोड़ रुपये हो चुकी है। महाराजी एजुकेशनल ट्रस्ट बनाम हुडको वाद में सुनाए अपने फैसले में न्यायालय ने कहा है कि कर्ज की ही रकम से बड़े पैमाने पर कमाई करने के बाद भी ट्रस्ट भुगतान करने का इच्छुक ही नहीं रहा है। उसने ट्रस्ट को जून से कर्ज भुगतान की प्रक्रिया शुरू करने का अनुल्लंघनीय आदेश भी दिया है। इतने लंबे समय तक कानूनी प्रक्रियाओं का सहारा लेते हुए ट्रस्ट कर्ज के भुगतान में देरी करता आया था। यह ट्रस्ट मेडिकल कॉलेज, डेंटल कॉलेज और अस्पताल संचालित करता है। उसके कॉलेजों में तीन हजार से अधिक छात्र हैं जबकि 700 कर्मचारी भी तैनात हैं।
पोंजी फर्म की परिसंपत्ति की कुर्की मुमकिन
उच्चतम न्यायालय ने निवेशकों को मोटे रिटर्न का झांसा देकर बरगलाने वाले वित्तीय संस्थानों की अचल संपत्ति कुर्क करने का आदेश देने की तमिलनाडु सरकार की शक्ति को वैध ठहराया है। न्यायालय ने कहा है कि तमिलनाडु के राज्य निवेशक हित संरक्षण अधिनियम के तहत राज्य सरकार को पोंजी फर्म की संपत्ति कुर्क करने का आदेश देने का अधिकार हासिल है। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया है जिसमें इसके उलट राय जाहिर की गई थी। तमिलनाडु राज्य बनाम के एस पलानिचामी मामले में उच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकार को ग्लोबल कैपिटल ट्रेडिंग सर्विसेज के साझेदारों की अचल संपत्तियां कुर्क करने का आदेश देने का अधिकार नहीं है। सरकार ने धोखाधड़ी की एक शिकायत के आधार पर कार्रवाई करते हुए ऐसा कदम उठाया था। मदुरै की इस कंपनी पर लोगों से ऊंचे ब्याज का लालच देकर निवेश के लिए बरगलाने का आरोप था। उसके
कुछ साझेदार तो फरार ही हो गए थे।
नकली लक्जरी उत्पादों की बिक्री पर लगी रोक
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक भारतीय कंपनी को अपनी वेबसाइट के जरिये नकली लक्जरी उत्पाद की बिक्री रोक देने को कहा है। फ्रांसीसी कंपनी लुई वुइतों ने इस वेबसाइट पर उसके लक्जरी उत्पादों की नकल बेचने का आरोप लगाया था। फ्रांस की इस कंपनी का कहना था कि लक्जरी उत्पादों के ट्रेडमार्क और कॉपीराइट का उल्लंघन करने से उसे काफी नुकसान हो रहा है लिहाजा इस पर रोक लगनी चाहिए। यह वेबसाइट 59,000 रुपये मूल्य वाले नकली उत्पादों पर 80 फीसदी की छूट दे रही थी। वेबसाइट पर लक्जरी ब्रांड मों ब्लां, ऐरमेज, कर्तिये और बरबेरी के नकली उत्पादों को भी असली बताकर बेचने के आरोप लगे थे। न्यायालय ने लुई वुइतों बनाम गौरव भाटिया मामले में बिक्री पर स्थायी रोक लगाते हुए कहा कि नकली उत्पादों की बिक्री से हुए नुकसान की भरपाई का आदेश दे पाना मुमकिन नहीं है क्योंकि वास्तविक नुकसान का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।
आयकर का नए सिरे से नहीं हो सकता आकलन
अगर एक बार आयकर का आकलन किया जा चुका है और उसे आयकर अधिकारी ने स्वीकार भी कर लिया है तो उसका परवर्ती अधिकारी फिर से उस केस को दोबारा नहीं खोल सकता है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंतरराष्ट्रीय कराधान निदेशक बनाम रॉल्स रॉयस इंडस्ट्रियल पॉवर इंडिया मामले में दायर अपील को खारिज करते हुए यह फैसला दिया। ब्रिटेन की कंपनी रॉल्स रॉयस के आयकर आकलन की गणना 1998 से लेकर 2002 के दौरान दोहरे कराधान राहत समझौता के तहत मिली छूट के आधार पर ही किया गया था। लेकिन जब कंपनी ने 2004 में स्रोत पर कर कटौती को शून्य दिखाने के लिए आवेदन किया तो उसे नकार दिया गया। इसके अलावा निदेशक ने पहले के वर्षों का भी नए सिरे से आकलन करने की बात कही। आईटी अपीलीय न्यायाधिकरण ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था। उच्च न्यायालय ने इसके खिलाफ दायर अपील को यह कहते हुए नकार दिया कि आयकर का नए सिरे से आकलन का आदेश कोई नई जानकारी सामने आने पर आधारित नहीं था।
नीलामी की रकम पर सरकार का पहला हक
जब गिरवी संपत्ति को कर्ज का भुगतान नहीं होने पर नीलाम किया जा रहा हो तो उससे मिलने वाली रकम पर बैंक का दावा बनने से पहले सरकार के बकाया करों की कटौती की जाएगी। हालांकि बेहतर कीमत हासिल करने के लिए कर्जदाता बैंक भी नीलामी के दौरान हिस्सा ले सकता है लेकिन उसे सरकार के बकाया कर की वसूली के बाद बची रकम ही मिलेगी। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सहकारी बैंक बनाम राज्य सरकार वाद में यह व्यवस्था दी है। इस मामले में सरकार ने बकाये उत्पाद शुल्क की वसूली के लिए कर्जदार की संपत्ति कुर्क कर दिया था। कर्जदाता बैंक ने इस संपत्ति की नीलामी के जरिये अपनी बकाया रकम की मांग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया लेकिन उसे नकार दिया गया। उच्च न्यायालय ने जिला अदालत के ही फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि नीलामी से मिली रकम पर पहला हक बैंक का नहीं बनता है।
किस्त पर लिए गए वाहन का असली मालिक फाइनैंसर
अगर किस्त पर वाहन खरीदते समय किए गए करार में नोटिस का प्रावधान नहीं है तो कर्जदाता उस वाहन को दोबारा अपने कब्जे में लेते समय नोटिस देने के लिए बाध्य नहीं है। किस्तों पर खरीदारी के लिए किए गए करार में फाइनैंसर ही उस वाहन का मालिक होता है और कर्ज लेने वाला व्यक्ति केवल उस संपत्ति का ट्रस्टी होता है। इस वजह से अगर उस वाहन की किस्तों का समय पर भुगतान नहीं हो रहा है तो फाइनैंसर का उस वाहन को कब्जे में लेने का पूरा अधिकार बनता है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इंडसइंड बैंक लिमिटेड बनाम कंचन घोष मामले में यह फैसला दिया है। एक महिला ने ट्रक खरीदने के लिए कर्ज लिया था लेकिन उसने किस्तों का समय पर भुगतान नहीं किया। जब बैंक ने उस ट्रक को अपने कब्जे में ले लिया तो खरीदार ने जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत की। फोरम ने ट्रक को लौटाने और महिला को मुआवजा देने का भी बैंक को निर्देश दिया। इसके खिलाफ बैंक ने उच्च न्यायालय में अपील की जिसने फोरम के फैसले को निरस्त कर दिया। बैंक ने यह दलील रखी कि महिला ने व्यावसायिक गतिविधियां चलाने के लिए यह कर्ज लिया था लिहाजा वह उपभोक्ता ही नहीं मानी जा सकती है। न्यायालय ने भी उसकी दलील स्वीकार करते हुए कहा कि केवल निजी इस्तेमाल और स्व-रोजगार के लिए कर्ज लेने वाला व्यक्ति ही उपभोक्ता माना जाएगा।
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