पुराना सामान बदलना होगा महंगा | |
इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली 04 02, 2017 | | | | |
► व्यापारियों तक नहीं पहुंचे माल पर नहीं मिलेगा पूरा रिफंड
► सीबीईसी ने जारी किया नियमों के 4 सेटों का मसौदा
► जीएसटी परिषद की अगली बैठक में होगी चर्चा
अब पुराने सामान के बदले बाजार कीमत से कम पर माल खरीदना ग्राहकों के लिए थोड़ा महंगा पड़ सकता है। टीवी, फ्रिज और एसी जैसे टिकाऊ उपभोक्ता और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के बाजार में पुराना सामान देकर नया खरीदने का चलन काफी पुराना है। लेकिन प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की नई व्यवस्था में पुराना सामान देने के बावजूद नए सामान की बाजार कीमत पर ही जीएसटी लगेगा।
इसके साथ ही जीएसटी लागू होते समय जिन व्यापारियों, डीलरों और वितरकों ने सामान मंगा रखा है लेकिन जो रास्ते में है और उन तक नहीं पहुंचा है, उस पर उनको चुकाए गए केंद्रीय कर का पूरा रिफंड नहीं मिलेगा। इससे उन वस्तुओं के कारोबारियों पर असर पड़ेगा जो शीतल पेय, लक्जरी कार, सिगरेट और पान मसाला जैसी उच्चतम दर वाली चीज बेचते हैं।
जीएसटी से जुड़े ये पहलू आज उस समय स्पष्टï हुए जब केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने कर की संरचना, मूल्यांकन, सामान रास्ते में होने और इनपुट टैक्स क्रेडिट पर नियमों का मसौदा जारी किया। इस मसौदे पर लोगों से 10 अप्रैल तक सुझाव मांगे गए हैं। शुरुआती तौर पर जीएसटी परिषद ने पिछले शुक्रवार को इनको मंजूरी दे दी है और अब इन पर 18 और 19 मई की अगली बैठक में चर्चा की जाएगी। बोर्ड ने बिल, भुगतान, रिफंड और थोड़े संशोधन के साथ पंजीकरण के बारे में भी अंतिम नियम जारी कर दिए हैं। हालांकि रिटर्न पर अंतिम नियम अभी जारी किए जाने हैं।
मूल्यांकन से जुड़े नियमों में कहा गया है कि सामान और सेवा की आपूर्ति का मूल्य जहां लेनदेन पूरी तरह धन आधारित नहीं है, वहां आमतौर पर बाजार मूल्य माना जाएगा। अगर बाजार कीमत उपलब्ध नहीं है तो उसके लिए लागत में जोडऩे का तरीका उपलब्ध कराया गया है। इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। अगर पुराना फोन देकर नया फोन 20,000 रुपये में खरीदा जाता है जबकि नए फोन की बिना एक्सचेंज कीमत 24,000 रुपये है तो जीएसटी पूरे 24,000 रुपये पर लगेगा।
पीडब्ल्यूसी के प्रतीक जैन कहते हैं कि इससे टीवी, मोबाइल फोन जैसे उपभोक्ता और इलेक्ट्रॉनिक सामान पर असर पड़ेगा क्योंकि इन सामान के लिए अदलाबदली की योजना चलती रहती है। इस समय नकद भुगतान वाले हिस्से पर वैट (राज्य स्तर पर मूल्यवर्धित कर) देना होता है।
नियमों के दूसरे सेट से डीलरों, सप्लायरों और कारोबारियों को परेशानी हो सकती है क्योंकि जीएसटी लागू होते समय जो सामान उन तक नहीं पहुंचा उस पर उनको केंद्रीय जीएसटी का 40 फीसदी इनपुट टैक्स क्रेडिट ही मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस प्रतिशत पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत है। एक मसला दो राज्यों के बीच कंपनी से कंपनी में माल भेजने पर कराधान से जुड़ा है।नियमों में कहा गया है कि संबंधित कंपनी द्वारा बिल में घोषित मूल्य को अधिकारी स्वीकार करेंगे। लेकिन यह स्पष्टï नहीं है कि क्या अधिकारी कंपनी द्वारा दिए गए किसी भी बिल को स्वीकार करेंगे या फिर कंपनियों को इसके लिए लागत में जोड़ का तरीका अपनाना होगा।
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