प्रमुख आयातक देशों की ओर से मंद मांग रहने के कारण वित्त वर्ष 17 में भी परिधान निर्यात की वृद्धि लगातार दूसरे साल सुस्त रह सकती है। परिधान निर्यात संवर्धन परिषद (एईपीसी) के अनुमान के अनुसार 2016 में वैश्विक परिधान व्यापार एक प्रतिशत सिकुड़कर 28 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचने के मद्देनजर 2016-17 के अंत तक हम 1.12 लाख करोड़ रुपये के व्यापार पर पहुंच सकते हैं। यह पिछले वित्त वर्ष के 1.10 लाख करोड़ रुपये से बामुश्किल दो प्रतिशत ही ज्यादा है। क्रेडिट एजेंसी इक्रा को भी डॉलर के रूप में भारत की एक प्रतिशत के ठंडे इजाफे की संभावना नजर आती है।
एईपीसी के सूत्रों के अनुसार तथ्य यह भी बताते हैं कि उद्योग ने अप्रैल 2016 से फरवरी 2017 के दौरान एक लाख करोड़ रुपये का निर्यात किया है। पिछले साल की तुलना में यह वृद्धि दर मात्र 0.6 प्रतिशत ज्यादा है। हालांकि इसका प्रमुख कारण आयातक देशों की मंद मांग रही है लेकिन इसके अलावा एक बात और भारत के खिलाफ रही है और वह है कपास पर इसकी भारी निर्भरता। दूसरी ओर वियतनाम और बांग्लादेश जैसे अन्य प्रतिस्पर्धी बाजारों द्वारा मानव निर्मित सस्ते रेशों पर आधारित परिधानों की हिस्सेदारी बढ़ रही है।
नाम उजागर न करने की शर्त पर एईपीसी के एक अधिकारी ने कहा कि दूसरे प्रतिस्पर्धी देश लगभग सभी कच्चे माल का आयात करते हैं और इस वजह से भारत की तुलना में उनका पैमाना किफायती रहता है, जबकि भारत घरेलू उद्योग पर बहुत ज्यादा निर्भर करता है जो प्रमुख रूप से कपास पर आधारित है। इक्रा ने मार्च की अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि मानव निर्मित रेशों पर आधारित परिधानों की हिस्सेदारी बढऩे से मूल्य के रूप में निर्यात में गिरावट आई है जिनका मूल्य कपास पर आधारित परिधानों की तुलना में कम है। पिछले कुछ सालों से कपास की पॉलिस्टर से प्रतिस्पर्धा होने के कारण ऐसा हुआ है।
2016 में अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात में दो प्रतिशत का इजाफा होने का अनुमान जताया गया है। इस बारे में इक्रा का कहना है कि हालांकि पूर्व के वर्षों की तुलना में यह वृद्धि साधारण है लेकिन अमेरिका के आयात की मात्रा में एक प्रतिशत की गिरावट के मद्देनजर इजाफे की यह मात्रा संतोषजनक लगती है। इसी तरह 2016 में यूरोपीय संघ को परिधान निर्यात की मात्रा में छह प्रतिशत इजाफे का अनुमान है, जबकि यूरोपीय संघ का कुल परिधान आयात पांच प्रतिशत रहा है। एईपीसी के सूत्रों के अनुसार, दूसरी तरफ सुस्त मांग की वजह से ब्रिटेन को किया जाने वाला आयात 10,400 करोड़ रुपये से गिरकर 7,800 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।
पिछली तीन तिमाहियों में भारतीय परिधान उद्योग की वृद्धि में उतार-चढ़ाव होता रहा है। गोकलदास एक्सपोट्र्स लि. और मफतलाल इंडस्ट्रीज जैसे वस्त्र विनिर्माताओं को चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में घाटा हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में लाभ हुआ था। गोकलदास एक्सपोट्र्स को 31 दिसंबर, 2016 में खत्म हुई तिमाही में 21.84 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ है, जबकि वित्त वर्ष 16 की समान अवधि में 25.92 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था।