मौजूदा वित्त वर्ष समाप्त हो रहा है और नया वित्त वर्ष शुरू होने वाला है। ऐसे में सबसे अहम प्रश्न यही है कि क्या देश के आर्थिक हालात बदल रहे हैं? नोटबंदी के कारण उत्पन्न व्यवधान लगभग समाप्त हो चुके हैं। निश्चित तौर पर अचल संपत्ति और विनिर्माण को छोड़कर कमोबेश सभी कारोबारों का कहना है कि उनकी बिक्री में पिछले कुछ महीनों के दौरान आया ठहराव या गिरावट का चक्र अब खत्म हो चला है और वृद्घि की वापसी हो गई है। इसके अलावा, सकारात्मक आंकड़े बताते हैं कि हालिया तिमाहियों की कुछ समस्याएं अब खत्म हो रही हैं। उदाहरण के लिए निर्यात में कई महीनों की गिरावट के बाद सुधार आ रहा है। इसके अलावा आयात में भी सुधार देखने को मिल रहा है यानी घरेलू मांग बेहतर हुई है।
अक्टूबर से दिसंबर तिमाही के दौरान बड़ी सूचीबद्घ कंपनियों के मुनाफे में भी सुधार देखने को मिला जबकि इससे पिछली तिमाही में भी उनका प्रदर्शन सकारात्मक था। यह सच है कि बिक्री अभी भी धीमी है लेकिन कारोबारी मार्जिन की निरंतर कमजोरी शायद अब खत्म हो। इस वर्ष कर संग्रह भी तय लक्ष्य से बेहतर रहने का अनुमान है। वित्त मंत्री इसका संकेत दे चुके हैं। राजस्व की बेहतरी भी आर्थिक सुधार का ही द्योतक है।
अंतरराष्टï्रीय स्तर पर बात करें तो विश्व अर्थव्यवस्था को लेकर अनुमान सकारात्मक हो रहे हैं। अमेरिका और यूरोप दोनों की हालत 2016 की तुलना में कहीं बेहतर दिख रही है। वृद्घि के आंकड़ों में सुधार तय नजर आ रहा है। दूसरी सकारात्मक बात है पेट्रोलियम निर्यातक देशों का तेल कीमतों को गति नहीं दे पाना। उत्पादन में कमी की घोषणा के बाद कीमतें कुछ वक्त के लिए बढ़ी थीं लेकिन शेल गैस का उत्खनन तेज होने के बाद वे दोबारा 50 डॉलर प्रति बैरल के आसपास आ गईं। भारत की दृष्टिï से देखें तो फिलहाल इस मोर्चे पर हालात नियंत्रण में हैं और तेल के चलते महंगाई में कोई इजाफा नहीं होगा।
घरेलू नीति की बात करें तो माहौल बता रहा है कि सरकार कॉर्पोरेट ऋण संकट का हल घोषित करने को कमोबेश तैयार है। इसके साथ ही बैंकों के फंसे हुए कर्ज से निजात का तरीका भी सामने रखा जाएगा। मोदी सरकार शुरुआती तीन सालों में इन मुद्दों को हल नहीं कर सकी है। इसका असर निवेश पर पड़ा और बैंक ऋण भी कमजोर बना रहा। व्यक्तिगत ऋणों के विस्तृत पुनर्गठन के साथ-साथ एक नीतिगत पैकेज की आवश्यकता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत करीब होने का अनुमान शुभ संकेत है। इससे शेयर कीमतों में तेजी आएगी। अगर दिक्कतदेह कर्ज की हालत में आने वाले वर्ष में सुधार होता है तो इसके कई सकारात्मक वित्तीय प्रभाव होंगे। इसमें कम ब्याज दर भी शामिल है जो कारोबारियों की मदद करेगी और खुदरा ऋण को बढ़ावा देने में सहायक साबित होगी।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का लागू होना एक और बड़ा कदम साबित होगा। फिलहाल सवाल यह है कि क्या नई कर व्यवस्था में बदलाव सहज होगा या इसमें दिक्कतें आएंगी? अधिकांश छोटे और मझोले उद्यम अभी भी बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं। कंपनियों को अभी इस बारे में तमाम जानकारी भी नहीं है। ऐसे में जीएसटी को कुछ महीनों के लिए टालना समझदारी भरा कदम होगा। इसे सितंबर में पेश किया जा सकता है। इतने वर्षों की देरी के बाद कुछ माह की देरी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर ऐसा करने से यह बदलाव सहज हो जाता है तो बहुत बेहतर होगा क्योंकि इससे नई व्यवस्था ठीक से लागू होगी और अप्रत्यक्ष कर संग्रह में सुधार होगा। अगर नोटबंदी के कारण भी अप्रत्यक्ष कर राजस्व में इजाफा होता है तो कर-जीडीपी अनुपात अगले वर्ष बेहतर हो सकता है। इससे ऐसे वक्त में सरकार की व्यय क्षमता में सुधार होगा जब निजी निवेश लगातार कमजोर है।
अच्छी खबरों का सिलसिला शुरू है और आगे ऐसी और खबरें आ सकती हैं लेकिन मॉनसून पर भी निगाह बनाए रखनी होगी। अल नीनो प्रभाव से संकेत मिलता है कि वर्ष 2017 में पिछले साल की तरह बंपर पैदावार नहीं होगी। लेकिन कमजोर मॉनसून का वृहद आर्थिक प्रभाव सीमित ही रहेगा। इसका उन सकारात्मक संकेतों पर कोई असर नहीं होगा जो पहले ही नजर आने लगे हैं।
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