उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि लंदन की अदालत में संपन्न मध्यस्थता कार्यवाही के खिलाफ की गई अपील को भारत में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बारे में बम्बई उच्च न्यायालय के निर्देश को खारिज करते हुए कहा है कि किसी विदेशी अदालत के फैसले के खिलाफ भारत में अपील नहीं की जा सकती है। उसने आईमैक्स कॉर्पोरेशन बनाम ई-सिटी एंटरटेनमेंट लिमिटेड वाद में यह आदेश दिया है। दोनों कंपनियों के बीच सिनेमाघरों में प्रोजेक्शन सिस्टम की आपूर्ति के लिए करार हुआ था लेकिन विवाद खड़ा होने पर मामला मध्यस्थता के लिए चला गया। करार में जिक्र था कि मध्यस्थता प्रक्रिया इंटरनैशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) के नियमों के मुताबिक संपन्न की जाएगी। इसके तहत आईमैक्स ने आईसीसी के समक्ष क्षतिपूर्ति का दावा करते हुए लंदन में मध्यस्थता प्रक्रिया चलाने की मांग की। वहां पर भारतीय कंपनी के विरोध में फैसला आया जिसके बाद वह बम्बई उच्च न्यायालय चली गई। उच्च न्यायालय ने उसकी अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था। उच्चतम न्यायालय ने इसे गलत बताते हुए कहा है कि मध्यस्थता प्रक्रिया जहां चल रही है वहीं का कानून लागू होगा।
'प्रतिस्पद्र्धा विरोधी नहीं डबिंग'
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी क्षेत्रीय भाषा में डबिंग कर टीवी धारावाहिक का प्रसारण करने को प्रतिस्पद्र्धा के विपरीत नहीं माना जा सकता है लिहाजा उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। यह मामला धारावाहिक महाभारत को बांग्ला में डब कर प्रसारित करने से जुड़ा हुआ है। जब एक चैनल ने बांग्ला में डब कर इस धारावाहिक के प्रसारण का ऐलान किया तो ईस्टर्न इंडिया मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन और पश्चिम बंगाल फिल्म एवं टीवी कलाकार समिति ने उसे प्रतिस्पद्र्धा के विपरीत बताते हुए भारतीय प्रतिस्पद्र्धा आयोग में अपील कर दी थी। उनका कहना था कि डबिंग के चलते स्थानीय स्तर पर टीवी प्रोडक्शन को नुकसान पहुंचेगा। आयोग ने शुरू में तो उनकी याचिका को खारिज कर दिया लेकिन पुनर्विचार अपील पर उनके दावों में दम पाया। मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा तो उसने कहा कि एसोसिएशन ने श्रम संगठनों की तरह चैनलों पर दबाव बनाने की कोशिश की है। उसने कहा कि भाषा के नाम पर संरक्षण की मांग प्रतिस्पद्र्धा की भावना के खिलाफ है और उससे दर्शकों को पसंदीदा सामग्री चुनने की आजादी भी प्रभावित होती है।
ज्यादा मुआवजा राशि नहीं लौटाई जाएगी
उच्चतम न्यायालय ने ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उसने एक सड़क हादसे में अपने पिता को गंवाने वाली बच्ची को निर्धारित मुआवजे से दी गई अधिक रकम वापस करने की मांग की थी। मोटर दुर्घटना दावा निपटान अधिकरण ने मुआवजे के तौर पर 45 लाख रुपये देने का निर्देश बीमा कंपनी को दिया था लेकिन उच्च न्यायालय ने हादसे का शिकार हुए व्यक्ति की केवल 32 साल की उम्र जैसे पहलुओं पर गौर किए बगैर उसे घटाकर छह लाख रुपये कर दिया था। जब मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा तो इस राशि को बढ़ाकर 16 लाख रुपये कर दिया गया। लेकिन कानूनी कार्यवाही जारी रहने के दौरान बीमा कंपनी अधिकरण की तरफ से दिए गए आदेश के मुताबिक करीब 80 फीसदी रकम का भुगतान कर चुकी थी। ऐसे में जब उच्चतम न्यायालय ने मुआवजे की रकम को लेकर अपना फैसला सुनाया तो बीमा कंपनी ने अतिरिक्त राशि वापस किए जाने की मांग की। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि अपने पिचा को गंवा चुकी मासूम बच्ची को जो रकम दी जा चुकी है वह वापस नहीं होगी। उसने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने मुआवजे की गणना करते समय तय मानकों का पालन नहीं किया था।
कर्जदाता का गिरवी संपत्ति पर पहला हक
बम्बई उच्च न्यायालय ने साफ किया है कि किसी सुरक्षित ऋणदाता का गिरवी रखी गई संपत्ति पर पहला दावा बनता है और उस पर वैधानिक संस्थान भी कोई शुल्क नहीं लगा सकते हैं। यह कंपनी अधिनियम की धारा 529ए और सारफेसी कानून दोनों के ही अनुरूप है। न्यायालय ने एक्सिस बैंक बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की है। महाराष्ट्र की एक कंपनी ने बैंक से कर्ज लिया था लेकिन उसकी भरपाई नहीं कर पाई जिसके बाद गिरवी संपत्ति को नीलामी कर बेच दिया गया था। इस बीच राज्य सरकार के कर विभाग ने बैंक को नोटिस जारी कर कहा कि गिरवी संपत्ति की बिक्री से जो रकम मिली है उस पर कर की देनदारी बनती है। बैंक ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करते हुए कहा था कि कंपनी अधिनियम और सारफेसी कानून के तहत कर्जदार संपत्ति पर पहला दावा कर्जदाता संस्थान का ही बनता है। न्यायालय ने भी उसकी दलील से सहमति जताई।
बिस्कुट कंपनियों में पैकेट डिजाइन विवाद
दिग्गज बिस्कुट निर्माता कंपनियों ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड और आईटीसी लिमिटेड के बीच पैकेज के रंग को लेकर छिड़े विवाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने ही पुराने आदेश को पलट दिया है। न्यायालय ने कहा है कि आईटीसी ने अपने उत्पाद के पैकेट पर थोड़े समय के लिए नीले रंग का इस्तेमाल किया था लिहाजा ब्रिटानिया को उस रंग का इस्तेमाल करने से नहीं रोका जा सकता है। आईटीसी के बिस्कुट ब्रांड सनफीस्ट फार्मलाइट डाइजेस्टिव ऑल गुड के पैकेट का डिजाइन पीले-नीले रंग का है। बाद में ब्रिटानिया ने भी न्यूट्री च्वॉयस डाइजेस्टिव जीरो बिस्कुट पेश किया जिसके पैकेट पर नीले रंग का इस्तेमाल था। इस पर आईटीसी ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए कहा था कि ब्रिटानिया उसके डिजाइन पैटर्न को अपनाकर उसके उत्पाद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने उसके दावे से सहमति जताते हुए ब्रिटानिया की डिजाइन पर रोक का आदेश जारी कर दिया था। लेकिन मामला जब खंडपीठ में पहुंचा तो उसने पिछला आदेश पलट दिया। फैसले में आईटीसी को यह साबित करने को कहा गया कि ग्राहक केवल उसकी खास डिजाइन के ही चलते उस बिस्कुट को खरीदने के लिए मजबूर होंगे। ऐसा नहीं कर पाने पर ब्रिटानिया को पैकेट डिजाइन में नीले रंग के इस्तेमाल से नहीं रोका जा सकता है।
प्रदूषक इकाई की बंदी पर अदालत की मुहर
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि प्रदूषण फैलाने वाली हरेक इकाई पर वायु एवं जल प्रदूषण अधिनियम के तहत कार्रवाई के पहले उसे गड़बड़ी दूर करने के लिए समय नहीं दिया जा सकता है। इसके साथ ही केएफसी सफायर फूड्स इंडिया बोर्ड लिमिटेड के एक रेस्टोरेंट को बंद करने के दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आदेश को भी सही ठहराया गया है। इस रेस्टोरेंट के पानी एवं बिजली कनेक्शन भी काट दिए गए थे।
Business Standard Private Ltd. Copyright & Disclaimer feedback@business-standard.com
This site is best viewed with Internet Explorer 6.0 or higher; Firefox 2.0 or higher at a minimum screen resolution of 1024x768
* Stock quotes delayed by 10 minutes or more. All information provided is on
"as is" basis and for information purposes only. Kindly consult your
financial advisor or stock broker to verify the accuracy and recency of all
the information prior to taking any investment decision.
While due diligence is done and care taken prior to uploading the stock
price data, neither Business Standard Private Limited, www.business-standard.com nor any
independent service provider is/are liable for any information errors,
incompleteness, or delays, or for any actions taken in reliance on
information contained herein.