खामी भरे प्रावधान | संपादकीय / March 05, 2017 | | | | |
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की दो दिन के लिए निर्धारित बैठक जब पहले ही दिन समाप्त हो गई तो प्रसन्न होने की तमाम वजह थीं। परिषद ने दो महत्त्वपूर्ण विधेयकों को मंजूरी दे दी। पहला केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी)और दूसरा एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी)। उसने आईजीएसटी के लिए केंद्र और राज्यों के प्रशासनिक काम के बंटवारे को भी मंजूरी दे दी। एक अन्य विधेयक केंद्रशासित प्रदेश जीएसटी विधेयक को आगामी 16 मार्च को होने वाली बैठक में सामने रखा जाएगा। सीजीएसटी और आईजीएसटी को अब बजट सत्र के दूसरे हिस्से में संसद में पेश किया जाएगा। इनके पारित होते ही जुलाई में यह बहु प्रतीक्षित और पहले ही काफी पिछड़ चुका अप्रत्यक्ष कर सुधार की राह पर बढ़ जाएगा। अब पूरा ध्यान जीएसटी के अधीन कर दर पर चला जाएगा। तमाम अन्य मोर्चों पर हो रही प्रगति से एकदम उलट इस मोर्चे पर अच्छी तरक्की देखने को मिली है।
परिषद इस बात पर सहमत हो गई है कि वह मसौदा जीएसटी कानून में एक ऐसा प्रावधान शामिल करेगी जो उच्चतम दर को 40 फीसदी पर सीमित करेगा। जबकि पूर्व में इसके लिए 28 फीसदी की दर तय की गई थी। हालांकि उच्चतम दर को कहीं ऊंचे स्तर पर रखा गया है लेकिन इससे 5,12,18 और 28 फीसदी की पिछले साल तय की गई बहुस्तरीय दरों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। बल्कि इससे केंद्र और राज्य सरकारों के पास यह मौका होगा कि एसजीएसटी और सीजीएसटी दरों को बाद में बिना संसदीय मंजूरी के बढ़ाया जा सके। कहना नहीं होगा कि यह प्रावधान निराश करने वाला है। कर विशेषज्ञ और उद्योग जगत अगर इसके चलते भविष्य में अचानक कर दरों में बदलाव की आशंका जताते हैं तो वे कतई गलत नहीं होंगे। यह बात मजबूत कराधान के सिद्घांत के खिलाफ जाती है। इससे जीएसटी व्यवस्था की ओर प्रस्थान की वजह को भी नुकसान पहुंचता है। मूल विचार था एक ऐसी व्यवस्था बनाने का जहां तमाम वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए अप्रत्यक्ष कर की एक दर हो। ऐसा करने से कर प्रशासन का काम आसान होता, कर आधार बढ़ता और परिणामस्वरूप कर दर कम होती। जबकि इन सब बातों के बीच राजस्व में इजाफा होता।
परंतु अब हमारे पास ढेर सारे कर खांचे हैं जो अपने आप में मनमर्जी और लॉबीइंग को जन्म देंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि वस्तु एवं सेवा प्रदाता चाहेंगे कि वे निम्नतम कर दायरे में आएं। ऐसे में यह संभावना भी है कि कर का स्तर दायरे के भीतर ही बढ़े। स्पष्टï है कि अगर बाद वाली घटना हुई तो हालात और बिगड़ेंगे। केंद्र और राज्य सरकारों में निर्णय लेने वालों को यह समझना होगा कि जीएसटी अपनाने से अर्थव्यवस्था को जो फायदे होने थे वे केवल तभी हाथ लगेंगे जब कर दरें कम रहेंगी। इसके अलावा यह भी आवश्यक है कि कर प्रशासन पारदर्शी हो तथा उसके बारे में आसानी से अनुमान लगाया जा सके। अगर ऐसी व्यवस्था अपनाई जाती है जिसमें कर अधिकारियों को मनमाने अधिकार हासिल होते हैं तो इसमें छेड़छाड़ की आशंका बरकरार रहेगी। इससे सरकार को राजस्व भी कम मिलेगा। निश्चित तौर पर कर दरें ही इकलौता ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां कर अधिकारियों को अधिक अधिकार हासिल हैं। बल्कि मुनाफाखोरी रोकने संबंधी एक प्रावधान भी इसमें शामिल है। यह प्रावधान इसलिए प्रस्तावित है ताकि उद्योग और व्यापार जगत कर दर में कमी से होने वाले लाभ को उपभोक्ताओं तक पहुंचने दें। यह नीति निर्माताओं द्वारा प्रस्तुत किया गया एक ऐसा प्रावधान है जो अवधारणा के स्तर पर और परिचालन के स्तर पर, दोनों तरह समस्या पैदा करने वाला है।
|