सशस्त्र सेनाओं को ड्रोन से मिलेगी नई ताकत | |
अलनूर पीरमोहम्मद / 02 19, 2017 | | | | |
रक्षा उपकरण बनाने वाली सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन एवं नैशनल एयरोनॉटिक्स लिटिमेड की सरकारी प्रयोगशालाएं कई ड्रोन परियोजनाओं पर कर रही हैं काम
सैनिक रहित युद्ध का दौर तेजी से आ रहा है और इसकी तैयारी के लिए भारत जल, थल, नभ में मानव रहित विमानों के विकास पर भारी निवेश कर रहा है। हालांकि इनका इस्तेमाल कैसे किया जाएगा, इसे लेकर अभी नीतियां स्पष्ट नहीं हैं। रक्षा उपकरण बनाने वाली सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) एवं नैशनल एयरोनॉटिक्स लिटिमेड की सरकारी प्रयोगशालाएं कई ड्रोन परियोजनाओं पर काम कर रही हैं। इन परियोजनाओं के तहत एक किलोग्राम के ड्रोन से लेकर 350 किलोग्राम भार क्षमता ले जाने में सक्षम रुस्तम-2 पर काम हो रहा है।
हलका लड़ाकू विमान तेजस और निशांत एवं लक्ष्य जैसे ड्रोन बनाने वाले डीआरडीओ ने 2020 और 2025 के लिए नीतिगत दस्तावेज बनाए हैं, जिनमें देश की ड्रोन क्षमताओं को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया है। लेकिन ड्रोन एक ऐसी तकनीक है, जो अभी अपनी शुरुआती अïवस्था में ही है। इसके चलते डीआरडीओ देश के प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थानों से कुशल पेशेवर और नई तकनीक हासिल करने के बारे में विचार कर रहा है।
पिछले सप्ताह एक सम्मेलन में डीआरडीओ के चेयरमैन एस क्रिस्टोफर ने कहा, 'हमारी सॉफ्टेवयर क्षमता अच्छी है और मेक इन इंडिया कार्यक्रम शुरू होने के बाद विदेशी कंपनियां भी आने लगी हैं। इससे उत्पादन क्षमता विकसित होगी। हम विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर आकाश, जमीन और पानी के भीतर के लिए यूएवी बना सकते हैं।'
डीआरडीओ मानव रहित मशीनें बनाने की एक बड़ी शृंखला पर काम कर रहा है। इसमें मानव रहित लड़ाकू विमान या यूसीएवी भी शामिल हैं, जिसमें घरेलू स्तर पर विकसित कावेरी इंजन लगाया जाएगा। एचएएल रुस्तम-2 के विकास में डीआरडीओ का जोखिम भागीदार है। एचएएल 10 किलोग्राम का मिनी रोटरी ड्रोन विकसित करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के साथ मिलकर काम कर रही है।
एचएएल के अध्यक्ष टी सुवर्ण राजू ने एयरो इंडिया के एक समारोह में कहा कि प्रायोगिक परीक्षण सफल होने के बाद एचएएल की अब 50, 200 और 500 किलोग्राम के रोटरी ड्रोन बनाने में इसी तकनीक का इस्तेमाल करने की योजना है। एयरो इंडिया में दुनियाभर की कंपनियों ने अपने यूएवी का प्रदर्शन किया था और उन्होंने संकेत दिया था कि भारतीय सशस्त्र सेनाएं उनके उत्पाद खरीदने को उत्सुक हैं।
इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज, एल्बीट, साब, बोइंग और दूसरी कई छोटी कंपनियां जोरशोर से अपने ड्रोन का प्रदर्शन किया। ये ड्रोन लड़ाई में भी उपयोगी हैं। जेके ऑर्गेनाइजेशन ने शुक्रवार को कनाडा की कंपनी माइक्रोपायलट के साथ मिलकर भारत के ड्रोन बाजार में उतरने की घोषणा की थी। देश में मिनी यूएवी का बाजार बहुत बड़ा है लेकिन इनके इस्तेमाल के बारे में किसी नीति के अभाव में यह बाजार जोर नहीं पकड़ पा रहा है। लेकिन आगामी ड्रोन नीति में इसका समाधान होने की उम्मीद है।
जेके ऑर्गेनाइजेशन की ग्लोबल स्ट्रेटजिक टेक्रोलॉजीज लिमिटेड के प्रमुख राजेश कक्कड़ ने कहा, 'अभी मिनी यूएवी की मांग 2,000 करोड़ रुपये की है लेकिन नियमों में स्पष्टïता के अभाव के कारण यह बाजार बढ़ नहीं पा रहा है। अगले कुछ महीने में इसका समाधान होने की उम्मीद है। अगर ऐसा हुआ तो अगले तीन साल में इस बाजार के कम से कम तीन गुना बढऩे की उम्मीद है।'
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