वित्त मंत्री ने हाजिर और डेरिवेटिव जिंस बाजारों को जोड़ने का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने अपने बजट भाषण में कहा, 'किसानों के फायदे के लिए जिंस बाजार में और सुधारों की जरूरत है। जिंस कारोबार के लिए हाजिर और डेरिवेटिव बाजारों को जोडऩे का ढांचा तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाएगी। ई-नाम इस ढांचे का एक अहम हिस्सा होगा।' इस कदम को देश के जिंस कारोबार में सुधार के लिए अहम माना जा रहा है। कृषि राज्यों का विषय है। लेकिन कारोबारी प्लेटफॉर्म एक ही है तो इसके लिए अलग नियम बनाने होंगे, जो इस समय नहीं हैं। डेरिवेटिव बाजार ने जिंसों की ग्रेडिंग, गुणवत्ता जांच और भंडारण के लिए नियम और बुनियादी ढांचा तैयार किया है। ई-नाम या एक राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर सभी कृषि उपज विपणन समितियों के जुड़ाव की सफलता अभी हकीकत नहीं बनी है। कर्नाटक में राज्य स्तर पर सभी मंडियों को आपस में जोडऩे की योजना सफल रही थी।
नीति आयोग के सदस्य (कृषि) रमेश चंद ने कहा, 'दोनों बाजारों को आपस में जोडऩा अच्छा कदम है क्योंकि इससे डेरिवेटिव बाजारों में अनिश्चितता खत्म होगी (जिंसों की गैर-सूचीबद्धता की चिंताएं खत्म होंगी)। सरकार को राज्य स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक बाजार के बारे में भी विचार करना चाहिए। जिन राज्यों में ऐसे प्लेटफॉर्म हैं, उन्हें राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म से जुड़ने मंजूरी दी जाए। ऐसे अंतर-परिचालन से ई-नाम का परिचालन आसान होगा।' लेकिन यह जुड़ाव कैसे होगा? इसे लेकर अभी कोई वैश्विक बेंचमार्क उपलब्ध नहीं है।
एनसीडीईएक्स के एमडी और सीईओ समीर शाह कहते हैं, 'इस कदम से किसानों को बेहतर आमदनी प्राप्त करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही वे जोखिम कम करने और लाभ बढ़ाने के लिए डेरिवेटिव प्लेटफॉर्म पर अपनी उपज की हेजिंग कर सकेंगे।' उन्होंने सुझाव दिया, 'डेरिवेटिव एक्सचेंजों से मान्यता प्राप्त गोदाम हाजिर मंंडियों या एपीएमसी के लिए हब या स्पॉक हो सकते हैं। ज्यादातर एपीएमसी के पास भंडारण, ग्रेडिंग और गुणवत्ता जांच की सुविधाएं नहीं होती हैं। एक्सचेंजों से मान्यता प्राप्त गोदाम ये सुविधाएं मुहैया करा सकते हैं। ऐसे गोदामों में किसानों द्वारा भंडारित माल की हाजिर प्लेटफॉर्म पर बिक्री भी जा सकती है और डेरिवेटिव एक्सचेंज पर हेजिंग भी की जा सकती है।'
राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) का दायरा बढ़ाकर 585 मंडियों तक पहुंचाया जाएगा जो इस समय 250 है। साफ-सफाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग सुविधाएं तैयार करने के लिए प्रत्येक मंडी को 75 लाख रुपये तक की मदद मुहैया कराई जाएगी। कर्नाटक में मंडियों को आपस में जोडऩा इस बात का उदाहरण है कि किस तरह एक कस्बे का किसान पूरे राज्य में उसकी उपज की सबसे अधिक मिल सकने वाली कीमत हासिल कर सकता है। र्ई-नाम से पूरे देश की सबसे बेहतर कीमत हासिल करना संभव हो जाएगा।
सबसे पहले इलेक्ट्रॉनिक हाजिर कारोबार शुरू करने वाली एनसीडीईएक्स ई-मार्केट्स लिमिटेड के मुख्य कार्याधिकारी राजेश सिन्हा ने कहा, 'इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर इस तरह से प्राप्त हाजिर कीमत का इस्तेमाल डेरिवेटिव अनुबंधों के निपटान में किया जा सकता है। इस समय डेरिवेटिव अनुबंधों का निपटान की कीमत हाजिर कीमतों की पोलिंग से प्राप्त की जाती है।'
अच्छी कीमत मिलने के अलावा उपज पर बेहतर ऋण मिल सकेगा। एमसीएक्स के अध्यक्ष और पूर्णकालिक निदेशक पी के सिंघल ने कहा, 'ऐसे जुड़ाव से डेरिवेटिव प्लेटफॉर्मों की प्रासंगिकता बढ़ेगी। इसके अलावा बेहतर जोखिम प्रबंधन के माहौलमें बैंक ज्यादा फसल ऋण दे सकेंगे। ऐसे ऋण के लिए गोदामों में जमा माल की एवज में जारी इलेक्ट्रॉनिक निगोशिएबल गोदाम रसीदों का इस्तेमाल किया जा सकता है।' लेकिन हाजिर और डेरिवेटिव मंडियों को जोडऩे की राह आसान नहीं होगी। जिंस विशेषज्ञ और सेबी सलाहकार समिति के सदस्य विजय सरदाना ने कहा कि मंडियों में कारोबारियों की तगड़ी लॉबी है, जो सुधार नहीं चाहते। इसलिए इसमें राज्यों का सहयोग अहम होगा।
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