भारतीय सिनेमा की बढ़ती लोकप्रियता को भुनाने के लिए अब विदेशी कंपनियों की कतार लग गई हैं। साल 2009 तक सैकड़ों की तादाद में नए सिनेमा स्क्रीन भी शुरू होने वाले हैं।
इसी अवसर का लाभ उठाने के लिए अमेरिकी कंपनी टेक्सास इन्स्ट्रूमेंट्स भी डिजिटल लाइट प्रोसेसिंग (डीएलपी) तकनीक के साथ भारतीय बाजार में उतरने की तैयारी में है। इसके लिए कंपनी ने इस डीएलपी तकनीक का पेटेंट भी करा लिया है। डीएलपी प्रोजेक्टर में सेमीकंडक्टर चिप पर छोटे शीशों की मदद से छवि को उभारा जाता है। इस सेमीकंडक्टर चिप को डिजिटल माइक्रो मिरर डिवाइस (डीएमडी) नाम दिया गया है।
ऐसी प्रत्येक चिप में लगभग 20 लाख शीशें लगे होते हैं। ऐसी तीन चिप के इस्तेमाल से बना हुआ प्रोजेक्टर इतने रंग दिखा सकता है कि उसमें से ज्यादातर रंग तो सामान्य आंखों से देखे ही नहीं जा सकते हैं।
टेक्सास को भारतीय बाजार में काफी संभावनाएं नजर आती है। भारतीय डिजिटल सिनेमा समूह स्क्रेबल इंटरटेनमेंट ने पहले ही क्रिस्टी के साथ ऐसे 200 डीएलपी प्रोजेक्टर के लिए समझौता कर लिया है। क्रिस्टी डिजिटल सिनेमा के क्षेत्र की एक सेवा प्रदाता कंपनी है। स्क्रेबल अब बड़े स्टूडियों और स्वतंत्र वितरकों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाएगा। इसके लिए कंपनी ने एक वर्चुअल प्रिंट फीस (वीपीएफ) व्यापार मॉडल भी तैयार कर लिया है।
इस मॉडल के अंतर्गत स्क्रेबल फिल्म वितरकों से वर्चुअल प्रिंट फीस लेकर सिनेमा घर के मालिकों को वित्तीय सहायता देगा।टेक्सास कंपनी के डीएलपी प्रोडक्ट के बिजनेस डेवेलपमेंट निदेशक गणेश एस ने बताया कि अगले 12 महीनों में कंपनी को लगभग 250 इंस्टॉलेशन हो जाऐंगे। एडलैब्स पहले ही परीक्षण के लिए 20 प्रोजेक्टर खरीदने की घोषणा कर चुका है। चेन्नई स्थित सत्यम सिनेमा भी पहले ही 6 प्रोजेक्टर का इंस्टॉलेशन कर चुका है।
कंपनी अभी और भी कई पोस्ट प्रोडक्शन कंपनियों के साथ इस बारे में बातचीत कर रही है। स्क्रेबल ने इस तकनीक के प्रदर्शन के लिए पीवीआर सिनेमा के साथ समझौता किया है। पीवीआर इस तकनीक को अपने सभी नए मल्टीप्लैक्स में शुरू करने की योजना बना रहा है। टेक्सास ने अपनी इस तकनीक का लाइसेंस बार्को, क्रिस्टी और एनईसी जैसी निर्माण कंपनियों को दिया है।
स्क्रेबल ऐंटरटेनमेंट के मुख्य कार्यकारी रंजीत ठाकुर ने बताया कि कंपनी बजार में इसकी कीमत को कम करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने बताया कि एक एनालॉग प्रोजेक्शन सिस्टम स्थापित करने में लगभग 16 से 18 लाख रुपये का खर्च आता है। कंपनी डीएलपी की कीमत भी इसी स्तर तक लाना चाहती है। हर साल लगभग 300-400 स्क्रीन्स बनाई जाती है और कंपनी इसमें से लगभग 50 फीसदी हिस्सेदारी चाहती है।
ठाकुर ने बताया कि कंपनी को लगभग 300-350 प्रोजेक्टर की बिक्री की उम्मीद है। ठाकुर ने बताया कि इस तकनीक की मुख्य खासियत है कि इससे प्रिंट की कीमत बच जाती है।फिल्म की लंबाई ध्यान में रखते हुए एक प्रिंट की कीमत लगभग 55,000 से 60,000 के बीच आती है। अगर कोई निर्माता अपनी फिल्म के 1000 प्रिंट रिलीज करना चाहता है तो उसे इसके लिए एक बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है।
डिजीटल फॉर्मेट के आने के बाद निर्माता अपनी फिल्म को कम समय में ज्यादा जगह रिलीज कर सकेंगे। डीएलपी सिनेमा मार्केटिंग के प्रबंधक टोनी एडमसन ने बताया कि डीएलपी हॉलीवुड में निर्धारित डिजीटल मानकों पर खरा उतरता है।