गरीबी रेखा की जगह लेंगे जनगणना के आंकड़े | |
संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली 01 15, 2017 | | | | |
एसईसीसी के ग्रामीण आंकड़े
68.25 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास है मोबाइल फोन
11.04 प्रतिशत परिवारों के पास है अपना रेफ्रिजरेटर
4.58 प्रतिशत ग्रामीण करते हैं आयकर का भुगतान
51.14 प्रतिशत की आमदनी आकस्मिक शारीरिक श्रम से
0.37 प्रतिशत भीख या दान पर निर्भर
0.23 प्रतिशत कूड़ा कचरा बीनने वाले
30.10 प्रतिशत की आमदनी होती है खेती से
20.69 प्रतिशत ग्रामीणों के पास है ऑटोमोबाइल
लाभार्थियों के चयन और ग्रामीण इलाकोंं में सामाजिक योजनाओं को धन जारी करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली गरीबी रेखा को खत्म करने और उसकी जगह पर सामाजिक आर्थिक जातीय जनगणना (एसईसीसी) के इस्तेमाल की समिति की सिफारिशों को केंद्र सरकार ने 2017-18 के बजट के पहले स्वीकार कर ली है। अधिकारियों ने कहा कि सिफारिशें स्वीकार किए जाने से किसी ग्रामीण योजना में लाभार्थियों की पहचान और भविष्य की योजनाओं के लिए एसईसीसी के आंकड़ों का इस्तेमाल प्राथमिक स्रोत के रूप में होगा।
एसईसीसी की शुरुआत 2011 में पहली ऐसी राष्ट्रीय जनगणना के ररूप में हुई, जिसमें 1931 के बाद पहली बार जाति आधारित आंकड़े एकत्र किए गए हैं। इसके परिणाम 2015 की शुरुआत में जारी किए गए, लेकिन अनुसूचित जाति व जनजाति के अलावा अन्य जातीय आंकड़े जारी नहीं किए गए। 2017-18 के बजट में न केवल लक्षित योजनाओंं को शुरू करने में बल्कि जमीन पर इनके प्रभाव की निगरानी के लिए इन आंकड़ोंं का इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस समिति की अध्यक्षता पूर्व वित्त सचिव सुमित बोस ने की थी, जिसमें ग्रामीण विकास सचिव अमरजीत सिन्हा, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ डेवलपमेंट रिसर्च के निदेशक महेंद्र देव, विश्व बैंक के अर्थशास्त्री रिंकू मुरगई, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हिमांशु और मंत्रालय से मनोरंजन कुमार शामिल थे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'एसईसीसी के आंकड़ों से हम जानते हैं कि करीब 8,00,000 लोग ग्रामीण इलाकों में अक्षम हैं, जिनके परिवार में कोई वयस्क नागरिक नहीं है जो उनकी देखभाल कर सके। केंद्र सरकार इस सूचना का इस्तेमाल इस तरह की समस्याओं के लिए लक्षित कार्यक्रम बनाने में कर सकती है।'
यह आंकड़े सामाजिक पंजीकरण का भी काम करेगी, जिससे यह जानने में मदद मिल सकेगी कि क्या सरकार द्वारा दिए जा रहे लाभों से लोगों को गरीबी रेखा से बाहर आने में मदद मिली या नहीं। एसईसीसी को ग्रामीण गरीबों को भी चिह्नित करना था और इसमेंं घर घर पहुंचकर काम पूरा करने की विधि का इस्तेमाल किया गया। इसमें कहा गया है कि 17.9 ग्रामीण परिवारों में 0.9 प्रतिशत को स्वत: ही पूरी तरह वंचित की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा 8.73 करोड़ परिवारों को एक या एक से अधिक कारकों के माध्यम से चिह्नित किया गया, जिसमें परिवार में किसी युवा सदस्य का न होना, भूमिहीन परिवार, आमदनी शारीरिक श्रम से होना आदि आंकड़े शामिल हैं।
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