7.1 फीसदी से अलग वृद्धि दर के अनुमान का आधार नहीं | इंदिवजल धस्माना / January 08, 2017 | | | | |
मुख्य सांख्यिकीविद टीसीए अनंत का कहना है कि नोटबंदी का चालू वित्त वर्ष में आर्थिक विकास पर असर बहुत जटिल कहानी है। उन्होंने इंदिवजल धस्माना से बातचीत में कहा कि आगे के आंकड़े आने के पहले इसके बारे में राय देने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। संपादित अंश...
कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाना अत्यधिक आशावादिता है। आपका क्या कहना है?
देखिए इस समय यही है, जो हमने कहा और मेरे पास आकलन के लिए अन्य कोई आधार नहीं है। कुछ और आंकड़े आने तक इंतजार करें, जिसके आधार पर हम आकलन कर सकेंगे।
लेकिन अभी तक के आंकड़ों से हम क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? क्या हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था सुस्त रहेगी, जबकि नोटबंदी के आंकड़े शामिल नहीं हुए हैं?
आपको अपने शब्दों के चयन में सचेत रहना चाहिए। हां, मंदी है। नोटबंदी के बारे में कुछ कहने के लिए साक्ष्य नहीं हैं। नोटबंदी को पूरे साल के मुताबिक किस तरह से देखें, यह जटिल मामला है।
फरवरी के आखिर में पुनरीक्षित अग्रिम आंकड़े आने पर क्या हम पहले अग्रिम आंकड़े से बहुत ज्यादा अंतर की उम्मीद कर सकते हैं?
जब आंकड़े आ जाएंगे, तभी हम कुछ कह सकते हैं कि इसमें ज्यादा अंतर आएगा या नहीं।
अग्रिम अनुमानों के मुताबिक फरवरी में बजट पेश किया जाएगा। अगर पहले और पुनरीक्षित अग्रिम अनुमानों में भारी अंतर आता है तो नए आंकड़ों का बजट से कैसे तालमेल बिठाया जा सकेगा?
आप यह सवाल वित्त मंत्रालय से पूछ सकते हैं।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में सकल नियत पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। निजी निवेश नहीं बढ़ रहा है, यह चौंकाने वाला नहीं है?
जीएफसीएफ के लिए तमाम संकेतक हैं। कुछ संकेतक औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) से जुड़े हैं और मुख्य क्षेत्र के आंकड़े, जैसे स्टील क्षेत्र, भी होते हैं। ऐसे में आधे साल का आकलन उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर उसके बाद का अनुमान हम लगाते हैं।
अग्रिम अनुमानों में भी ज्यादातर वृद्धि सरकारी व्यय और कृषि में आ रही है। क्या जीएफसीएफ भी सिर्फ सरकारी पूंजी पर आधारित है?
ये लेखा के दो अलग अलग तरीके हैं। आप व्यय और उत्पादन के लेखा को एक में नहीं मिला सकते।
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