इक्विटी से ज्यादा मिल रहा डेट फंड में रिटर्न | चंदन किशोर कांत / मुंबई December 07, 2016 | | | | |
डेट म्युचुअल फंडों ने लगातार दूसरे साल अच्छे खासे मार्जिन के साथ इक्विटी योजनाओं को पीछे छोड़ दिया है। डेट फंड का दो साल का औसत रिटर्न 10.2 फीसदी है जबकि इक्विटी फंडों का 3.3 फीसदी। इस साल डेट फंड का रिटर्न 12.3 फीसदी रहा जबकि इक्विटी फंडों का 5 फीसदी।
भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से आसान मौद्रिक रुख अपनाए जाने से बॉन्डों का प्रतिफल नरम हुआ है और इसका फायदा डेट योजनाओं को मिला है, वहीं कंपनियों की आय में सुस्ती के बाद बाजार में कुछ उतारचढ़ाव देखा गया था, लेकिन इसके बाद बाजार शांत हो गया है।
इन्वेस्को म्युचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम प्रमुख सुजॉय दास ने कहा, ब्याज दरों में काफी गिरावट आई है, जिससे डेट फंडों को फायदा मिला है। 2017 में इसमें नरमी का एक और चक्र देखने को मिल सकता है, जिससे रिटर्न में और मजबूती आएगी।
मीडियम व लॉन्ग टर्म गिल्ट फंडों ने 18 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया है और डायनेमिक बॉन्ड फंडों ने करीब 16 फीसदी का रिटर्न दिया है। ज्यादातर डेट फंडों ने दो अंकों में रिटर्न दिया है। उधर, ज्यादातर इक्विटी योजनाओं में (बैंकिंग व स्मॉल कैप को छोड़कर) इस तरह का रिटर्न नहीं देखने को मिला है। लोकप्रिय लार्ज कैप इक्विटी फंडों ने साल 2016 में छह फीसदी से कम रिटर्न दिया है।
नोट पर चोट ने नवंबर में डेट फंडों के रिटर्न मेंं इजाफा किया है और इक्विटी फंडों पर इसका विपरीत असर पड़ा है। पिछले महीने डेट योजनाओं ने 0.55 फीसदी से लेकर 4.82 फीसदी का रिटर्न दिया क्योंकि बेंचमार्क स्टॉक सूचकाकों में 5 फीसदी की गिरावट आई और इसकी वजह चलन में रहे मुद्रा का 86 फीसदी को वापस मंगाने से जुड़ी अनिश्चितता रही।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्युचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी एस नरेन ने कहा, नोट वापस लिए जाने से बैंकिंग व्यवस्था में काफी रकम वापस आएगी। मध्यम अवधि में काफी कम प्रतिफल की संभावना है। हम निवेशकों को तत्काल फिक्स्ड इनकम में निवेश की सलाह दे रहे हैं क्योंकि इसका रिटर्न बेहतर रहने की संभावना है।
म्युचुअल फंडों की 16 लाख करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों में करीब 11 लाख करोड़ रुपये डेट श्रेणी में हैं। चूंकि बैंक जमाओं की दर सात फीसदी से नीचे आ गई है, लिहाजा उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि डेट योजनाओं में और निवेश की उम्मीद है।
दास ने कहा, हमारा अनुमान है कि खाद्य कीमतें साल 2017 में मौजूदा स्तर पर बनी रहेगी और इससे महंगाई में होने वाली किसी तरह की बढ़ोतरी को थामने में मदद मिलेगी। इससे आरबीआई दरों में कटौती के लिए बाध्य हो सकता है।
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