नकद रहित कृषि कारोबार की जमीन तैयार | |
दिलीप कुमार झा/शशिकांत त्रिवेदी/विमुक्त दवे/संजीव मुखर्जी / मुंबई/भोपाल/अहमदाबाद/नई दिल्ली 11 23, 2016 | | | | |
► मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात में मंडियां किसानों को बैंकों के जरिये कर रही हैं भुगतान
► मध्य प्रदेश में ज्यादातर मंडियों में किसान आरटीजीएस या चेक से लेने लगे भुगतान
► नकदी की स्थिति सुधरने से महाराष्ट्र की मंडियों में धीरे-धीरे कारोबार सामान्य
► राजस्थान में किसानों का विरोध-प्रदर्शन अब भी जारी
► डेयरी भी नहीं हैं पीछे, मदर डेयरी किसानों के जन धन खातों में डालेगी पैसा
समस्या यह है कि किसान सहकारी बैंकों से पर्याप्त नकदी नहीं ले सकते और यही वजह है कि वे चेक से भुगतान लेने को तैयार नहीं हैं
बड़े नोट बंद करने के कदम से शुरुआत में कृषि मंडियों में कृषि जिंसों का कारोबार प्रभावित हुआ, लेकिन अब ऐसा लगता है कि इस कदम के सकारात्मक असर दिखने लगे हैं। किसानों ने धीरे-धीरे अपनी उपज का भुगतान बैंकिंग माध्यमों के जरिये लेना शुरू कर दिया है, जिससे नकद रहित कृषि कारोबार की पृष्ठभूमि तैयार हो गई है।
मध्य प्रदेश में मंडी बोर्ड के आयुक्त और प्रबंध निदेशक राकेश श्रीवास्तव ने कहा, 'मध्य प्रदेश में ज्यादातर एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समितियों) में किसान रियल टाइम ग्रॉस ट्रांसफर (आरटीजीएस) या चेक से भुगतान लेने लगे हैं। जिन किसानों को अपनी तात्कालिक जरूरतों के लिए तुरंत नकदी की जरूरत है, वे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा तय सीमा में नकदी निकाल रहे हैं। कारोबारी मजदूरों को भुगतान के लिए नकदी की जरूरत का इंतजाम आपसी सहयोग से कर रहे हैं।' हालांकि कारोबारी सूत्रों ने कहा कि नकदी की किल्लत से 8 नवंबर के बाद लेनदेन 70 फीसदी कम हो गए हैं। मध्य प्रदेश की मंडियों में मक्का, सोया, कपास और धान जैसी कृषि जिंसों की आवक 6 लाख टन से घटकर 2.20 लाख टन पर आ गई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भुगतान भी आरटीजीएस के जरिये किया जा रहा है।
राज्य के मंडी बोर्ड के एक अन्य अधिकारी ने कहा, 'छोटे कारोबारी, किसान और जल्द खराब होने वाली जिंसों की बिक्री करने वाले लोग मुश्किल में हैं। कई बार तो ये किसान पुराने नोट भी स्वीकार कर लेते हैं। सोयाबीन उत्पादक किसान स्थिति सामान्य होने और कीमतों में बढ़ोतरी होने का इंतजार कर रहे हैं। इस समय सोयाबीन के दाम 2,800 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास हैं।' मध्य प्रदेश में 257 मंडियां हैं, जो खरीफ सीजन में मुख्य रूप से सोयाबीन, धान, कपास और मक्के की खरीद करती हैं।
महाराष्ट्र में लासलगांव, वाशी और अमरावती मंडियों के किसानों ने चेक (अकाउंट पेयी और बीयरर दोनों ) से भुगतान लेना शुरू कर दिया है। लासलगांव (नासिक, महाराष्ट्र) मंडी के एक प्याज कारोबारी शिवकृपा ट्रेडर्स के मालिक संजय सनप ने कहा, 'लगभग सभी किसानों के बैंक खाते हैं, इसलिए वे सीधे खाते में पैसा हस्तांतरण या चेक के जरिये भुगतान लेने को तैयार हैं। असल में वे इस बात से खुश हैं कि पूरी नकदी एक साथ उनके हाथ में नहीं आ रही।' हालांकि महाराष्ट्र की ज्यादातर मंडियों में कारोबार घटा है, लेकिन नकदी की स्थिति में सुधार से यह धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है।
वहीं इसके विपरीत राजस्थान में किसानों का विरोध-प्रदर्शन जारी है। मंडियों में कृषि जिंसों की आवक बंद हो गई है। राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड के सचिव नारायण यादव ने कहा, 'आर्थिक तंत्र में नकदी की आपूर्ति सामान्य होने यानी 1-2 महीने तक यह विरोध-प्रदर्शन जारी रह सकता है।' मंडियां खुली हैं, लेकिन कारोबार थम गया है क्योंकि किसान ऑनलाइन ट्रांसफर या चेक से भुगतान लेने को तैयार नहीं हैं। नकदी की किल्लत के कारण गुजरात में ज्यादातर मंडियां ठप पड़ी हैं। कारोबारी चेक से भुगतान को तैयार हैं, लेकिन किसान इन्हें स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि उनके खाते सहकारी बैंकों में हैं, जिन्हें अब भी कई प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि अब उन्हें कुछ रियायतें दी गई हैं।
गुजरात राज्य कृषि विपणन बोर्ड के चेयरमैन रमन पटेल ने कहा, 'समस्या यह है कि किसान सहकारी बैंकों से पर्याप्त नकदी नहीं ले सकते और यही वजह है कि वे चेक से भुगतान लेने को तैयार नहीं हैं।' जहां किसान चेक से भुगतान लेने को तैयार हैं, उन मंडियों में कारोबार शुरू हो गया है। ऐसी मंडियों में एक गोंडल मंडी है। राजकोट मंडी में कल से कारोबार शुरू होगा क्योंकि किसानों ने चेक से भुगतान लेने पर सहमति जताई है।
राजकोट एपीएमसी के सचिव डी के सखिया ने कहा, 'राजकोट मंडी ने किसानों से कहा है कि स्थिति सुधरने तक वे मंडी में अपनी जिंस लाएं और चेक से भुगतान लें। हमें उम्मीद है कि कल से मंडी में किसान आएंगे।' सबसे बड़ी जीरा मंडी ऊंझा में जीरे, धनिये और ईसबगोल की आवक अभी शुरू नहीं हुई है, लेकिन कारोबारियों और निर्यातकों के बीच सौदे बैंकिंग चैनलों के जरिये हो रहे हैं।
उत्तर भारत में दूध की सबसे बड़ी विक्रेताओं में से एक मदर डेयरी ने किसानों के जनधन खातों में सीधे भुगतान करने का फैसला किया है। गुजरात की अमूल ने नोटबंदी से पहले ही यह मॉडल अपना लिया था। मदर डेयरी रोजाना करीब 35 लाख लीटर दूध खरीदती है। इसमें 30 से 40 फीसदी योगदान किसान उत्पादक कंपनियों का होता है और इन किसानों के पास बैंक खाते हैं। अन्य 15 फीसदी दूध सहकारी डेयरियों से आता है, जिनका किसानों को भुगतान का अपना तरीका है। शेष निजी खरीद होती है, जहां भुगतान बैंकों के जरिये किया जाता है।
मदर डेयरी के प्रबंध निदेशक एस नागराजन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हम किसानों को भुगतान एक महीने में 2-3 बार करते हैं। पहला भुगतान कर दिया गया है और दूसरा भुगतान अगले कुछ दिनों में शुरू होगा। हम देखेंगे कि नोटबंदी का ग्रामीण इलाकों में क्या असर पड़ा है।'
उत्तर भारत के 7 से 8 लाख किसान मदर डेयरी से जुड़े हुए हैं। उर्वरक क्षेत्र की अग्रणी कंपनी इफ्को ने कहा है कि जहां खुदरा विक्रेताओं की किसानों से सीधी और लंबे समय से जान-पहचान है, वहां उर्वरक उधार में बेचे जा रहे हैं। जहां इस तरह की व्यवस्था नहीं है, वहां कंपनी किसानों को आज या बाद की तारीख के चेक देने के लिए कह रही है और इन चेकों को उनके बैंक खाते के जरिये वैरिफाई किया जा रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस तरीके में हम यह सुनिश्चित करते हैं कि किसान द्वारा भुुगतान के लिए जो चेक दिया गया है, उसके लिए उसके बैंक खाते में पर्याप्त पैसा है या नहीं।
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