एक तो चोरी, फिर मुश्किल घनेरी | तिनेश भसीन / November 02, 2016 | | | | |
अगर आप साइबर अपराध के शिकार हो चुके हैं तो इस बात की पूरी आशंका है कि अपने क्रेडिट या डेबिट कार्ड पर हुए फर्जीवाड़े के लिए आपको बैंक को भुगतान करना होगा। वजह साफ है क्योंकि आपके लिए बैंक की लापरवाही साबित करना बिल्कुल आसान नहीं होगा। आम तौर पर बैंक कहते हैं कि उनकी प्रणाली पूरी तरह सुरक्षित है और जब तक कार्ड और पर्सनल आइडेंटीफिकेशन नंबर (पिन) या वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) का इस्तेमाल एक साथ नहीं हो तब तक लेनदेन नहीं हो सकता। कार्ड पर फर्जीवाड़े की सूरत में बैंक अक्सर दावा करते हैं कि ग्राहक की लापरवाही से ही ऐसा हुआ है क्योंकि पिन या ओटीपी की जानकारी केवल ग्राहकों को ही दी जाती है।
साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं, 'साइबर अपराधियों के लिए साइबर कानून कड़े जरूर हैं, लेकिन अंतत: बैंक की तरफ से हुई लापरवाही साबित करने की जिम्मेदारी पूरी तरह ग्राहक पर डाल दी जाती है।' दुग्गल कहते हैं कि सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत बैंक की तरफ से लापरवाही होने की स्थिति में मनमाना मुआवजा हासिल करने का अधिकार है, लेकिन यह साबित करना खासा मुश्किल है कि बैंक की तरफ से सुरक्षा व्यवस्था में चूक हुई है।
हालांकि ऐसी परिस्थितियां होती हैं जिनमें आप जिम्मेदारी बैंक पर डाल सकते हैं। अगर ग्राहक का कार्ड गलत तरीके से विदेशी वेबसाइट पर इस्तेमाल होता है और इसके लिए ओटीपी नहीं भेजा गया था तो यह परिस्थिति ग्राहक के पक्ष में होती है। अनिवार्य दो स्तरीय सत्यापन, जिसके तहत ओटीपी अकाउंट आउनर की वेबसाइट को भेजा जाता है, केवल भारत में भुगतान के लिए काम करता है। कई साइबर अपराधी विदेशी वेबसाइटों पर कार्ड का इस्तेमाल करे हैं। इसके तहत ओटीपी डाले बिना कार्ड की सूचनाएं देकर लेन-देन हो सकता है। उपभोक्ता कार्यकर्ता जहांगीर पई कहते है, 'यह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशानिर्देशों का सरासर उल्लंघन है। इससे मामला ग्राहक के पक्ष में जाना चाहिए।'
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ प्रशांत माली के अनुसार अगर ग्राहक न्यायालय में यह साबित कर देता है कि सभी आवश्यक सावाधानी बरतने के बाद भी फर्जीवाड़ा हुआ है तो फिर ग्राहक की गलती साबित करने की जिम्मेदारी बैंक की होती है। माली कहते हैं, 'अगर रकम किसी दूसरे खाते में स्थानांतरित होती है तो ग्राहक को इस बात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि बैंक ने उस खाते के लिए केवाईसी औपचारिकताओं का पालन किया था, जिसमें रकम स्थानांतरित हुई थी। ऐसा हो सकता है कि बैंक केवाईसी प्रक्रिया का निष्पादन ठीक से नहीं किया हो। कोई अपनी वास्तविक पहचान बताकर किसी दूसरे व्यक्ति को धोखा देने की जहमत नहीं उठा सकता।'
न्यायालय भी पीडि़त के पक्ष में फैसला सुना चुके हैं। इससे पता चलता है कि बैंक के सुरक्षा तंत्र में खामी हो सकती है। जब आप अपने कार्ड पर गैर-अधिकृत लेन-देन की शिकायत दर्ज करते हैं तो पुलिस अधिकारियोंं से यह जानने की कोशिश जरूर करें कि आपके बैंंक के साथ पहले भी ऐसी घटनाएं तो नहीं हुई हैं। अगर हुईं हैं तो न्यायालय में इसका उल्लेख करें। अगर कार्ड देश से बाहर इस्तेमाल हुआ है तो ग्राहक के पक्ष में अनुकूल फैसला आने की संभावना रहती है। पहले भी ऐसा हुआ है जब फर्जीवाड़ा करने वालों ने भारत से बाहर कार्ड पर लेन-देने किए हैं जबकि ग्राहक भारत में ही थे। ग्राहक का पासपोर्ट भी यह बात साबित करता था, इसलिए बैंकों को सभी लेन-देन की क्षति-पूर्ति करने के लिए कहा गया।
|