स्वच्छ भारत: ज्यादा धन, धीमा मिशन | साहिल मक्कड़ / September 30, 2016 | | | | |
दो महीने पहले रामजी गुप्ता और उनकी पत्नी मंजू देवी ने तय किया कि वे अब हर सुबह वाराणसी के अपने गांव जयापुर के लोगों को खुले में शौच न करने की चेतावनी देने और इस बारे में सजग करने का काम बंद कर देंगे। यह दंपती गांव के लोगों को स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने शौचालयों का प्रयोग करने के लिए मनाने में नाकाम रहा। तकरीबन 30 साल के गुप्ता कहते हैं कि गांव के 75 प्रतिशत लोग शौचालयों का प्रयोग करते हैं लेकिन शेष लोग बात नहीं सुनते। उनके यह काम छोडऩे की एक अन्य वजह यह है कि सरकार से इसके लिए कोई मौद्रिक प्रोत्साहन नहीं है।
रामजी अब दोबारा किराना दुकान संभालने लगे हैं। इस गांव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में गोद लिया था। इसकी आबादी करीब 4,200 है। बीते दो वर्षों में यहां दो बैंक, एक मोबाइल टॉवर, एक बाल विद्यालय, कन्या विद्यालय, एक बस स्टैंड, एक कौशल विकास केंद्र खुले हैं। पंचायत कार्यालय के लिए वाईफाई सेवा, सौर ऊर्जा से जलने वाले स्ट्रीट लैंप और करीब 850 घरों में सौर ऊर्जा उपलब्ध कराई गई है। लेकिन इन घरों में से अधिकांश में स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनने वाले शौचालय नहीं हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने योजना की शुरुआत दो अक्टूबर 2014 को की थी। इसका उद्देश्य था देश में खुले में शौच की प्रवृत्ति को पांच साल में पूरी तरह समाप्त करना। प्रधानमंत्री ने इस योजना में निजी तौर पर रुचि ली। देश की कुल आबादी में करीब 60 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। यह दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक खराब साफ-सफाई के कारण देश के सकल घरेलू उत्पाद को छह फीसदी की चपत लग रही है।
ग्राम प्रमुख नारायण पटेल कहते हैं कि जिन लोगों को शौचालय नहीं दिए गए हैं केवल वे ही खुले में शौच कर रहे हैं। वह कहते हैं, 'हमारा मानना है कि बचे हुए 20-25 परिवारों को भी एक महीने के अंदर शौचालय मिल जाएंगे।' शौचालय खराब होने के कारण भी कई लोगों को बाहर जाना पड़ता है। कुछ गांव वालों ने कहा कि उनके लिए बनाए गए शौचालय अब खराब हो चुके हैं।
जयापुर गांव आबादी और आकार के मुताबिक देश के के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के करीब एक लाख गांवों जैसा है। प्रदेश में केवल 1,950 गांव ऐसे हैं जिन्होंने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है। किसी गांव को खुले में शौच से मुक्त तब घोषित किया जाता है जब वहां हर घर में शौचालय हो और कोई गांव वाला बाहर शौच करता नजर न आए। ऐसे गांव हर राज्य में इस मिशन के तहत मिली सफलता के आकलन का मानक हैं।
थोड़ी हकीकत, थोड़ा फसाना
सफाई की समस्या ग्रामीण इलाकों में ज्यादा बदतर है क्योंकि 2011 की जनगणना के मुताबिक वहां 67 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। केंद्र सरकार का दावा है कि दो वर्ष पहले स्वच्छ भारत मिशन शुरू होने के बाद से ग्रामीण इलाकों में इस मामले में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। इस मिशन के तहत शौचालय निर्माण की दर निर्मल भारत अभियान से 13 फीसदी ज्यादा है। यह अभियान अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 1999 में शुरू किया था और यह दो अक्टूबर 2014 तक चला। मोदी सरकार का दावा है कि पिछले दो साल में 2.369 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं और इस साल के अंत तक करीब 100 जिलों को खुले में शौच की समस्या से मुक्त घोषित किया जा सकता है।
पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर ने कहा कि सरकार सही दिशा में जा रही है। उन्होंने कहा, 'पिछले दो साल में इस कार्यक्रम ने लय पकड़ ली है और उम्मीद है कि इस साल के अंत तक केरल, मिजोरम, गुजरात और हिमाचल प्रदेश को खुले में शौच की समस्या से मुक्त घोषित किया जा सकता है।' लेकिन इन राज्यों की सफलता को बड़ी उपलब्धि नहीं माना जा सकता है। इन राज्यों में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या पहले ही बहुत कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार केरल में 5.5 फीसदी, मिजोरम में 12.9 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 32.5 फीसदी और गुजरात में 65.76 फीसदी जनसंख्या के पास शौचालय नहीं था।
झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में यह अब भी गंभीर समस्या है। इन राज्यों में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत भी इन राज्यों का प्रदर्शन वैसा ही है जैसा निर्मल भारत मिशन के तहत था। एक वरिष्ठï सरकारी अधिकारी ने कहा, 'शौचालय बनाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। हम उन्हें धन मुहैया कराते हैं और राज्य सरकारों से उन स्थानों को प्राथमिकता देने को कहते हैं जहां जनसंख्या ज्यादा है लेकिन शौचालय पर्याप्त नहीं हैं।'
दावों की पोल
केंद्र सरकार का कहना है कि स्वच्छ भारत मिशन शुरू करने के बाद से 85,000 गांव और करीब 20 जिले खुले में शौच की समस्या से मुक्त हो गए हैं। लेकिन इन आंकड़ों को कहां तक सही माना जा सकता है। इन गांवों ने अपने आप ही खुद को खुले में शौच की समस्या से मुक्त होने का प्रमाणपत्र दे रखा है। किसी भी स्वतंत्र संस्था, यहां तक कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षण (कैग), ने भी इन दावों की पुष्टिï नहीं की है। भारतीय गुणवत्ता परिषद ने हाल में 75 जिलों में सर्वेक्षण कराया तो पता चला कि सरकारी वेबसाइट में खुले में शौचालय की समस्या से मुक्त होने का दावा करने वाले गांवों में साफ सफाई की कमी है।
आदत में बदलाव जरूरी
कुछ एशियाई और अफ्रीकी देशों में समुदायों की अगुआई में सफाई कार्यक्रम चलाने का अनुभव रखने वाले कमल कार का कहना है कि सरकार गलत रास्ते पर जा रही है और उसकी नीति में खामियां हैं। उन्होंने कहा, 'सरकार शौचालयों के पीछे भाग रही है, सामूहिक व्यवहार में बदलाव की तरफ नहीं। यह सरकार भी वही कर रही है जो दूसरी सरकारों ने पिछले 60 साल में किया।'
कार ने कहा कि सरकार ने खुले में शौच की समस्या से मुक्त जिलों की जो संख्या बताई है, वह सही नहीं है। इस कार्यक्रम के भी नाकाम होने की संभावना है लेकिन इस बार इसमें बड़ा दांव लगा है क्योंकि इसमें अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी शामिल हैं। शायद अनिश्चितता की वजह से ही विश्व बैंक ने 1.5 अरब डॉलर ऋण देने से पहले इस कार्यक्रम की प्रगति की स्वतंत्र एजेंसियों से पुष्टिï कराई थी।
कैग सहित कई आलोचकों ने सरकारी आंकड़ों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए हैं। इन आंकड़ों के विश्लेषण से इनकी पोल खुल जाती है। उदाहरण के लिए 2001 के अंत में और 2011 में झारखंड में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या क्रमश: 93 और 92 फीसदी थी। साल 2015 में नवंबर के अंत में यह संख्या घटकर 66 प्रतिशत रह गई। यह दावा महत्वाकांक्षी लगता है क्योंकि राज्य सरकार ने इस दौरान सफाई और शौचालयों के निर्माण पर शायद ही कोई पैसा खर्च किया। कुल उपलब्ध रकम में से झारखंड ने 2011 में 14.65 फीसदी, 2012 में 10.68 फीसदी, 2013 में 25.41 फीसदी, 2014 में 49.3 फीसदी और 2015 में 101.29 फीसदी धन का इस्तेमाल किया। कैग ने 2013-14 की रिपोर्ट में पाया कि नए शौचालयों में से 66 फीसदी खराब हैं। मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी यही हाल है। कैग ने सफाई कार्यक्रम पर अपनी रिपोर्ट में सरकार पर अपनी उपलब्धि बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का आरोप लगाया है। झारखंड में आंकड़ों को 327 फीसदी, मध्य प्रदेश में 277 फीसदी और ओडिशा में 199 फीसदी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। इसी तरह छत्तीसगढ़, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के आंकड़े क्रमश: 182, 86 और 172 फीसदी बढ़ाकर दिखाए गए हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकार सफाई के मुद्दे पर जागरूकता जगाने में सफल रही है लेकिन उसे लोगों को शौचालय जाने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
बजट आवंटन ही स्वच्छ भारत के लिए पर्याप्त नहीं: नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपनिवेशवादी शासन के खिलाफ महात्मा गांधी के सत्याग्रह का जिक्र करते हुए शुक्रवार को स्वच्छ भारत के लिए 'सत्याग्रह आंदोलन' चलाने की वकालत की और कहा कि केवल बजट आवंटन कर देने भर से स्वच्छ भारत को हासिल नहीं किया जा सकता है बल्कि यह ऐसी चीज है जो जन आंदोलन के जरिये हकीकत बन सकती है। सड़कों और अन्य स्थानों पर कचरे की तस्वीरें जारी करके उनके द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान के विफल होने का दावा करने वालों पर चुटकी लेते हुए मोदी ने कहा कि उन्हें इस बात से संतोष है कि कम से कम साफ-सफाई के बारे में लोगों में अब जागरूकता तो पैदा हुई है।
स्वच्छ भारत अभियान के दो वर्ष पूरा होने पर आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने स्वच्छता की तुलना देवत्व से करते हुए इस बात पर जोर दिया कि धार्मिक स्थलों पर कचरे को कंपोस्ट में बदला जाना चाहिए। मोदी ने कहा कि लोग जहां कचरे के ढेर को नापसंद करते हैं, वहीं उन्होंने साफ-सफाई को अपनी आदत नहीं बनाया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वच्छता का मुद्दा राजनीतिज्ञों के लिए आसान काम नहीं है। उन्होंने कहा कि कचरे को पुनर्चक्रण के जरिये धन और रोजगार पैदा करने का माध्यम बनाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एक बार समाज कचरे को धन के रूप में परिवर्तित करना सीख लेगा तब स्वच्छता 'बाईप्रोडक्ट' बन जाएगा। मोदी ने कहा कि किसी चीज का दोबारा उपयोग और पुनर्चक्रण लंबे समय से भारतीयों की आदत बन गई है। उन्होंने कहा कि इन्हें प्रौद्योगिकी संचालित बनाए जाने की जरूरत है। उन्होंने स्टार्टअप से स्वच्छता के लिए नए उपकरण विकसित करने का आग्रह किया जो लोगों की जरूरतों के अनुरूप हों। मोदी ने कहा कि उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्री एम वेंकैया नायडू को दूरदर्शन पर 'स्वच्छता से संबंधित खबरें प्रसारित करने का सुझाव दिया है क्योंकि स्वच्छता का संदेश फैलाना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि बच्चे साफ-सफाई के बारे में ज्यादा सजग हो रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि स्वच्छ भारत अभियान लोगों केे जीवन को छू रहा है। उन्होंने कहा कि शहरों के बीच भी साफ-सफाई और अपने शहरों को साफ रखने के लिए प्रतिस्पर्धा हो रही है। मीडिया की सकारात्मक भूमिका की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जब कभी कोई योजना पेेश होती है तो मीडिया आमतौर पर पहले उसे संदेह की नजर से देखता है। लेकिन स्वच्छ भारत अभियान का मुझसे भी अधिक प्रचार मीडिया ने किया। इस मामले में संदेश फैलाने के संदर्भ में मीडिया की भूमिका सराहनीय रही है।
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