चाहे वह धातु हो, खाद्य वस्तु, सब्जियां या खाद्य तेल...सबकी कीमतों में आग लगी हुई है।
छठे वेतन आयोग की सिफारिशों, कच्चे तेल की रिकॉर्ड कीमतों और सामाजिक क्षेत्र के लिए धन लुटाती सरकार...इन सबने मिलकर इस आग को भड़काने में मानों घी का काम किया है। लोगों के बजट की चादर से बाजार की चीजों को बाहर निकालने के साथ-साथ बेकाबू होती महंगाई ने ब्याज दर भी कम होने की आस को चकनाचूर कर दिया है।
हालांकि सरकार ने इस खतरे को भांपते हुए इस पर काबू पाने के लिए बड़े पैमाने पर कवायद शुरू कर दी है। लेकिन ये सवाल फिर भी फिजां में गूंज रहे हैं कि क्या कारण हैं, जिनसे हालात बेकाबू हुए और क्या होगा अगर यह आग और भड़की तो...
महंगाई दर पहुंची 13 माह के उच्चतम पर
धातु और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी ने महंगाई को 6.68 फीसदी के स्तर पर पहुंचा दिया है, जो पिछले 13 माह का उच्चतम स्तर है। यही नहीं, इसने निकट भविष्य में कमतर ब्याज दरों की उम्मीद पर भी पानी फेर दिया है। हाल के महीनों में चार फीसदी के करीब रहने के बाद अब महंगाई दर बढ़ने लगी है और 15 मार्च को समाप्त सप्ताह के दौरान इसमें 0.76 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
पिछले सप्ताह मुद्रास्फीति 5.92 फीसदी थी, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 6.56 फीसदी थी। दुनियाभर के बाजारों के रुख के अनुरूप धातु महंगी हुईं। सब्जियां, रेपसीड और सरसों तेल जैसे खाद्य उत्पाद और महंगे हुए।
विशेषज्ञों का कहना है कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों और प्रस्तावों में सामाजिक क्षेत्र के लिए बढ़े खर्च की घोषणाओं और कच्चे तेल में तेजी के कारण महंगाई दर बढ़ने की आशंका है। महंगाई दर में बढ़ोतरी के कारण हो सकता है भारतीय रिजर्व बैंक नरम मुद्रा नीति न बनाए और आशंका है कि सख्त ब्याज दर नीति बरकरार रहे। उन्होंने यह भी कहा कि कीमतों पर नियंत्रण करने के लिए सरकार को कुछ और वित्तीय कदम उठाने पड़ेंगे।