सरकारी अधिकारियों की विदेश यात्राओं पर अंकुश लगाने के लिए वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग द्वारा जनवरी 2016 के पहले सप्ताह में जारी किए गए चार पृष्ठï के सर्कुलर को एक अन्य कठोर एवं सख्त ज्ञापन के तौर पर देखा गया। लेकिन सात महीने बाद भी कई प्रमुख मंत्रालयों और विभागों को इसे समझ पाना मुश्किल साबित हो रहा है। कई का मानना है कि अंतरराष्टï्रीय यात्राओं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ध्यान केंद्रित किए जाने और अधिकारियों को यात्राएं सीमित करने के लिए सरकार के दबाव के बीच असमानता है। अधिकारियों ने अपने मंत्रालयों के नाम की पहचान गुप्त रखने के अनुरोध पर बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ इस मुद्दे पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि जहां यह सर्कुलर सभी मंत्रालयों के सभी सरकारी अधिकारियों के लिए था वहीं इसकी व्याख्या काफी हद तक विविध है। जहां एक प्रमुख आर्थिक विभाग ने विदेश यात्रों पर सख्त रुख अपनाया वहीं अन्य मंत्रालय ने जरूरत पडऩे पर अपने अधिकारियों को देश से बाहर बैठकों और सम्मेलनों में शिरकत करने के लिए भेजने का सिलसिला बरकरार रखा है। जनवरी का सर्कुलर इस संबंध में अब तक की कार्य प्रणाली से एकदम अलग था। जहां शुरुआती कठोर कदमों का मतलब है विदेश यात्राओं पर होने वाले खर्च को नियंत्रित करना, वहीं साल के शुरू में भेजा गया ज्ञापन इससे काफी अलग था। इसमें कहा गया कि विदेश यात्राएं पांच कार्य दिवसों से अधिक की नहीं होंगी। इसके अलावा विदेश यात्रा के लिए कोई भी प्रतिनिधि मंडल (चाहे अधिकारियों का स्तर कैसा भी हो) पांच कामकाजी दिनों या पांच सदस्यों की सीमा को पार करेगा तो उसे इसकी मंजूरी के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली जांच समिति के समक्ष पेश होना होगा। इसके अलावा, कोई भी अधिकारी एक साल में चार बार से अधिक सरकारी यात्राओं पर नहीं जाएगा और इससे अधिक यात्राओं की स्थिति में ऐसे प्रस्तावों पर जांच समिति के माध्यम से प्रधानमंत्री की सहमति अनिवार्य होगी। पिछले साल तक जांच समिति सिर्फ उन अधिकारियों के लिए यात्राओं को मंजूरी देती थी जो संयुक्त सचिव के स्तर से ऊपर के थे। वहीं संयुक्त सचिव और इससे नीचे के स्तर के अधिकारियों के लिए केंद्रीय मंत्री की मंजूरी की जरूरत थी। एक असंतुष्टï अधिकारी ने बताया कि समस्या यह है कि कुछ खास मंत्री ही विदेश यात्रा पर जा रहे हैं और व्यय विभाग के ज्ञापन में इन पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। अधिकारी ने कहा, 'कुछ सचिव यह निर्णय लेने में अपनी मनमानी कर रहे हैं कि किसे विदेश यात्रा पर जाना चाहिए, किसे नहीं, क्या जरूरी है और क्या नहीं। इससे स्टाफ असंतुष्टï दिख रहा है।' एक अन्य अधिकारी ने कहा कि कई मंत्रालयों और सरकारी विभागों में कामकाज प्रभावित हो रहा है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण बैठकों के लिए प्रतिनिधि मंडल का आकार सीमित किया गया है। कई मामलों में यात्राओं को रद्द भी किया गया है जिसका व्यावसायिक मामलों और महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सूचना के आदान-प्रदान पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। लेकिन संप्रग गठबंधन सरकार के दौरान अहम पद की कमान संभाल चुके पूर्व कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'मेरा सामान्य तौर पर मानना है कि विदेश यात्रा को न सिर्फ सख्ती के उपाय के तौर पर सीमित किया जाना चाहिए, बल्कि विभिन्न मंत्रालयों में कार्य की रफ्तार बनाए रखने के मकसद से भी इस पर विचार किया जाना चाहिए।' पिछली सरकार में काम कर चुके एक अन्य वरिष्ठï नौकरशाह ने कहा, 'सरकारी अधिकारियों की विदेश यात्राएं हमेशा विवादास्पाद मुद्दा रही हैं।' अधिकारी ने जनवरी के ज्ञापन से जो एक अन्य मुद्दा उभरकर सामने आया है, उसके बारे में बताते हुए कहा कि इसमें विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की यात्रा को सीमित किया गया है। इसमें कहा गया है, 'विदेश यात्रा पर जाने वाले भारतीय प्रतिनिधि मंडल में किसी एमईए अधिकारी को शामिल किए जाने की जरूरत नहीं है। इसके बजाय संबद्घ देश (जहां की यात्रा पर जाना हो) में स्थित भारतीय दूतावास की सेवाओं का भी उपयोग किया जा सकता है।'
