उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और झांसी स्थित संयंत्रों में लगेगी प्रदूषण नियंत्रण इकाई
वीरेन्द्र सिंह रावत / लखनऊ January 04, 2009
आवासीय एवं शहरी विकास निगम लिमिटेड (हुडको) ने उत्तर प्रदेश के दो ताप विद्युत परियोजना में सुधार लाने की कवायद के तहत 140 करोड़ रुपये के कर्ज की अनुमति दी है।
उत्तर प्रदेश में बिजली आपूर्ति का संकट बहुत गहरा रहा है ऐसे में इस कर्ज की सख्त जरूरत थी। राज्य की नियमित बिजली आपूर्ति में लगभग 3,000 मेगावाट की कमी दर्ज की गई है।
हुडको, अलीगढ़ और झांसी जिले में मौजूद हरदुआगंज और परिछा विद्युत संयत्र में ईपीएस लगाने के लिए 139.60 करोड़ रु पये का कर्ज देगी।
ईपीएस वह यंत्र है जिसका इस्तेमाल पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए किया जाता है। लगभग 700 मेगावाट क्षमता वाले इन दोनों संयत्रों का मालिकाना हक यूपी विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के पास है।
ये ईपीएस हरदुआगंज और परिछा की क्रमश: तीन और दो इकाईयों में लगाए जाएंगे। कई उद्योगों में पर्यावरण प्रदूषण और सरकारी नियमों की वजह से ही अवक्षेपक का इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल अवक्षेपक एक शोधक के तौर पर काम करता है और यह बेकार के धूल और खराब पदार्थो को दूर करने के काम आता है।
इसी दौरान पिछले दिनों राज्य मंत्रिमंडल ने हुडको के लोन के एवज में मुफ्त गारंटी देने का फैसला लिया है। इससे पहले राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इन विद्युत संयत्रों की विस्तार योजना के तहत ईपीएस लगाने पर अनापत्ति प्रमाण पत्र देने का फैसला किया है।
इस पूरे परियोजना की लागत 180 करोड़ रुपये आएगी जिसमें से 70 फीसदी राशि कर्ज के जरिए मुहैया कराई जाएगी। जबकि 30 फीसदी राशि का इंतजाम हुडको और राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराई गई इक्विटी के जरिए किया जाएगा।
निगम के प्रबंध निदेशक आलोक टंडन का कहना है, 'हमलोगों ने पहले से ही भारत हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (भेल)को ईपीएस का ऑडर्र दे दिया था। राज्य सरकार से पर्याप्त फंड मिलने पर ही यह काम हो रहा है।'
इस परियोजना के वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान पूरी होने की उम्मीद है। टंडन ने आगे बताया कि, 'राज्य के सभी पुराने विद्युत संयत्र को भी प्रदूषण नियंत्रण के नियमों का आदेश पालन करना होता है और इस तरह के कदम दूसरी विद्युत इकाईयों के लिए भी लिया जाता है।'
उत्तर प्रदेश में जल और ताप संयत्र के इकाईयों की संख्या 26 है जिसकी क्षमता है 2,500 मेगावॉट। यहां 3,000 मेगावॉट विद्युत केंद्र से लिया जाता है जबकि यहां आमतौर पर 8,000 मेगावॉट की जरूरत होती है। इस लिहाज से विद्युत आपूर्ति की क्षमता में भारी कमी दिखती है।
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