वैश्विक मंदी की वजह से पिछले छह महीनों के दौरान कपड़ा उद्योग की कई परियोजनाओं का काम बंद हुआ है।
कच्चे माल की कीमतों में जबरदस्त उछाल, बिजली की बढी दरें और मजदूरों की कमी का सामना इस उद्योग को इस वर्ष करना पड़ा। कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है, तो दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 50 फीसदी की गिरावट आई है।
वैश्विक मंदी के कारण अर्थव्यवस्था में उठा पटक के बावजूद 2008 कपड़ा उद्योग के लिए संतोषजनक रहा। निर्यात में कमी के कारण देश में कई कपड़ा इकाइयों का काम बंद हुआ तो कुछ ने मंहगाई और मंदी की चादर ओढ़ ली।
एक अनुमान के मुताबिक इस वर्ष कपड़ा उद्योग को नुकसान तो नहीं हुआ लेकिन देशभर में लगभग तीन लाख लोगों का रोजगार जरूर छिन गया है।
कपड़ा मिलों के बंद होने के बाद इस समय कपड़े का उत्पादन लूमों में होता है। महाराष्ट्र में भिवंडी, मालेगांव और इचलकरंजी मुख्य कपड़ा उत्पादक क्षेत्र हैं।
यहां करीबन 25 लाख लूमों में प्रतिदिन औसतन 20-22 करोड़ मीटर कपड़े का उत्पादन होता है। सरकारी उपेक्षा के कारण पिछले कई साल से यहां की विकास दर शून्य रही है।
2004 में जितना उत्पादन हो रहा था लगभग उतना ही उत्पादन आज भी हो रहा है।हिन्दुस्तान चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष शंकर केजरीवाल कहते हैं कि यह वर्ष कपड़ा उद्योग के लिए सामान्य रहा।
जनवरी 2008 तक तो विकास की गति तेज रही किन्तु उसके बाद विभिन्न वजहों से व्यापार कमजोर होने लगा। कपास के समर्थन मूल्य में 40 फीसदी की बढ़ोत्तरी के चलते यार्न के दाम बढ़ गए और कपड़े की उत्पादन लागत बढ़ गई।
दूसरी सबसे बड़ी समस्या कुछ मजदूरों के पलायन के कारण पैदा हुई। महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के खिलाफ चलाए गए आंदोलन के कारण भारी संख्या में मजदूरों ने पलायन का रास्ता अपनाया। परिणामस्वरूप मजदूरी मंहगी होने के साथ-साथ कपड़े की गुणवत्ता में भी फर्क आया।
भारत चैंबर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष राजीव सिंघल कहते है कि समस्याओं के बावजूद कपड़ा कारोबार के लिए यह साल अच्छा रहा है। डॉलर के मजबूत होने से कारोबारियों को अच्छा फायदा होता लेकिन अमेरिकी मंदी के कारण निर्यात में कमी आई है ।
दूसरी बात जब डॉलर गिर रहा था तो बाजार में ऐसा माहौल बनाया गया कि डॉलर 32-34 रुपये तक भी आ सकता है जिससे ज्यादातर कारोबारियों ने लगभग 40 के स्तर पर हेज कर लिया। हेजिंग करने की वजह से डॉलर की मजबूती का फायदा व्यापारियों को नहीं मिल पाया।
साल की शुरुआत में निर्यात ठीक था। 2005-06 में निर्यात में 24 फीसदी वृध्दि हुई थी तो रुपये में मजबूती से 2006-07 में यह सिर्फ 7 फीसदी रही। वस्त्र एवं उद्योग मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष भारत ने 22.5 अरब डॉलर का निर्यात किया था।
इस वर्ष की प्रथम छमाही में इसमें 11.5 फीसदी की वृध्दि दर्ज की गई है लेकिन अक्टूबर के बाद स्थिति एकदम बदल गई तथा अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में यह पिछले वर्ष के बराबर ही रहने वाला है।
भारत के मैनचेस्टर मुंबई की मुसीबतें
कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 40 प्रतिशत बढ़ा
कपड़ा उद्योग से जुड़े 3 लाख लोग बेरोजगार हुए
कपड़े के मुख्य उत्पादक 25 लाख लूमों का विकास दर शून्य
मराठी-गैर मराठी विवाद से मजदूरों का पलायन
कपड़े पर 3 प्रतिशत चुंगी से कारोबार प्रभावित
इन मुसीबतों के बावजूद भी पिछले साल के 22.5 अरब डॉलर के निर्यात की बराबरी का अनुमान