► 2.25 रुपये प्रति लीटर राजस्व घाटा कम किया जाना है केरोसिन के दाम में हर महीने मामूली बढ़ोतरी करके
► शुरुआत में इसे किया जाएगा 9 किस्तों में, प्रयोग सफल रहने पर बढ़ाया जा सकता है इसे आगे
► वर्तमान में राजस्व हानि है 13.12 रुपये प्रति लीटर
► जुलाई में 25 पैसे की वृद्धि शामिल करें तो चालू वित्त वर्ष में 2.25 रुपये प्रति लीटर बढ़ेंगे दाम
सरकार ने तेल कंपनियों को हर महीने केरोसिन तेल के दाम बढ़ाने की अनुमति दे दी है। केरोसिन के दाम में हर महीने मामूली बढ़ोतरी से राजस्व घाटा करीब 2.25 रुपये प्रति लीटर कम किया जाना है, जो एक परीक्षण मात्र नजर आ रहा है। शुरुआत में इसे 9 किस्तों में किया जाएगा, जिसमें इस माह की शुरुआत में कीमतों में की गई बढ़ोतरी भी शामिल है। अगर यह प्रयोग सफल रहता है और इसे अगले वित्त वर्ष में भी जारी रखा जाता है तो इससे तेल क्षेत्र का भाग्य बदल सकता है। इसके बाद सब्सिडी के दायरे में सिर्फ रसोई गैस (एलपीजी) रह जाएगी। दिलचस्प है कि यह बढ़ोतरी मोटे तौर पर मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लगातार दो साल की गई बढ़ोतरी के बराबर ही होगी। मनमोहन सरकार ने केरोसिन के दाम में 2011 में 2.51 रुपये और 2010 में 2.23 रुपये प्रति लीटर बढ़ोतरी की थी।
इसके अलावा केरोसिन में प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण (डीबीटी) की शुरुआत इसकी मूल निर्धारित तिथि के 4 महीने बाद 1 अगस्त 2016 से भाजपा शासित राज्यों गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के करीब 6 जिलों में की जाने वाली है। इसके बाद दूसरे दौर में कुछ और जिलों को शामिल किया जाएगा, जो एक महीने बाद 1 सितंबर 2016 से शुरू होगा।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि मासिक बढ़ोतरी से हानि पूरी तरह से खत्म नहीं होगा, लेकिन अगर यह जारी रहा तो इससे भविष्य मे करीब 2 रुपये प्रति लीटर सब्सिडी का बोझ कम होगा। इस समय राजस्व हानि 13.12 रुपये प्रति लीटर है, इसका मतलब है कि सरकार और उसकी कंपनियों को अगले साल से 17 प्रतिशत का फायदा होगा। यह फैसला ऐसे समय में आया है, जबकि सरकार अभी भी डीबीटी पेश करने में सफल नहीं हुई है।
अगर जुलाई में हुई 25 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी को शामिल कर लें तो चालू वित्त वर्ष में 2.25 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी होगी। कम दाम पर केरोसिन बेचने से इस उद्योग को राजस्व हानि होती है। केरोसिन के मामले में कड़े कदम की उम्मीद की जा रही थी, बहरहाल यह डीजल के दाम में मासिक बढ़ोतरी की तरह नहीं है और यह नियंत्रण के अधीन है। एक अधिकारी ने कहा, 'अगर इसका राजनीतिक विरोध होता है तो हो सकता है कि मासिक बढ़ोतरी अप्रैल 2017 के बाद जारी न रहे।'
कुल मिलाकर केरोसिन तेल की बिक्री से घाटा पिछले एक दशक में सबसे कम रहा है, लेकिन इसकी प्रमुख वजह कच्चे तेल के वैश्विक दाम में कमी और केरोसिन का कोटा घटाने की सरकार की नीति है, क्योंकि खाना बनाने के लिए वैकल्पिक ईंधन रसोई गैस का प्रसार बढ़ा है, साथ ही ग्रामीण विद्युतीकरण भी हुआ है। केरोसिन से घाटा पिछले साल 11,496 करोड़ रुपये रहा, जो 2013-14 में 30,574 करोड़ रुपये था।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा केरोसिन तेल के दाम में बढ़ोतरी के 5 साल बाद केंद्र सरकार ने जुलाई की शुरुआत में कीमतों में 25 पैसे की मामूली बढ़ोतरी की है। खाना बनाने वाले इस ईंधन की बिक्री सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से की जाती है। केरोसिन से राजस्व हानि इस महीने बढ़कर 13.12 रुपये प्रति लीटर हो गई है, जो जून में 11.73 रुपये प्रति लीटर थी।