रूस की कंपनी रोसनेफ्ट को एस्सार ऑयल में 49 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की घोषणा के बाद रुइया ने अब कंपनी में अल्पांश हिस्सेदारी रखने का निर्णय किया है। माना जा रहा है कि रुइया परिवार ने कंपनी ने अतिरिक्त 25 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए तेल कारोबारी या रणनीतिक निवेशक के साथ बातचीत कर रहा है। मामले के जानकार सूत्र ने बताया कि दोनों सौदे के अगले दो माह में पूरा होने की उम्मीद है।
एस्सार ऑयल के नए मालिक कंपनी के बोर्ड में अपने सदस्यों को नामित करेंगे, जिसमें अभी रुइया परिवार से केवल एक निदेशक प्रशांत रुइया हैं। कंपनी ने पिछले साल दिसंबर में इसे शेयर बाजार से गैर-सूचीबद्घ कराया था। कंपनी के एक वरिष्ठï अधिकारी ने पहले संकेत दिया था कि समूह को एस्सार ऑयल में 49 फीसदी हिस्सा रोसनेफ्ट को बेचने से 2.8 अरब डॉलर (करीब 18,900 करोड़ रुपये) नकद मिल सकते हैं। 2 करोड़ टन सालाना तेल शोधन क्षमता वाली रिफाइनरी के अलावा, इस सौदे में वाडीनार पावर कंपनी, दो बंदरगाहों और 2,200 पेट्रोल पंप भी शामिल हो सकते हैं, जो कंपनी के रिफाइनरी परिचालन के लिए अहम हैं।
यह सौदा एस्सार समूह के कर्ज को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि समूह पर कुल 88,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। नए प्रवर्तक एस्सार ऑयल, वाडीनार पावर और बंदरगाह कंपनियों के कर्ज का भार ले सकते हैं और शेयरों की बिक्री से मिलने वाली रकम को रुइया बैंक का कर्ज चुकाने में इस्तेमाल कर सकते हैं।
कंपनी के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा, 'रोसनेफ्ट द्वारा एस्सार ऑयल में 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीद का सौदा अभी शुरुआती स्तर में है। दोनों कंपनियों के बीच जब निश्चित करार हो जाएगा तब इसके बारे में घोषणा की जाएगी। सौदे से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल मुख्य रूप से कर्ज कम करने में किया जाएगा। हालांकि आगे और हिस्सेदारी की बिक्री की बात महज अटकलें हैं और कंपनी बाजार की अटकलों पर कोई टिप्पणी नहीं करती।'
अगर रुइया एस्सार ऑयल में नियंत्रण योग्य हिस्सेदारी बेचते हैं तो 90 के दशक में मध्य में समूह ने जिस कारोबार में प्रवेश किया था, उसका अध्याय खत्म हो सकता है। रोसनेफ्ट, वाडिनार रिफाइनरी का इस्तेमाल रूस में उत्पादित कच्चे तेल के शोधन में कर सकती है और फिर उसे भारतीय उपभोक्ताओं को बेच सकती है। एस्सार समूह पर कर्ज कम करने के लिए बैंकों की ओर से खासा दबाव है। इस साल मार्च तक समूह पर 88,000 करोड़ रुपये का कर्ज था। समूह अपनी स्टील कंपनी में भी 30 फीसदी हिस्सा बेचने की योजना बनाई थी लेकिन कोई खरीदार नहीं मिलने की वजह से योजना टाल दी। पिछले कुछ वर्षों के दौरान समूह ने अमेरिकी बीपीओ इकाई (करीब 4,119 करोड़ रुपये), वोडाफोन इंडिया में अपनी हिस्सेदारी (33,000 करोड़ रुपये) और रियल एस्टेट और बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में एक कार्यालय को 2,700 करोड़ रुपये में बेचा है।