एक बार फिर बिकवाल हो सकते हैं एफआईआई | हंसिनी कार्तिक / May 18, 2016 | | | | |
वैश्विक स्तर पर विपरीत घटनाक्रम का जोखिम बना हुआ है और आय में वृद्धि सुधरकर अभी दो अंकों में शायद ही पहुंचेगी। ऐंबिट कैपिटल के सीईओ (इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज) सौरभ मुखर्जी ने हंसिनी कार्तिक को दिए साक्षात्कार में कहा कि अच्छे इरादे वाली सरकार से इक्विटी बाजार में तेजी का माहौल तैयार करने की उम्मीद करना सरल है। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश..
बाजार करीब-करीब उसी स्तर पर आ गया है जब मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था?
मार्च 2015 में भारतीय इक्विटी को लेकर हम निराशावादी हो गए थे जब सेंसेक्स ने 30,000 का स्तर छुआ था और हमारा नजरिया अभी भी वैसा ही है क्योंकि मैं इसे मोदी-राजन तकनीक का दोबारा कायम होना और बाहरी कारक मानता हूं। जब भी भारत में प्रमुख नीतिगत सुधार हुए तो भारतीय शेयर बाजार में काफी तेजी आई। यह जुलाई 1991 के सुधार के बाद छह साल तक हुआ जहां सेंसेक्स की 30 में से 20 कंपनियां इससे बाहर हो गईं। मार्च 2015 में हमने सेंसेक्स दोबारा इस तरह के समायोजन की ओर बढ़ा। भारत में कालेधन को रोकने और एफडीआई के स्वागत की कोशिश हुई। साथ ही आरबीआई ने बैंकिंग व्यवस्था के अवरोध और क्रोनी कैपटलिस्ट की तरफ से पूंजी प्रवाह में कमी पर नजर रख रहा है। इन बदलावों को समाहित करने में बाजार व अर्थव्यवस्था को दो से तीन साल लगेंगे।
क्या अगस्त के बाद से बाहरी माहौल सुधरा है?
दो हफ्ते पहले की बैंक ऑफ जापान की बातों पर नजर डालें तो और नकारात्मक आंकड़े सामने आ सकते हैं। 2 जून की ईसीबी नीति और इसके बाद फेडरल रिजर्व की नीति इसी तरह की हो सकती है। पिछले छह महीने में नकारात्मक ब्याज दर की ओर बढऩे वाले किसी भी विकसित देश ने आर्थिक सुधार दर्ज नहीं किया है। नकारात्मक ब्याज दर बैंंकिंग व्यवस्था के लिए धीमी मौत है। केंद्रीय बैंकर कह रहे हैं कि आसान मौद्रिक नीति से कोई फायदा नहीं मिल रहा है। उभरती दुनिया में न तो अर्थशास्त्रियों की राजकोषीय नीति और न ही आसान मौद्रिक नीति चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट को थामने में सक्षम हुई। चीन का सेंट्रल बैंक अपनी मुद्रा को अगले कुछ सालों में 20 फीसदी तक गिरने दे सकता है। अगर चीन की मुद्रा में और गिरावट आती है तो भारत व अन्य उभरते बाजारों में भी मुद्राएं टूटेंगी। हमने 17 महीने तक निर्यात में गिरावट देखी है और अमेरिकी डॉलर के लिए 66 रुपये भारत के लिए अनुपयुक्त नजर आ रही है। पश्चिम या जापान में अगर प्रमुख बैंक फिसलता है या केंद्रीय बैंक मौद्रिक सहजता त्यागता है या चीन की मुद्राएं टूटती हैं तो दुनिया भर के शेयरों में भी गिरावट आएगी।
एफआईआई साल 2015 में बिकवाल रहे। 2016 में अंतरिम अवधि के दौरान खरीदार रहने के बाद वे एक बार फिर बिकवाल हो गए हैं। आगे आपको यह ट्रेंड कैसा दिख रहा है?
एफआईआई एक बार फिर बिकवाल हो सकते हैं क्योंंकि कई ऐसी नकारात्मक चीजें हैं जो वैश्विक इक्विटी बाजार को परेशान कर रहे हैं। पश्चिमी केंद्रीय बैंकों और बैंक ऑफ जापान ने वैश्विक व्यवस्था में लीमन संकट के बाद 5 लाख करोड़ डॉलर झोंके हैं और भारत ने इसमें से कुछ हासिल किया है। चूंकि मात्रात्मक सहजता समाप्त हो रही है और अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरें बढ़ा रहा है, लिहाजा जोखिम वाले संपत्ति वर्ग नीचे की ओर जा रहा है। उदाहरण के लिए यूरोप में संपत्ति की कीमत संशोधित हो रही है। जिंस की कीमतें पिछले चार साल से घट रही है। पिछले साल हमने सेंसेक्स का 30,000 का उच्चस्तर देखा था और ऐसा दोबारा भी हो सकता है। लेकिन फंडामेंटल के लिहाज से इक्विटी का परिदृश्य चुनौतीपूर्ण नजर आ रहा है।
आय की स्थिति अभी तक निराशाजनक रही है। इसकी प्रवृत्ति पर आपकी क्या राय है?
आमसहमति में जिस तरह की गलतियां पिछले दो साल से हो रही है, वही वित्त वर्ष 2017 में भी दोहराई जा रही है। वित्त वर्ष की शुरुआत में आय का अनुमान उच्चस्तर पर था और दीवाली में घटा और वित्त वर्ष के आकिर में 3-4 फीसदी पर टिका। यह चक्र दोबारा नजर आ रहा है। बैंकों में हमें कम से कम चार तिमाहियों तक प्रावधान के स्तर में इजाफा नजर आ रहा है। प्रावधान का मौजूदा स्तर पर्याप्त नजर नहीं आ रहा है। दबाव वाली संपत्ति अनुपात के हिसाब से प्रावधान 30 फीसदी तक जा सकता है। फिलहाल चुनौती है इन बैंकों को पुनर्पूंजीकृत करने की।
|