गृहमंत्री पालानीअप्पन चिदंबरम ने वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के आचरण पर एक बहुत ही दिलचस्प बयान दिया है।
एक समाचार पत्र में छद्म नाम से प्रकाशित भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के एक अधिकारी के लेख की संसद में चर्चा करते हुए चिदंबरम ने कहा, ''या तो लेखक गैर-वफादार अधिकारी है या कायर। या इनमें से दोनों ही है।''
इस लेख में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आचरण की आलोचना की गई थी और समाचार पत्र ने लेखक की पहचान एक आईएएस अधिकारी के रूप में दी थी और साथ में लिखा था कि लेख में दिए गए विचार, लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।
क्या चिदंबरम ने अपने बयान में आईएएस अधिकारी के तरीके को जायज ठहराया। अगर कोई आल इंडिया सर्विसेज (कन्डक्ट) रूल्स, 1968 पर नजर डाले तो सभी सवालों का जवाब मिल जाएगा।
इनमें यह स्पष्ट किया गया है कि एक आईएएस अधिकारी अपने सेवाकाल के दौरान क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता है। इस नियमावली में तीन धाराएं ऐसी हैं, जिनका सीधा संबंध इस घटना से है। इनमें से धारा 6 अधिकारी के प्रेस, रेडियो से संबंध से जुड़ी है, धारा 7 सरकार की आलोचना से संबंधित है और धारा 9 सूचनाओं के अनधिकृत संप्रेषण से संबंधित है।
धारा 6 बिल्कुल स्पष्ट है और जैसा कि बहुत से विशेषज्ञ तर्क देते हैं कि यह बहुत ही उदार है। इसमें अधिकारी को पुस्तक प्रकाशित कराने, मीडिया में लेख लिखने और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में होने वाली बहस में हिस्सा लेने की अनुमति दी गई है, अगर सरकार ने पहले से उस पर प्रतिबंध नहीं लगा रखा है।
इस नियम में दो महत्त्वपूर्ण शरतै भी लगाई गई हैं। पहली शर्त यह है कि मीडिया में इस तरह की कोई भी गतिविधि या हिस्सेदारी इस शर्त पर होगी कि उससे अधिकारी की सेवाएं प्रभावित न हों और वह निश्चित रूप से यह स्पष्ट करे कि उसने जो भी विचार दिए हैं वे उसके व्यक्तिगत विचार हैं न कि सरकार के।
धारा 7 में कोई भी संभावना नहीं छोड़ी गई है और करीब-करीब स्पष्ट रूप से इसमें सरकारी अधिकारी को अपनी जुबान बंद रखने का आदेश दिया गया है।
इसमें कहा गया है, ''सेवाएं दे रहा कोई भी अधिकारी किसी भी रेडियो प्रसारण या आम लोगों को पहुंचाने वाले किसी भी संचार माध्यम या व्यक्तिगत रूप से प्रकाशित कराए गए किसी भी दस्तावेज में छद्म नाम से या खुद अपने नाम या किसी और के नाम से या जनता द्वारा प्रयोग किए जाने वाले किसी भी समाचार माध्यम से कोई भी ऐसी राय या बयान जारी नहीं करेगा,
जिसमें- (1) केंद्र सरकार या राज्य सरकार की किसी भी चालू या हाल की नीति की आलोचना की गई हो या जिससे (2) केंद्र और राज्य सरकारों के बीच रिश्तों पर बुरा प्रभाव पड़े या जिससे (3) केंद्र सरकार और दूसरे देशों के रिश्तों पर कोई असर पड़े।''
इस नियम में दो विशेष छूट भी दी गई है। सरकारी अधिकारी के उस बयान या विचार पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होगा, जो उसने सरकार द्वारा सौंपे गए खुद के किसी काम या उसके खुद के प्रदर्शन पर जारी किया हो।
लेकिन उन्हें मुख्य नियम में लगे इस प्रतिबंध पर कोई छूट नहीं दी गई है, जिसमें सभी अधिकारियों (जिसमें आईएएस कैडर के अधिकारी भी शामिल हैं) को इस बात के लिए प्रतिबंधित किया गया है कि वे अपने किसी लेख या विचार व्यक्त करके सरकार या उसकी नीतियों की आलोचना नहीं कर सकते हैं।
तीसरा नियम धारा 9 से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि सामान्य रूप से एक सरकारी अधिकारी को जब तक अनुमति न दी जाए, वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई भी सरकारी दस्तावेज या सूचना किसी भी सरकारी अधिकारी या किसी भी व्यक्ति को नहीं दे सकता है। लेकिन इस नियम में भी एक महत्त्वपूर्ण अपवाद है।
कोई भी सरकारी दस्तावेज या सूचना, उस संबंधित अधिकारी की सेवाओं से संबंधित है और अगर सरकार की सामान्य सा विशिष्ट सेवाओं के बेहतर प्रदर्शन से संबंधित है तो सार्वजनिक किया जा सकता है।
यही एक ऐसा नियम है, जहां वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को ढील मिली हुई है कि वे संचार माध्यमों से जुड़े लोगों से किसी सूचना या दस्तावेज के बारे में बात कर सकते हैं। लेकिन आचरण संबंधी नियमों में ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं है,
जिससे एक सेवारत अधिकारी को इस तरह का लेख लिखने की छूट हो, जिसमें सरकार के रोजमर्रा के कामों या नीतियों की आलोचना की गई है। न तो उसके खुद के नाम से और न ही उसके छद्म नाम से। यहां तक कि आईएएस अधिकारी द्वारा दी जाने वाली व्यक्तिगत राय के बारे में भी स्पष्ट प्रावधान है।
आईएएस अधिकारियों के सामने इन नियमों को न मानने का भी विकल्प है। लेकिन अगर वे सरकार की सेवाएं करने के लिए सहमत हो गए हैं और फौलादी ढांचे में शामिल हो गए हैं, तो इन अधिकारियों के पास सीमित विकल्प होते हैं।
वे इन नियमों पर फिर से विचार करने के लिए वैधानिक रूप से मांग कर सकते हैं कि इसमें ढील दी जानी चाहिए, लेकिन जब तक कोई नया नियम लागू नहीं हो जाता, तब तक किसी भी अराजकता को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता।
अगर कोई अपने विचार व्यक्त कर नियमों की अवहेलना करता है तो यह अनुशासनहीनता का काम होगा। निश्चित रूप से चिदंबरम का बयान सही है।
जिस आईएएस अधिकारी ने अपने लेख में सरकार की आलोचना की है, वह सरकार के प्रति निश्चित रूप से गैर-वफादार है अन्यथा उसे नियमों का पालन करना चाहिए था।
वह कायर भी है, क्योंकि लेख में उसने छद्म नाम का प्रयोग किया। इससे भी बुरा यह है कि वह अधिकारी सीधासादा या कहें कि अभद्र था।