माइक्रोमैक्स का जोर स्मार्ट उपकरणों की ओर | |
अर्णव दत्ता / 05 05, 2016 | | | | |
भारत की सबसे बड़ी मोबाइल हैंडसेट कंपनी, माइक्रोमैक्स ने वर्ष 2009 और 2013 के दौरान ऐसे हैंडसेट की पेशकश की जो किफायती होने के साथ-साथ नए जमाने के अनुरूप भी है। मजबूत वितरण नेटवर्क के साथ-साथ व्यापक विज्ञापन अभियान की वजह से गुडग़ांव मुख्यालय वाली कंपनी देश के उन ग्राहकों को लुभाने में कामयाब रही जो कोई चीज खरीदने के लिए बेहद सोच-समझ कर पैसा खर्च करते हैं। कंपनी ने अपने विज्ञापन अभियान में हॉलीवुड अभिनेता ह्यू जैकमैन को पेश किया। इसके बाद ऐसा वक्त आया जब यह सैमसंग को गंभीर रूप से चुनौती देने लगी जो स्मार्टफोन के बाजार में सबसे आगे थी।
इसके बाद वर्ष 2014 में कई बदलाव शुरू हुए जब चीन की कई हैंडसेट निर्माता कंपनियां मसलन श्याओमी, जियोनी, वन प्लस, ऑप्पो, हुआवेई और कई दूसरी कंपनियों ने भारतीय बाजार में दस्तक दी। उन्होंने काफी कम दर पर बेहतर स्मार्टफोन देने की पेशकश की जिसे खरीदारों ने हाथों-हाथ लिया। कई कंपनियों की ऑनलाइन बिक्री तो चंद मिनटों में ही खत्म हो गई। माइक्रोमैक्स ने चार सालों तक जिस रणनीति पर काम किया वह सब बेकार हो गया। दिसंबर 2015 में तेजी से बढ़ते स्मार्टफोन बाजार में इसकी हिस्सेदारी कम होकर 4 फीसदी हो गई। मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब इसके दो प्रमुख प्रबंधन पेशेवरों ने कंपनी छोड़ दी। इसके चार सह-संस्थापकों के बीच गैर-सूचीबद्ध इकाई के मूल्यांकन को लेकर मतभेद की स्थिति बनी जो विवाद की प्रमुख वजह थी। जापान के अलीबाबा को एक अरब डॉलर में हिस्सेदारी बिक्री की अफवाह एक साल से चल रही है लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ।
विश्लेषकों का कहना है कि माइक्रोमैक्स के सह-संस्थापक राहुल शर्मा नए प्रयोग करने के लिहाज से पिछड़ गए जिसकी वजह से बिक्री पर असर पडऩे लगा। अगर कंपनी को चीन की स्मार्टफोन कंपनियों द्वारा पेश की गई सूनामी में अपने अस्तित्व को बचाए रखना था तो उसके लिए अपनी रणनीति और पोर्टफोलियो में सुधार बेहद जरूरी था।
इस लिहाज से कंपनी अब खुद को बाजार में नए तरीके से पेश करने की कोशिश कर रही है। अब यह होम अप्लायंसेज और इलेक्ट्रॉनिक्स श्रेणी में भी उतरना चाहती है। यह पहले से ही एलईडी टेलीविजन और पर्सनल कंप्यूटर उतार चुकी है। हालांकि कई लोग यह भी कह सकते हैं कि ऐसे कदम से कंपनी एक चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएगी। लेकिन कंपनी के चार सह-संस्थापकों में से एक राहुल शर्मा माइक्रोमैक्स को एक वैश्विक ब्रांड के तौर पर पेश करना चाहते हैं जो उपकरणों की पेशकश करने के साथ-साथ संबंधित सेवाओं की पेशकश भी करे ताकि बाजार की 'इंटरनेट ऑफ थिंग्स' की व्यापक संभावनाओं की तलाश की जाए।
'इंटरनेट ऑफ थिंग्स' डिजिटल कनेक्शन वाले माहौल को दर्शाता है जहां उपकरण एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं। इस तरह मोबाइल हैंडसेट सभी घरों के लिए ऐसा उपकरण बन सकता है जो फ्रिज के साथ-साथ एयर कंडीशनर तक चलाने की क्षमता रखता हो। शर्मा चाहते हैं कि माइक्रोमैक्स इस क्षेत्र में संभावनाएं तलाश करे। उनका मकसद दुनिया की पांच प्रमुख हैंडसेट कंपनियों में से एक बनना और वर्ष 2018 तक उपभोक्ताओं के बीच करीब 10 करोड़ कनेक्टेड उपकरणों को जोडऩा है। शर्मा कहते हैं, 'इसके अलावा उन्हें ऐसी विभिन्न सेवाएं मसलन किसी ऑपरेटिंग सिस्टम पर बिना किसी बाधा के यूटिलिटी पेमेंट और बाधारहित कनेक्शन की पेशकश करना भी शामिल है।'
हाल ही में माइक्रोमैक्स ने एक साथ 20 स्मार्ट उपकरण पेश किए, जिनमें 15 स्मार्टफोन, दो एलईडी टीवी, दो टैबलेट और एक स्मार्ट घड़ी थी। कंपनी ने अपने ब्रांड के लिए नई कॉरपोरेट रणनीति पेश करने की घोषणा भी की जिसे माइक्रोमैक्स 3.0 कहा जाता है और इसने अपना नया डिजाइन किया हुआ लोगो भी जारी किया है। माइक्रोमैक्स ने बाजार में अपनी जगह बनाने के लिए सारे बदलाव किए हैं और हाल ही में कंपनी ने एक नया टैगलाइन भी पेश किया है, 'नट, गट्स ऐंड ग्लोरी'।
माइक्रोमैक्स द्वारा उठाए गए इन नए कदमों से अंदाजा मिलता है कि माइक्रोमैक्स ने अपने नजरिये में भी बदलाव किया है जिसका मतलब शर्मा के अनुसार यह है कि बाधाओं और डर का सामना करें। उनका मानना है कि इस बदलाव से वृद्धि के अगले चरण की राह सुनिश्चित होगी। विश्लेषक भी बेहद आशान्वित दिख रहे हैं। काउंटरपॉइंट रिसर्च के वरिष्ठ विश्लेषक तरुण पाठक कहते हैं, 'अपनी पोजिशनिंग में बदलाव करना एक बेहतर कदम है। माइक्रोमैक्स को अब बाजार की व्यापक छवि से बाहर जाने की जरूरत है।'
पाठक का मानना है कि माइक्रोमैक्स अगर कड़ी प्रतिस्पद्र्धा में अपनी जगह बनाए रखना चाहता है तो इसे पूर्ण बदलाव की रणनीति पर काम करना होगा। वह कहते हैं, 'अब इसे 10,000 रुपये से 20,000 रुपये की श्रेणी में ध्यान देना होगा।' शर्मा चाहते हैं कि माइक्रोमैक्स महज हैंडसेट निर्माता बने रहने के बजाए एक सेवा प्रदाता कंपनी भी बने। साफतौर पर हैंडसेट एक संचार उपकरण से काफी बड़ी चीज होती है और लोग इसका इस्तेमाल लेन-देन के साथ-साथ सूचनाएं पाने और डाटा स्टोर करने के लिए करते हैं।
शर्मा अब ऐसे ऐप्लिकेशन की बात भी करते हैं जिसकी मदद से स्मार्टफोन यूजरों के अनुभव में सुधार होता है। वह कहते हैं, 'ई-कॉमर्स क्षेत्र में नए बदलाव देखे जा रहे हैं। लोग खूब ऑनलाइन खरीदारी कर रहे हैं और छूट में कमी आ रही है जो आज की हकीकत है।' माइक्रोमैक्स ने इसी वजह से अपना ऑनलाइन बिक्री पोर्टल शुरू किया है जो इस साल दीवाली से ही ज्यादा उत्पादों की पेशकश करेगी। फिलहाल ऑनलाइन के जरिये यह 25 फीसदी से ज्यादा बिक्री करती है।
माइक्रोमैक्स के दूसरे सह संस्थापक विकास जैन कहते हैं, 'हम लोगों की जीवनशैली के डिजिटलीकरण पर जोर दे रहे हैं। सभी तरह की यूटिलिटी सेवाओं मसलन भुगतान, हेल्थकेयर और मनोरंजन के लिए ऐप आधारित सेवाओं की पेशकश करना ही भविष्य के कदम होंगे। हमने लिक्जिगो (ट्रैवल पोर्टल) और हेल्दीफाईमी (हेल्थ ऐप) जैसी कंपनियों में निवेश किया है और आगे भी ऐसे रणनीतिक निवेश करते रहेंगे।' कंपनी ने कम से कम 10 ऐसी ऑनलाइन सेवा प्रदाता कंपनियों के साथ गठजोड़ किया है और आपूर्ति चेन को बढ़ावा दे रही है।
कंपनी के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी के न होने के बावजूद चार सह संस्थापक , राजेश अग्रवाल, सुमीत कुमार, जैन और शर्मा फिलहाल कंपनी का नेतृत्व कर रहे हैं। इन चारों ने हर साल माइक्रोमैक्स की बिक्री में 25 फीसदी की वृद्धि का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा अगले पांच सालों में इसकी बिक्री में विदेशी बाजारों के योगदान को 10 फीसदी से बढ़ाकर फिलहाल 30 फीसदी के स्तर पर रखा गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए माइक्रोमैक्स विदेशी बाजार मसलन रूस, आर्मेनिया और यूक्रेन आदि में अपने पांव जमाना चाहती है। देश के शीर्ष पांच ब्रांडों में से एक माइक्रोमैक्स देश में पहले पायदान पर और दुनिया के शीर्ष पांच ब्रांडों में शामिल होना चाहती है।
हालांकि एक ही समय में सारे बदलाव आसान नहीं हैं। शर्मा कहते हैं, 'यह लक्ष्य आसान नहीं है।' अगले दो सालों में जब मध्य प्रदेश और राजस्थान में दो अन्य विनिर्माण इकाइयां चलने लगेंगी तब माइक्रोमैक्स एक साल में 6 करोड़ हैंडसेट बना पाएगी जो फिलहाल 2.4 करोड़ हैंडसेट तैयार करती है।
|