केंद्रीय बिजली नियामक आयोग 'हाईवोल्टेज' में ! ► 2012-13 से अब तक 70 से ज्यादा मामलों की सुनवाई कर रहा केंद्रीय बिजली नियामक आयोग ► अधिकारियों के मुताबिक गत 4 माह में निपटाए गए 300 मामले, ज्यादा मामले पारेषण शुल्क के ► सरकार की पारेषण कंपनी पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ने दायर किए हैं करीब 90 प्रतिशत मामले केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (सीईआरसी) 2012-13 से अब तक के 700 से ज्यादा मामलों की सुनवाई कर रहा है, जिन पर अक्बूर 2016 तक सुनवाई पूरी हो सकती है। सीईआरसी के अधिकारियों ने कहा कि पिछले चार महीने में करीब 300 मामले निपटाए गए हैं। 734 लंबित मामलों में से करीब 600 मामले पारेषण शुल्क निर्धारण या समायोजन से संबंधित हैं। इसमें से करीब 90 प्रतिशत मामले सरकार की पारेषण कंपनी पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ने दायर किए हैं। एक वरिष्ठ सीईआरसी अधिकारी ने कहा, 'हमने पीजीसीआईएल के शुल्क और ट्रूइंग अप से जुड़े सभी मामले एक साथ कर दिए हैं और उन्हें एक साथ निपटा दिया जाएगा। इससे हमें अन्य बड़े मामलों की सुनवाई में तेजी लाने में भी मदद मिलेगी।' उन्होंने कहा कि आगामी अक्टूबर तक सभी लंबित मामलों को निपटाने का लक्ष्य है। सीईआरसी के कुल कर्मचारियों की संख्या 80 है। इसके अलावा एबीपीएस लीगत और मर्कडोस एनर्जी मार्केट इंडिया को संविदा के आधार पर लिया गया है, जो राज्योंं द्वारा दायर किए गए मामलों का अध्ययन करेंगी।सीईआरसी के अधिकारी ने कहा, 'हितों के टकराव की वजह से इन एजेंसियों को निजी क्षेत्र का कोई मामला नहींं सौंपा गया है। वे केवल राज्योंं की ओर से दायर मामलों का अध्ययन करेंगी और हमें तेजी से फैसले करने में मदद करेंगी।'आयोग में काम लंबित होने को लेकर कुछ शिकायतें पहले मिली थीं। बिजली क्षेत्र में अन्य औद्योगिक क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा याचिकाएं होती हैं, क्योंकि इसमें कुछ हिस्सेदार व नियम शामिल होते हैं। वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सभी नियामक निकाय जैसे प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) स्वतंत्र हैं, हालांकि वे पेशेवरों, वेतनभोगियों को बाहर से लेते हैं। आयोग के एक पूर्व सदस्य ने कहा, 'बिजली क्षेत्र को भी यही तरीका अपनाने की जरूरत है। यह क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ रहा है और हमारे सामने कई तरह के मामले आ रहे हैं। एक गतिशील नियामक, जिसका लचीला रुख हो, इस समय की मांग है।'
