तकरीबन 15 साल की देरी के बाद केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने आखिरकार देश के आयकरदाताओं से जुड़े आंकड़े पेश कर दिए हैं। कुछ समेकित आंकड़े केवल वर्ष 2000-01 और 2014-15 की समयबद्ध शृंखला में पेश किए गए हैं लेकिन इसके अलावा आकलन वर्ष 2012-13 के करदाताओं यानी वर्ष 2011-12 में हुई आय के बारे में तात्कालिक जानकारी भी दी गई है। तमाम शिक्षाविद और शोधकर्ता सरकार पर ये आंकड़े पेश करने का दबाव डाल रहे थे। इनमें फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी भी शामिल हैं जो वर्ष 2013 में कैपिटल इन द ट्वेंटी फस्र्ट सेंचुरी जैसी लोकप्रिय किताब लिख चुके हैं। सरकार को भी इस बात के लिए बधाई दी जानी चाहिए कि वह वादे पर खरी उतरी। सरकार को अन्य सालों के करदाताओं का ब्योरा जारी करके भी अपना वादा पूरा करना चाहिए। ऐसा करने से भविष्य के शोध और इस तरह बेहतर कर नीति बनाने में मदद मिलेगी।
आंकड़ों से क्या सामने आएगा इससे जुड़े कुछ तथ्य सामने आ भी गए हैं। पिकेटी अक्सर असमानता का अध्ययन कर आंकड़ों से करते हैं और वर्ष 2015-16 की आर्थिक समीक्षा इस दिशा में मददगार रही है। उसमें यह बताया गया है कि वर्ष 2000 के दशक में देश में असमानता बहुत तेजी से बढ़ी है। यह कमोबेश अमेरिका के तर्ज पर ही हुआ है। परंतु इसके अलावा भी बेचैन करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। शायद सबसे परेशान करने वाला तथ्य यह है कि वर्ष 2011-12 में केवल 18,358 लोगों ने ही एक करोड़ रुपये से अधिक आय होने की बात स्वीकार की। यह आंकड़ा बहुत कम है। जरा इस बात पर विचार कीजिए कि वर्ष 2013 में जगुआर, मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू और रॉल्स रॉयस जैसी आलीशान कारों के 33,000 से अधिक मॉडल बिके। अचल संपत्ति कारोबार का बाजार भी इस बात की पुष्टिï नहीं करता। क्रेडिट सुइस का कहना है कि देश की शीर्ष एक फीसदी आबादी 16 प्रतिशत परिसंपत्तियों पर काबिज है, ऐसे में उक्त तथ्य को कैसे माना जाए। एक और चिंता की बात यह है कि जिन 3.1 करोड़ लोगों ने रिटर्न भरा उनमें से 55 फीसदी ने कहा कि उनकी कोई आय नहीं है। केवल 20 लाख लोगों ने ही 5.5 लाख से 9.5 लाख रुपये के बीच की सालाना आय बताई। एक ऐसे देश में जहां हर साल 20 लाख कारें बिकती हैं, यह आंकड़ा बहुत कम है। कुल मिलाकर कर चोरी हो रही है या आय छिपाई जा रही है।
देश में कर आधार संकीर्ण बना हुआ है। कर वंचना की समस्या बरकरार है। कर दायरा बढ़ाने पर विचार-विमर्श जारी रहना चाहिए। हाल ही में रियायतों को खत्म करने का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसे गति देनी चाहिए। इस बीच कर आधार की संकीर्णता के बीच कर अधिकारियों को कुछ आत्मावलोकन करना चाहिए। संभावित करदाताओं को शामिल करने के लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा है। कर विभाग को संभावित करदाताओं का पता लगाने के लिए आधुनिक तरीके अपनाने चाहिए। सरकार को विभिन्न स्रोतों से मिलने वाले तथ्यों की जांच करते हुए उन्हें सुसंगत बनाना चाहिए। घोषित आय से अधिक खर्च करने वाले लोगों पर ध्यान देना चाहिए। इससे अंकेक्षण बेहतर हो सकेगा।
लेकिन लोगों को जोडऩा महत्त्वपूर्ण है। कई स्रोतों से आय अर्जित करने वालों के लिए सबसे साधारण आईटी फॉर्मूला भी सात पृष्ठों का है। इसे दो-तीन पृष्ठों में समेटना चाहिए। वास्तव में ऑनलाइन और कागज रहित फाइलिंग और कर भुगतान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अंत में सरकार की करमाफी को इन आंकड़ों के आलोक में देखा जाना चाहिए। क्या यह कर वंचकों को प्रोत्साहित करता है? क्या यह बुरे व्यवहार को बढ़ावा देता है और भविष्य के कर वंचकों को प्रेरित करता है कि वे भविष्य में कर माफी की अपेक्षा रखते हुए व्यवस्था को धता बताएं? इन प्रश्नों के उत्तर तत्काल तलाश करने होंगे।
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