पाटीदारों के गुट दो मगर मकसद एक | विनय उमरजी / April 29, 2016 | | | | |
गुजरात में पाटीदार (पटेल) समुदाय के जेल भरो आंदोलन ने 17 अप्रैल को हिंसात्मक रूप ले लिया था जिससे आरक्षण का मुद्दा फिर से गरमा गया। इस आंदोलन का चेहरा बन चुके पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पीएएएस) के संयोजक 22 वर्षीय हार्दिक पटेल सुर्खियों से गायब होने लगे थे लेकिन उक्त घटना ने सरदार पटेल ग्रुप (एसपीजी) से जुड़े 40 साल के लालजी पटेल को सुर्खियों में ला दिया।
इस तरह राज्य में पाटीदार समुदाय के दो गुट आंदोलन कर रहे हैं। इन दोनों गुटों की विचारधाराओं में उसी तरह का अंतर है जैसा कभी महात्मा गांधी और भगत सिंह की विचारधाराओं में माना जाता था। एक गुट जहां 'परिपक्व' है तो दूसरा 'आक्रामक'। एक की अगुआई एक अधेड़ उम्र का किसान कर रहा है तो दूसरे की पहचान एक ऐसे आक्रामक युवक की है जो अपने आग उगलने वाले भाषणों से हजारों लोगों की भीड़ जुटा सकता है।
दोनों संगठनों में शामिल कुछ लोग चाहते हैं कि उनमें आपसी मतभेद न हों क्योंकि इससे आंदोलन कमजोर होगा। वहीं ऐसे लोग भी हैं जो चाहते हैं कि यह मतभेद बना रहे। पाटीदारों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर शुरू हुआ यह आंदोलन दोनों गुटों के बीच झूल रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि यह मतभेद परंपरागत रूप से जमींदार रहे पाटीदारों के सामाजिक तानेबाने के बीच बहुत गहरा है। पाटीदार सामाजिक-आर्थिक आधार पर लेउवा, कडवा, अंजना और कच्छी जैसी श्रेणियों में बंटे हैं। वैचारिक मतभेद और काम करने के अलग-अलग तरीके इस आंदोलन को अलग-अलग दिशा में ले जा रहे हैं।
दोनों संगठनों ने इस आंदोलन को शुरू करने का श्रेय लेने की कोशिश की। हार्दिक पटेल का दावा है कि पीएएएस की स्थापना खासतौर पर पाटीदार समुदाय के लिए आरक्षण के वास्ते संघर्ष करने के मकसद से की गई। दूसरी ओर एसपीजी का दावा है कि उसकी स्थापना एक दशक पहले आरक्षण सहित पाटीदार समुदाय से जुड़े अन्य मुद्दों पर आवाज उठाने के लिए की गई थी। एसपीजी के एक नेता पुर्विन पटेल ने कहा, 'एसपीजी का गठन 2004 में मेहसाणा में सरदार पटेल सेवा दल के रूप में हुई थी ताकि बेरोजगारी, किसानों और बिन ब्याही लड़कियों की समस्याओं का समाधान निकाला जा सके। एक दशक के भीतर यह संगठन राज्य के दूसरे हिस्सों में भी फैल गया। पाटीदार समुदाय के युवाओं में बेरोजगारी की बढ़ती समस्या को देखते हुए वर्ष 2014 में एसपीजी ने आरक्षण के लिए प्रयास शुरू किए।'
एसपीजी का दावा है कि 2014 में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के लिए शुरुआती दिनों में उसने एक रैली आयोजित की थी लेकिन उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। जुलाई 2015 में मेहसाणा और उसके आसपास के इलाकों में 12 रैलियां आयोजित की गई और 23 जुलाई को विसनगर में आयोजित रैली ने हिंसक रूप ले लिया था। तब इस पर मीडिया और प्रशासन का ध्यान गया। तब तक हार्दिक पटेल और एसपीजी से जुड़े कुछ लोगों ने अलग होकर पीएएएस का गठन कर लिया था। इसके बाद आंदोलन ने जोर पकड़ा और 55 दिन में एसपीजी और पीएएएस ने 155 रैलियां की। अहमदाबाद में 25 अगस्त को हुई जबरदस्त रैली ने हार्दिक पटेल और पीएएएस को राष्टï्रीय स्तर पर सुर्खियों में ला दिया। रैली के आयोजन स्थल जीएमडीसी मैदान में हार्दिक को पुलिस हिरासत में लेने और रैली में आए लोगों पर पुलिस ज्यादती के कारण पूरे राज्य में हिंसा भड़क उठी थी। स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि कई शहरों में कफ्र्यू और मोबाइल सेवाओं पर रोक लगानी पड़ी।
जब आंदोलन चरम पर था तो हार्दिक पटेल के भड़काऊ भाषणों के कारण एसपीजी और पीएएएस में मतभेद उभरे। तब तक हार्दिक पटेल सुर्खियों में आ चुके थे और एसपीजी कहीं पीछे छूट गया था। हाल में मेहसाणा में हुए प्रदर्शन में पुलिस के साथ संघर्ष में घायल हुए लालजी पटेल और कुछ अन्य एक बार फिर सुर्खियों में आ गए। पुलिस का कहना है कि कुछ लोगों ने उस पर पथराव किया जिसके बाद उसे लाठीचार्ज के लिए मजबूर होना पड़ा। जल्दी ही मेहसाणा में कफ्र्यू लगा दिया गया और अहमदाबाद, मेहसाणा, सूरत और राजकोट में मोबाइल सेवाएं बंद कर दी गईं। विश्लेषकों का कहना है कि फिलहाल अस्पताल में भर्ती लालजी पटेल की संभावित गिरफ्तारी से उनका पलड़ा भारी हो सकता है।
कुछ लोग तो इस प्रदर्शन को एक अवसरवादी कदम के रूप में देख रहे हैं ताकि राजद्रोह के आरोप में जेल में बंद हाॢदक पटेल की गैरमौजूदगी में आंदोलन की कमान अपने हाथों में ली जा सके। समाज विज्ञानी अच्युत याज्ञनिक कहते हैं, 'मेहसाणा में लालजी पटेल ने खुद को पुनस्र्थापित करने की कोशिश की। हार्दिक पटेल जेल में हैं और सरकार कुछ नहीं कर रही है जिससे पाटीदार समुदाय की बैचेनी बढ़ रही है। ऐसे में एसपीजी को लगा होगा कि अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का यह सही मौका है।' क्या यह आने वाले दिनों में एसपीजी के लिए फायदेमंद होगा, यह देखने वाली बात होगी। लेकिन हाल की घटनाएं सरकार के लिए सतर्क होने की घंटी है। पाटीदार समुदाय परंपरागत रूप से भारतीय जनता पार्टी का मजबूत वोट बैंक रहा है।
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