'गुरुग्राम' में गुरु द्रोणाचार्य की तलाश | |
मानवी कपूर / 04 25, 2016 | | | | |

गुडग़ांव में गुरु द्रोणाचार्य से अधिक उनकी पत्नी कृपी के उपासक हैं। बता रही हैं मानवी कपूर
महाभारत से जुड़ी मेरी यादें उन दिनों की है जब मैं बी. आर. चोपड़ा का लोकप्रिय टेलीविजन धारावाहिक 'महाभारत' हर रविवार को देखा करती थी। कौरवों और पांडवों के बीच होने वाली कहा-सुनी के दौरान गुरु द्रोणाचार्य एक शिक्षक की भूमिका में होते थे जो पिता तुल्य छवि के साथ बेहद उदार दिखते थे और किसी का पक्ष लेना उनके लिए दुरूह तो था ही और वह हस्तिनापुर के शासन के प्रति निष्ठा रखने के लिए भी बाध्य थे। वह सभी दोषों से ऊपर थे और लेकिन एकलव्य के साथ उनके व्यवहार की वजह से उन पर सवाल खड़े हुए जो उनका वफादार शिष्य था और उसने उनके प्रति अपनी श्रद्धा को जाहिर करने के लिए अपना अंगूठा तक काटकर न्योछावर कर दिया था। द्रोणाचार्य ने कर्ण को उनके वंश की वजह से दीक्षा देने से इनकार कर दिया था। मूल महाभारत के करीब 5,000 सालों बाद द्रोणाचार्य के माने जाने वाले गांव गुडग़ांव, हरियाणा के निवासी इन गुरु द्रोणाचार्य से जुड़ी स्थानीय लोककथाओं मुश्किल से ही याद कर पा रहे हैं।
पुराने गुडग़ांव के एक निवासी कहते हैं, 'मेरे ख्याल से उनके नाम पर एक मेट्रो स्टेशन है।' वहीं कुछ लोगों का मानना है कि गुडग़ांव में 'गुड़' पहले की 'गुड़ मंडी' से जुड़ा है जबकि कुछ लोग इन गुरु के महत्त्व की बात करते हैं। लेकिन ऐसे बेहद कम लोग हैं जो गुडग़ांव के साथ द्रोणाचार्य के पौराणिक जुड़ाव को सम्मान देते हैं। गुडग़ांव में इन पौराणिक गुरु के नाम पर कुछ शैक्षणिक संस्थानों के नाम जरूर हैं और इसके अलावा पुराना गुडग़ांव के तिकोना पार्क में इन गुरु की एक प्रतिमा है।
गुडग़ांव में 25 सालों से रहने वाले और लॉ कंपनी जे सागर एसोसिएट्स के संस्थापक और अध्यक्ष ज्योति सागर को भी केवल इतना ही पता है कि द्रोणाचार्य के नाम पर एक मेट्रो स्टेशन है। वह कहते हैं, 'गुडग़ांव में ज्यादातर पार्क और स्टेडियम के नाम समकालीन राजनीतिक नेताओं के नाम पर रखे गए हैं।' बल्कि अतुल कटारिया नाम के एक लेफ्टिनेंट के नाम से कई चौक और सड़केंहैं जो शहीद हो गए थे। स्थानीय लोगों की स्मृतियों में भले ही द्रोणाचार्य न हों लेकिन द्रोणाचार्य की पत्नी 'कृपी' की उपासना इस क्षेत्र में की जाती है। यह बात हैरान करती है क्योंकि 'कृपी' का जिक्र'महाभारत' में बेहद कम और उनके भाई 'कृप' और उनके पति द्रोण के एक विस्तार के तौर पर होता है। उनका जिक्र विकीपीडिया पर भी हैं और दो किरदारों के विस्तृत संदर्भों में किया गया है।
गुडग़ांव में शीतला माता मंदिर की लंबी कतारों से गुजरने के बाद पता चलता है कि कृपी को यहां कई सालों से देवी शीतला माता की तरह पूजते आ रहे हैं। यह बात तो स्पष्ट है कि हिंदू धर्म और पौराणिक गाथाओं में उनकी जगह है। इस धार्मिक स्थल पर हर उम्र के पुरुष-महिलाएं दिखती हैं जो लाल रंग का दुपट्टा और मुरमुरा प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह देवी सभी कष्टों से छुटकारा दिलाती हैं। इस मंदिर के प्रमुख पुजारी अरुण शर्मा नारियल और मुरमुरे को अलग-अलग डिब्बे में रखते हुए मेरी इस बात पर हैरान होते हैं कि मैं द्रोणाचार्य के बारे में जानना चाहती हूं न कि शीतला माता के बारे में। वह कहते हैं, 'ऐसी मान्यता है कि कई सालों पहले इस गांव को राजा द्रुपद ने द्रोणाचार्य को उपहार में दे दिया था। उनका कहना है कि यह वही जगह है जहां कौरवों और पांडवों ने युद्ध के गुर सीखे।' महाकाव्य के मुताबिक द्रोणाचार्य और द्रुपद एक साथ बड़े हुए और द्रुपद ने द्रोणाचार्य को अपनी मित्रता की खातिर अपना आधा साम्राज्य देने का वादा किया। जब वक्त आया तब द्रोणाचार्य ने उस वादे की याद दिलाई लेकिन द्रुपद ने अपनी संपत्ति बांटने से मना कर दिया। शर्मा कहते हैं, 'ऐसा कहा जाता है कि एक पंचायत बुलाई गई जिसे इस विवाद पर फैसला करना था और आखिरकार द्रुपद ने द्रोणाचार्य को 18 गांव दिए। जिसे हम आज गुडग़ांव कहते हैं वह इन गांवों के समूह का एक केंद्रीय गांव था।'
शीतला माता मंदिर के भीतर कहीं भी द्रोणाचार्य की मूर्ति नहीं दिखती है। एक स्थानीय नागरिक श्याम सिंह ने मुझे बताया कि वह अपनी पत्नी के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने के लिए आए हैं। लेकिन जब मैं उनसे द्रोणाचार्य या कृपी के बारे में पूछती हूं तो वह हंसते हुए पूछते हैं, 'आप 'कौन बनेगा करोड़पति' से जुड़ी हैं? मैं सामान्य ज्ञान के सवालों का जवाब नहीं जानता।'
हालांकि शर्मा कहते हैं कि गुडग़ांव के ग्रामीण इलाके में द्रोणाचार्य से जुड़ेकोई अवशेष नहीं हैं और न ही उनका कोई वंशज है जिनके जरिये इस गुरु की जड़ों को तलाशा जाए। उनका कहना है कि सिर्फ कुछ जमीन बची है जहां कभी तालाब हुआ करता था जहां द्रोणाचार्य धनुर्विद्या सिखाने से पहले स्नान किया करते थे। उन्होंने बताया, 'यहां से नजदीक एक राजमहल का अवशेष है जिसके बारे में लोग कहते हैं कि यह द्रोणाचार्य से जुड़ा है।' इस मंदिर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर यह महल है लेकिन इस क्षेत्र में रहने वाले बेहद कम लोगों को यह पता है कि यह महल कहां है। मैंने यहां मौजूद दो युवाओं से पूछा कि महलवाड़ा जाने का रास्ता किधर है जहां इस महल के अवशेष होने की बात कही जाती है। उन्होंने अपने स्मार्टफोन पर बज रहे यो यो हनी सिंह के गाने की आवाज कम करते हुए कहा कि उन्हें इसके बारे में पता नहीं है।
साफ-सुथरी संकरी गलियों से गुजरते हुए मैं अपने गंतव्य तक पहुंच गई। इस महल की दीवारों पर बड़ी दरारें दिख रही थीं लेकिन यह इमारत 5,000 साल पुरानी तो बिल्कुल नहीं लग रही थी। अपनी सीमित वास्तुकला जानकारी के साथ मैं इतना कह सकती हूं कि यह इमारत ज्यादा पुरानी नहीं है। खासतौर पर दीवारों और गलियारे के नमूने को देखते हुए इसका साफ अंदाजा मिलता है। दो युवा मुझे महल घुमाने की पेशकश करते हुए कहते हैं कि रास्ते में कुछ चमगादड़ों से सामना हो सकता है। कई सालों में स्थानीय लोगों ने यह महल हथिया लिया है। फिलहाल यहां प्लास्टिक की बोतलों के एक आपूर्तिकर्ता का दबदबा है। इतिहास की जानकारी से बेखबर यहां मौजूद लोग मुझे थोड़ी हैरानी से भी देख रहे थे। 70 साल की लक्ष्मी कहती हैं कि इस जगह से द्रोणाचार्य के ताल्लुक को लेकर विवाद है। वह कहती हैं, 'यहां के स्थानीय शासक दादा सिंहा 200 साल पहले यहां रहा करते थे। इस जगह का द्रोणाचार्य से कोई संबंध नहीं है सिंहा को यहां सिर्फ कृपी की मूर्ति मिली थी।'
स्थानीय किंवदंतियों में भी कृपी ने अपने पति को पीछे छोड़ दिया था खासतौर पर अपने चमत्कार, उनसे जुड़े स्वप्न आदि की वजह से वह अपने अनुयायियों के लिए वह और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं। द्रोणाचार्य के नाम पर सिर्फ गांव का नाम भर ही है वह भी परोक्ष तरीके से बाकी उनकी मौजूदगी कहीं नहीं दिखती है।
शीतला माता मंदिर के पुजारी और महलवाड़ा के निवासी शर्मा कहते हैं कि द्रोणाचार्य का गुडग़ांव से संबंध होने का वास्तविक प्रमाण 'पिंकचोकदा झोड' हैं जहां एक तालाब हुआ करता था। इंटरनेट पर शीतला माता मंदिर का पता लगाने और उसके बारे में पढऩे में कोई मुश्किल नहीं होती है हालांकि महलवाड़ा और पिंकचोकदा झोड़ के बारे में डिजिटल दुनिया में कोई जानकारी नहीं है। शर्मा भी तालाब से मंदिर के किसी संबंध होने के बारे में भरोसे से कुछ नहीं कह पाते हैं। वह कहते हैं, 'आपको यहां कुछ भी नहीं मिलेगा। केवल यही एक मंदिर है जिसका द्रोणाचार्य से दूर का ही सही थोड़ा संबंध है जिसके बारे में लोग इतना ही जानता हे।' एक स्थानीय पान विक्रेता को ही इस बात की जानकारी है कि यह मंदिर कहां हो सकता है।
लेखक, फिल्म निर्माता और सक्रिय कार्यकर्ता सोहैल हाशमी का कहना है कि सवाल यह उठता है कि द्रोणाचार्य एक ऐतिहासिक या पौराणिक हस्ती थे या नहीं। लेकिन 'दि महाभारत' सीरीज के लेखक और अर्थशास्त्री विवेक देवरॉय के पास इस तर्क का जवाब है। वह कहते हैं, 'गुडग़ांव एक गांव था और इतिहास हमेशा शहरों के संदर्भ में ही लिखा जाता है। इसी वजह से महाभारत में गुडग़ांव का जिक्र न के बराबर है जबकि मथुरा या द्वारका में पुरातत्त्व से जुड़े साक्ष्य पा सकते हैं क्योंकि ये शासित प्रदेशों की राजधानी हुआ करती थीं।' वह कहते हैं कि इससे न तो गुडग़ांव के इतिहास और द्रोणाचार्य के साथ इसके संबंध की बात साबित होती है और न ही इसे खारिज किया जा सकता है। भीम नगर में मौजूद एक ही मंदिर द्रोणाचार्य के लिए पूरी तरह समर्पित है इसकी पुष्टि स्कूल के एक कार्यालय के बोर्ड पर लिखे गए, 'श्री गुरु द्रोणाचार्य निशुल्क शिक्षा केंद्र' से होती है। मैं इसे मंदिर के बजाय एक स्थानीय नेता का कार्यालय समझ रही थी।
मंदिर के परिसर में रहने वाले एकमात्र शख्स और पुजारी छोटे झा मेरी उपस्थिति और द्रोणाचार्य के बारे में मेरे सवालों को लेकर थोड़े गुस्से में नजर आते हैं। वह कहते हैं, 'वह पूरे ब्रह्मांड में पहले योद्धा थे। अमेरिका और भारत की अंतरिक्ष एजेंसी क्रमश: नासा और इसरो जो काम करती है वह उनकी ही विरासत है। हमारे पास जब सब कुछ है तब हमें शीतला माता जैसे मंदिरों की क्या जरूरत है?' झा की बातों को सुनकर मुझे एक हिंदू संशोधनवादी इतिहासकार पी एन ओक की लिखी बातें याद आती हैं जिनका दावा है कि ताज महल मूलत: एक शिव मंदिर (तेजो महालय) था और ऑस्ट्रेलिया हथियारों को रखने वाला निर्जन द्वीप था जिसे मूलत: 'अस्त्रालय' के नाम से जाना जाता था।
उस कथित तालाब की ऊंची-नीची जमीन पर जहां-तहां पेड़-पौधे उग आए हैं। इस जगह को देखकर इस बात का बिल्कुल भी अहसास नहीं होता है कि इस जगह का कोई धार्मिक महत्व भी है। एक सीढ़ी नीचे की तरफ एक खाली जमीन की ओर जाती है और यहां के दरवाजे का नाम बाबा खाटू श्याम द्वार है। यह दरवाजा 2013 में बनाया गया था जो एक सत्संग हॉल की तरफ जाता है लेकिन यहां लगे पट्ट पर भी द्रोणाचार्य के बारे में कुछ भी नहीं लिखा गया है। कम से कम जब एक महिला मेट्रो ट्रेन के आने पर गुरु द्रोणाचार्य स्टेशन का नाम लेती है तब तो लोगों के जेहन में यह नाम आता है।
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