अंदाज और मिजाज से कमेंट्री के सरताज | धु्व मुंजाल / April 20, 2016 | | | | |
पेशेवर क्रिकेट न खेलने के बावजूद अपनी अच्छी समझ के दम पर बने कमेंटेटर हर्षा भोगले की आवाज आईपीएल में खामोश कर दी गई है। बता रहे हैं धु्व मुंजाल
साल 2013 में जून के महीने की एक दोपहर और इंगलैंड में एजबेस्टन का मैदान, जहां आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में भारत ने इंगलैंड को मामूली अंतर से मात दी। बड़ी मेहनत से बनाए गए विराट कोहली के 43 रन और अश्विन की करिश्माई ऑफ स्पिन ने भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई। अंग्रेज खिलाडिय़ों को खेल के हर विभाग में मुंह की खानी पड़ी। मगर लक्ष्य का पीछा कर रहे इंगलैंड की पारी में निराश और हताश जेम्स ट्रेडविल जब अंतिम ओवर कर रहे अश्विन की आखिरी गेंद को तेजी से मारकर टेम नदी के पार पहुंचाना चाहते थे, तो रोमांच की पराकाष्ठïा पर पहुंचे उस मैच को केवल बेहतरीन क्रिकेट ही नहीं बल्कि अद्भुत कमेंट्री के लिए भी याद किया जाता है।
अश्विन और रवींद्र जडेजा की उंगलियों के नाच से सफेद कूकाबुरा गेंद पिच पर लहरा रही थी, जिसकी पहेली में एक के बाद एक अंगे्रज बल्लेबाज उलझते जा रहे थे, तभी पूर्व अंग्रेज कप्तान नासिर हुसैन ने हर्षा भोगले पर कमेंट्री बॉक्स में एक शिगूफा छेड़ा। हुसैन ने कहा, 'यह इंगलैंड है लेकिन स्टेडियम में भारत के समर्थकों की तादाद ज्यादा है और पिच पूरी तरह स्पिनरों की मदद कर रही है। यह हमारे आतिथ्य सत्कार को बखूबी बयां करता है।' बेहद शालीन और हमेशा चेहरे पर मुस्कान रखने वाले भोगले ने हुसैन के इस जुबानी बाउंसर को सीमा पार भेजने की मंशा के साथ कहा, 'हमने आपको अपने देश पर इतने वर्षों तक शासन करने दिया। बदले में आपको कम से कम इतना तो करना ही था।' स्वाभाविक था कि इसके बाद कमेंट्री बॉक्स में ठहाकों की गूंज गुंजायमान होनी ही थी। पूर्व अंग्रेज कप्तान झेंप के साथ हंसने पर मजबूर थे, वहीं भोगले की हंसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। पिछले दिनों इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की कमेंट्री ट्रीम में हैरतअंगेज रूप से जब उनका नाम हटा दिया गया तो भोगले के समर्थन में सोशल मीडिया पर यह वाकया खूब चर्चित और प्रचारित हुआ। भोगले कहते हैं, 'सब कुछ दुरुस्त था। मेरे टिकट बुक थे और मुझे रवाना भी होना था। मुझे नहीं मालूम कि क्या हुआ।'
ट्विटर पर भोगले को अभूतपूर्व समर्थन मिला, जो कम से कम ऐसे कमेंटेटर के लिए तो बेहद असामान्य था, जो किसी भी स्तर पर पेशेवर क्रिकेट न खेला हो। मगर चुटीले अंदाज वाले भोगले असाधारण हैं। उनकी सरल और अलहदा दर्जे की कमेंट्री शैली क्रिकेट के चाहने वालों के लिए इस खेल का जायका बढ़ाने वाली ही है। भोगले कहते हैं कि उन्हें मिले समर्थन से वह बेहद अभिभूत हैं लेकिन वह इस विवाद को और लंबा नहीं खींचना चाहते। इस 54 वर्षीय कमेंटेटर का कहना है, 'वास्तव में मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है। शायद यह कुछ ज्यादा ही खिंच गया है।'
आईपीएल कमेंट्री बॉक्स से भोगले के बाहर होने के पीछे तमाम कहानियां बुनी जा रही हैं, जिनमें अमिताभ बच्चन के साथ ट्विटर पर हुए पंगे से लेकर भारतीय टीम के वरिष्ठï खिलाडिय़ों की कड़ी आलोचना तक शामिल है। मगर क्रिकेट पर नजर रखने वाले तमाम जानकारों के अनुसार इनमें से कोई भी कहानी भरोसेमंद नहीं लगती। इसमें विदर्भ क्रिकेट संघ (वीसीए) के एक वरिष्ठï अधिकारी के साथ हुआ विवाद विश्वसनीय वाकया लगता है। यह पिछले महीने नागपुर में आईसीसी वल्र्ड टी 20 मैच के उद्घाटन मैच में मीडिया बॉक्स के भीतर दरवाजा खोलने से जुड़ा है। नाम न छापने की शर्त पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के एक अधिकारी बताते हैं, 'अधिकांश लोगों के लिए छोटी सी बात हो लेकिन जब बीसीसीआई के गढ़ (बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर नागपुर से ताल्लुक रखते हैं) में ऐसा होता है तो बोर्ड को महसूस होता है कि करारा जवाब देना जरूरी है।'
क्रिकेट लेखक अयाज मेमन ने तुरंत इसके बाद भोगले से संवाद किया। मेमन कहते हैं कि तमाम अन्य लोगों की तरह वह भी किसी एक चीज की ओर उंगली नहीं उठा सकते। मेमन का कहना है, 'उनका (भोगले का) व्यक्तित्व बहुत संतुलित है और वह ऐसे गर्ममिजाज शख्स नहीं हैं, जिसकी वजह से मुश्किल में पड़ जाएं। इस प्रकार के गंदे विवादों में फंसने वाले वह आखिरी शख्स होंगे। आजकल क्रिकेट कमेंट्री में विवादों से बिल्कुल दूर रहा जाता है। मुझे नहीं पता कि क्या चीज गलत हो गई।' हालांकि भोगले अभी भी सर्वत्र मौजूदगी दर्शा रहे हैं। गुरुवार को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में हल्के फुल्के अंदाज में लिखे अपने आलेख में उन्होंने बताया कि आईपीएल को स्टूडियो के बजाय पहली बार उसे अपने घर में आरामतलबी के साथ देखते हुए कैसा महसूस हो रहा है।
इस बीच ट्विटर पर उनकी विलक्षण क्रिकेट समझ के लगातार दर्शन हो रहे हैं। गुरुवार रात को गुजरात लॉयंस और राइजिंग पुणे सुपरजाइंट्स के बीच हुए मैच के दौरान उन्होंने महेंद्र सिंह धोनी की विकेट कीपिंग पर चिंता जाहिर की। बुधवार को उन्होंने रोहित शर्मा के ईडन गार्डंस के साथ खास अफसाने की चर्चा की। यहां तक कि उन्होंने सचिन तेंडुलकर के जीवन पर आधारित फिल्म के प्रचार में भी मदद की। वह ऐसे शख्स हैं कि उन्हें मुश्किल से ही परिदृश्य से अलग रखा जा सकता है।
पिछले दो दशकों के दौरान भोगले देश के किसी बड़े खिलाड़ी की ही तरह भारतीय क्रिकेट का पर्याय बन गए हैं, जो किसी कमेंटेटर के लिए कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद भोगले ने आकाशवाणी के लिए क्रिकेट मैचों की कमेंट्री शुरू की। वर्ष 1991 में भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए उन्हें ऑस्ट्रेलिया ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन से रेडियो भूमिका की पेशकश की गई। बाद में 1996 और 1999 के विश्व कप के लिए वह बीबीसी की कमेंट्री टीम का भी हिस्सा रहे।
मगर नई सदी में भोगले का नाम भी नईं ऊंचाई छूने लगा। जल्द ही वह हर जगह नजर आने लगे। मसलन टीवी शो, कमेंट्री बॉक्स, प्रश्नोत्तरी स्पर्धाओं, किताबों के आवरण और विश्वविद्यालयों में प्रेरक भाषण देने में। 2000 के दशक की शुरुआत में उनके साथ ईएसपीएन-स्टार स्पोट्र्स के लिए काम कर चुके एक पूर्व सहकर्मी बताते हैं, 'वह हवा के ताजे झोंके के मानिंद थे। वह एकदम तार्किक बातें करते थे। बस आप उन्हें मंत्रगुग्ध होकर सुनना चाहते थे। भारतीय दर्शकों के लिए वे ऐसे थे, जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं देख था।' बेहद सीमित क्रिकेट की पृष्ठïभूमि वाले भोगले ऐसे वर्ग से ताल्लुक रखने वाले कमेंटेटर हैं, जो वर्ग अब अवसान की ओर है। उनसे पहले नरोत्तम पुरी, किशोर भिमाणी और अनुपम गुलाटी जैसों का नाम शामिल होता है। अब कमेंट्री की दुनिया में किसी भी गैर क्रिकेटर के लिए जगह बनाना असंभव सी बात हो गई है।
कुछ मामलों में यह किसी बाहरी की कहानी है, जिसने अतीत में भारतीय क्रिकेट के कुछ बेहद मजबूत पूर्वग्रहों को ध्वस्त करते हुए अपनी एक असाधारण विरासत बनाई। नाम न छापने की शर्त पर एक प्रसारक बताते हैं, 'यहां ऐसा शख्स था, जो गुमनामी से भारतीय क्रिकेट प्रसारण का केंद्र बिंदु बन गया। अन्य लोग सिर्फ देख ही सकते थे। अचानक ही ऐसे लोगों की बाढ़ आ गई जो सिर्फ हर्षा भोगले बनना चाहते थे।'
कुछ लोगों का मानना है कि यह 'बाहरी' ठप्पा फिर उनकी मुश्किल बढ़ाने आ गया है। क्रिकेट इतिहासकार बोरिया मजूमदार बताते हैं, 'अगर यही हरकत किसी पूर्व क्रिकेटर ने की होती तो बीसीसीआई की ऐसी कार्रवाई पर मुझे हैरानी होती। शेन वॉर्न का मार्लन सैमुअल्स से काफी तल्ख विवाद हो गया लेकिन किसी के पास उन पर काईवाई की हिम्मत नहीं थी।' आईपीएल से भोगले को बाहर करना और भी ज्यादा हैरान इसलिए करता है कि इस साल की शुरुआत में हुई आईपीएल नीलामी में वही सूत्रधार बने थे।
एक साथी कमेंटेटर कहते हैं, 'वह एक स्थापित शख्स रहे हैं। वह निष्पक्ष हैं लेकिन जानते हैं कि उनकी सीमा कहां तक है। मैं आश्वस्त हूं कि यह महज कुछ समय की ही बात है।' अतीत में भोगले की बातों ने थोड़ा ही सही लेकिन भारतीय क्रिकेट टीम के चयन को भी प्रभावित किया। असहमति के स्वर अगर बीसीसीआई को इतने नागवार गुजरते हैं तो इस मौके पर कार्रवाई करने की क्या तुक बनती है। वास्तव में कई दफा, यहां तक कि विवादित डीआरएस के मसले पर भी उन्होंने बोर्ड के रुख से उलट दृष्टिïकोण रखा।
माइक के अलावा कलम से भी भोगले ने खासा कमाल किया है। वर्ष 2011 में अपनी पत्नी अनीता के साथ मिलकर वह प्रबंधन पर 'द विनिंग वे' नाम से किताब लिख चुके हैं। इसके अलावा भोगले ने भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन की जीवनी भी लिखी है। पिछले साल दिल्ली आए गूगल के सीईओ सुंदर पिचई के छात्रों के साथ प्रश्नोत्तर सत्र का संचालन भी भोगले ने ही किया था।
तमाम क्रिकेट प्रशंसकों के लिए भोगले भारतीय क्रिकेट से जुड़ी प्रिय शख्सियतों में से एक हैं। ट्विटर पर एक प्रशंसक कहते हैं, 'कमेंट्री बॉक्स में भोगले का न होना, ऐसा है मानो सचिन बल्लेबाजी की शुरुआत करने के लिए न जा रहे हों।' जो लोग कमेंट्री बॉक्स में भोगले की कमी शिद्दत से महसूस कर रहे हों, उनके लिए एक और मंच हाजिर है और उस मंच का नाम है-ट्विटर। फिलहाल वे ट्विटर पर भी 'भोगले की दुनिया' से रूबरू हो सकते हैं।
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