उत्सव के बाद करकट | मानवी कपूर / March 23, 2016 | | | | |
हाल में कार्यकर्ताओं ने यमुना खादर से कचरे की सफाई की जो तीन दिन तक चले विश्व संस्कृति महोत्सव के दौरान जमा हो गया था। हालांकि अब नदी तट को नुकसान के संकेत दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन इस क्षेत्र से इस कार्यक्रम की छाप को पूरी तरह मिटाना मुश्किल होगा
किसी रास्ते से एक साथ गुजर रहे कई ट्रक और मोटरसाइकिल ही नहीं बल्कि हवा का एक हल्का झोंका भी धूल के बादलों को उड़ा सकता है। जहां तक आंखें देख सकती हैं वहां तक हल्का भूरा क्षेत्र नजर आता है और कई जगहों पर निर्माणाधीन फ्लाईओवर की वजह से कहीं-कहीं यह क्षेत्र ओझल हो जाता है। यहां से आने वाली गंध इलाहाबाद के संगम का अहसास कराती है। नई दिल्ली में यमुना तट की करीब 1,000 एकड़ जमीन पर पिछले से पिछले सप्ताह आर्ट ऑफ लिविंग का विश्व संस्कृति महोत्सव हुआ था। इसे संगम बताने वाली केवल मैं ही नहीं हूं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 मार्च को ट्वीट किया था कि यह महोत्सव संस्कृतियों का कुंभ मेला है।
ऑर्ट ऑफ लिविंग के आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर को पर्यावरण उल्लंघन के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ा। जब पारिस्थितिकी के लिहाज से एक संवेदनशील क्षेत्र में इतना बड़ा कार्यक्रम होगा तो पर्यावरण का नुकसान होना लाजिमी है। कहा जा रहा है कि इस कार्यक्रम में करीब 35 लाख लोगों ने शिरकत की थी।
हालांकि अधिकरण ने कहा था कि इस जमीन को 120 करोड़ रुपये तक का नुकसान हुआ है और इसलिए उसने आर्ट ऑफ लिविंग पर 'पर्यावरण हर्जाने' के रूप में 5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। हालांकि आर्ट ऑफ लिविंग ने बार-बार यह कहा था कि इस कार्यक्रम से नदी या तट को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन इस कार्यक्रम की विशालता एक अलग ही कहानी बयां करती है। सात एकड़ में बने मुख्य स्टेज तक पहुंचने का लंबा रास्ता अनगिनत गड्ढों की वजह से और लंबा हो गया।
11 मार्च को शुरू हुए तीन दिवसीय कार्यक्रम के पहले ही दिन भारी बारिश हुई, जिससे पूरे क्षेत्र में कीचड़ हो गया। इस कार्यक्रम के दो दिन बाद जब मैं वहां पहुंची तो मेरे पैरों के नीचे मिट्टी रेत की तरह नरम महसूस हुई। मैं झाडिय़ों और छोटे पेड़ों से गुजरी तो वे वीरान नजर आए। स्थानीय बाशिंदों के मुताबिक प्रवेश द्वार से अंदर जाने के रास्ते में बहुत सी झाडिय़ां और पेड़ थे। इस रास्ते का एक हिस्सा पक्का है, जबकि शेष में कुछ हिस्से में रेतीली मिट्टी और कुछ जगहों पर कीचड़ नजर आया। मुख्य स्थान पर अनगिनत मजदूर बड़े स्टेज को और कई अन्य टीन शेड को हटाने में व्यस्त दिखे। जूस के पैकेट और उलटी पड़ी हुईं फूड ट्रे जमीन को रंगीन बना रही थीं। यह जमीन घास से नहीं बल्कि अनगिनत कालीनों से हरी थी। जहां कालीनों को समेट दिया गया था वहां लंबी पॉलिथीन की शीट फडफ़ड़ा रही थी जिनका इस्तेमाल कालीनों और उन पर बैठने वाले लोगों को बारिश से बचाने के लिए किया गया था।
सफाई का ठेका लेने वाली कंपनी बीवीजी के मजदूर काम के बीच कुर्सियों पर आराम ले रहे थे। इस स्थान के प्रोजेक्ट लीड रवि शंकर के मुताबिक बीवीजी के 100 से अधिक कर्मचारियों को सफाई की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने कहा कि आर्ट ऑफ लिविंग के बहुत से स्वयंसेवकों ने उन्हें कचरा एकत्रित करने में मदद दी है।
एक प्रेस विज्ञप्ति में आर्ट ऑफ लिविंग ने कहा कि सफाई के लिए स्वयंसेवक 24 घंटे काम कर रहे थे। हालांकि ठेकेदारों का कहना है कि आमतौर पर स्वयंसेवक 10 बजे आते हैं और शाम 4 बजे चले जाते हैं। मैं दो दिनों तक अलग-अलग समय इस स्थान पर गई, लेकिन मुझे आर्ट ऑफ लिविंग का कोई भी स्वयंसेवक नहीं दिखा।
चुनौती के लिए तैयार
बीवीजी के कामगारों के सामने बड़ी चुनौती है। आध्यात्मिक नेता के नामराशि मेहमानों को खाना खिलाने के लिए इस्तेमाल किए गए टिन शेड की ओर इशारा करते हुए कहा, 'अगर संभव होता तो हम 10 दिन में सफाई का काम पूरा कर देते। इतने बड़े पैमाने पर ढांचा खड़ा होने से हमारे काम में देरी हो रही है।' खाने के बहुत से छोटे टिकट इधर-उधर बिखरे पड़े थे जिनमें से बहुत से नरम मिट्टी में धंस गए थे। हालांकि जमीन की सतह पर पड़े कचरे की सफाई करना आसान है, लेकिन मिट्टी में धंस गए कचरे को निकालना मुश्किल लग रहा था। हालांकि ऐसा लगा कि कामगारों पर ऐसे सवालों का कोई असर नहीं पड़ा है। उन्होंने आत्मविश्वास से कहा, 'हम सब कुछ सही कर देंगे।'
जैसे ही मैं आगे बढऩे वाली थी, एक रूसी दंपती अपने खोए पासपोर्ट के बारे में पता करने के लिए बीवीजी के कर्मचारियों के पास आए। उन्होंने बताया, 'अब तक (पासपोर्ट खोने से पहले तक) इस फेस्टिवल में आना आनंदमय रहा।' आर्ट ऑफ लिविंग के प्रति समर्पण और 'लव फॉर इंडिया' से उसे कोई भी चीज दूर नहीं कर सकती। उन्होंने कहा, 'हम जानते थे कि साफ-सफाई का स्तर अच्छा नहीं होगा, इसलिए हम पहले से मानसिक रूप से तैयार थे।'
स्टेज के पास बाकी काम चुनौतीपूर्ण नजर आ रहा था। यह बड़ी बुनियादी ढांचागत परियोजना की निर्माण साइट जैसा नजर आ रहा था। इस जगह के बीच में से खड़े होकर जब स्टेज को देखते हैं तो यह ठीक वैसा ही नजर आता है, जैसा गंगा में नाव से वाराणसी के घाट नजर आते हैं। कुछेक स्थानीय निवासी स्टेज पर चढ़कर नजारा देखने का लुत्फ उठा रहे हैं। एक ने हंसते हुए कहा, 'कौन जानता है कि कब हमें यमुना को इतनी ऊंचाई से देखने का मौका मिले?'
हालांकि सभी ने इस बात से सहमति जताई कि इस भूरी जमीन पर काफी पेड़-पौधे थे, लेकिन उनकी आवाज में गर्व का एक अजीब अहसास था। उन्होंने कहा, 'आप भले ही कुछ भी कहें, लेकिन भारत को प्रसिद्ध बनाने में हम इस बाबा पर संदेह नहीं कर सकते।' हालांकि उनमें से किसी को भी उनका नाम नहीं पता था और न ही वे यह जानते थे कि आर्ट ऑफ लिविंग क्या करता है। कामगारों का एक समूह कुर्सियों और सोफा को इकट्ठा करने और वहां खड़े ट्रकों में चढ़ाने में व्यस्त था।
कामगारों का एक अन्य समूह हथौड़ों से स्टेज को तोडऩे का काम कर रहा है। मैंने देखा कि उनमें से कुछ किसी मकसद से आकाश की ओर देख रहे थे। जब मैंने भी देखने की कोशिश की तो मुझे इस कार्यक्रम के लिए लगाए गए बड़े लैंप पोस्ट दिखे। कामगार लोग लंबी सीढिय़ों पर चढ़कर भारी फ्लडलाइटों को उतार रहे थे, लेकिन उनमें से एक ने भी मजबूत टोपी नहीं पहनी थी। जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का एक पांच सदस्यीय दल टोह लेने के लिए उस स्थान पर आया हुआ था। उन अधिकारियों में से एक ने मुझे कहा कि वह मुख्य रूप से कचरे के निस्तारण को देखने के लिए आए थे। वह कामगारों के लिए सुरक्षा का इंतजाम न होने से चिंतित नजर आए।
वह कहते हैं, 'मेरा मानना है कि काफी क्षेत्र साफ कर दिया गया है और कम से कम सफाई के लिहाज से भूमि को कोई नुकसान नहीं दिखाई दे रहा है।' हालांकि पारिस्थितिकी के लिहाज से उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, 'यमुना पहले जैसी दिखाई दे रही है, इसलिए उन्होंने कम से कम यहां कचरा नहीं डाला।'
लेकिन नदी की सफाई से ज्यादा नुकसान हुआ है। पर्यावरण कार्यकर्ता और एक एनजीओ स्वेच्छा के कार्यकारी निदेशक विमलेंदु झा कहते हैं, 'मानवीय हस्तक्षेप एक क्षेत्र की प्राकृतिक अवस्था को कभी नहीं लौटा सकता। इस जमीन का ऐसा संवेदनहीन इस्तेमाल जनता के लिए पारिस्थितिकी और सार्वजनिक संसाधनों के लिहाज से नुकसानदेह है क्योंकि इन संसाधनों का इस्तेमाल नुकसान की भरपाई के लिए किया जाएगा।' उन्होंने कहा, 'इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि घास के मैदानों को साफ किया गया और दलदली भूमि में कंक्रीट डाला गया। ऐसी जमीन पर कंक्रीट का इस्तेमाल यह दर्शाता है कि आयोजकों ने पारिस्थिति पर सहूलियत को कैसे तरजीह दी।' मैं जैसे ही टेंटों के एक ठेकेदार से मिलने के लिए आगे बढऩे लगी तो सार्वजनिक पेशाबघर की बदबू से मुझे नाक बंद करनी पड़ी। जैसे ही मैंने आगे देखा तो पाया कि स्टेज से काफी दूर पोर्टेबल शौचालय पंक्तिबद्ध थे।
ठेकेदार ने मुझे बताया कि विभिन्न एजेंसियों और विभागों के करीब 1,000 लोग सफाई में लगे हुए हैं और इस पूरे ढांचे को हटाने में करीब एक महीना लगेगा। उनके मुताबिक यह जमीन दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की है और उसने जमीन की सुपुर्दगी की कोई डेडलाइन नहीं दी है।
जब मैं दो दिन बाद दोबारा इस जगह आई तो फैली गंदगी के स्तर में काफी सुधार नजर आया। एसपीएमएल के ट्रक कचरे को भरकर बाहर ले जा रहे थे। एसपीएमएल दिल्ली की बुनियादी ढांचागत कंपनी है, जिससे आर्ट ऑफ लिविंग ने करार किया था। अब यह जमीन हरी के बजाय काली दिख रही थी क्योंकि ज्यादातर कालीन हटा दिए गए और इस स्थान पर थोड़े से सोफे दिखाई दे रहे थे।
भोजन कक्ष के टिन शेड की छत हटा दी गई थी, लेकिन ढांचा अभी नहीं हटा था। मुझे ऐसा लगा जैसे कि स्टेज को ढहाने में भी कुछ प्रगति हुई है। पहले जहां गीली मिट्टी में लोगों के पैरों के निशान होते थे, वहां अब विभिन्न वाहनों के टायरों के निशान दिखे। ये वाहन इस यमुना तट से विभिन्न भारी सामान लेकर जा रहे थे। झा कहते हैं, 'दिल्ली को अपना 20 फीसदी पेयजल इस क्षेत्र से मिलता है। अगर हम सावधान नहीं रहे तो हमें चेन्नई जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा।' ऐसा लगता है कि अब 7 एकड़ में बना मंच ही सफाई का केंद्र बिंदु बन गया है।
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