गरीबी रेखा को लेकर नीति आयोग सचेत | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली March 18, 2016 | | | | |
गरीबी रेखा को लेकर नैशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफार्मिंग इंडिया (नीति) आयोग सावधानीपूर्वक कदम उठा रहा है। इसे लेकर पूर्व की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की खासी किरकिरी हुई थी। गरीबी का आकलन करने के लिए गठित कार्यबल राज्यों के साथ विचार विमर्श के बाद अगले छह महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। कार्यबल को गरीबी उन्मूलन की रूपरेखा भी बनानी है। सूत्रों ने कहा कि आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगडिय़ा के नेतृत्व वाला कार्यबल सुरेश तेंडुलकर समिति की सिफारिशों या रंगराजन समिति की सिफारिशों के आधार पर या पूरी तरह से नए तरीके से गरीबी रेखा के आकलन की सिफारिश कर सकता है।
उन्होंने कहा कि गरीबी रेखा तय करने में किस तरीके का इस्तेमाल किया जाए, इसे लेकर कार्यबल में एक राय नहीं है। बहरहाल कार्यबल ने कई कदमों के सुझाव दिए हैं, जिसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), मध्यावधि भोजन योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), सबके लिए आवास जैसे गरीबी के खिलाफ चलाए जाने वाले कार्यक्रम शामिल हैं। नीति आयोग का मानना है कि इससे ग्रामीण इलाकों से गरीबी दूर करने मेंं खासी मदद मिलेगी। सूत्रों ने कहा कि इसमें कहा गया है कि अगर टिकाऊ आधार पर रोजगार केंद्रित आर्थिक विकास हो, तभी गरीबी कम हो सकती है।
सूत्रों ने कहा कि कार्यबल इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि गरीबों की संख्या के अनुमान के लिए गरीबी रेखा जरूरी है। इसकी मदद से ही अलग अलग विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाने के बारे में फैसला किया जा सकता है। इससे आगे कदम बढ़ाते हुए कार्यबल का मानना है कि चार विकल्प हैं, जिसका गरीबी का आकलन करने के लिए इस्तेमाल हो सकता है- तेंडुलकर गरीबी रेखा, रंगराजन समिति, या अन्य उच्च ग्रामीण और शहरी गरीबी रेखा, निचले तबके की 30 प्रतिशत आबादी की स्थिति पर नजर रखने और प्रगति की जानकारी हासिल करने का तरीका शामिल है। आखिरी दो विकल्प गरीबी रेखा का इस्तेमाल कर गरीबी के आकलन के बाद पूरक कदम हैं, इसलिए वे विकल्प नहीं बन सकते। इसके पहले योजना आयोग ने गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए शहरी इलाकों में 33 रुपये और ग्रामीण इलाकों में 27 रुपये तक रोजाना कमाने वालों को गरीबी रेखा के नीचे रखा था।
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