नए जमाने के गुरु श्री | निकिता पुरी / March 11, 2016 | | | | |
जब वह स्कूल में थे तभी से रवि शंकर रत्नम को पता था कि उन्हें गुरु बनना है। उनकी मां उनसे दूसरे बच्चों के साथ फुटबॉल खेलने के लिए कहतीं तो वह उनसे कहते कि वह अपने पैरों से किसी भी चीज को चोट नहीं पहुंचा सकते और इसके बजाय उन्हें ध्यानमग्न होकर समय बिताना हमेशा से ही पसंद था। चार साल की उम्र से ही उन्हें भगवद् गीता के कुछ श्लोक याद थे और वह उन्हें दोहराया करते थे और अब यही बालक सफेद कपड़े पहने एक ऐसा व्यक्ति बन चुका है जिसे इस स्वार्थी दुनिया से मुकाबला करना भाता है।
उनके अनुयायियों की बड़ी तादाद का एक कारण प्रवीण चोपड़ा बताते हैं कि वह दिल से बात करते हैं, चोपड़ा इस चर्चित गुरु के साथ तिरुपति में आधुनिक ध्यान का अध्ययन कर रहे हैं। महर्षि महेश योगी की देखरेख में पले बढ़े रवि शंकर उन दिनों शर्मीले और चुपचाप रहने वाले व्यक्ति थे। महर्षि महेश योगी द् बीटल्स के आध्यात्मिक सलाहकार भी थे। लाइफ पॉजिटिव मैग्जीन के संस्थापक-संपादक और कई सामुदायिक प्रकाशनों के संपादक अमेरिका में रहने वाले चोपड़ा का कहना है, 'वह उस वक्त तक वह सिर्फ रविशंकर थे। महर्षि ने उन्हें चुना क्योंकि वह आधुनिक शिक्षा और वेदों के अध्ययन का अनोखा संगम थे।'
ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन के संस्थापक महर्षि रवि शंकर को इस आंदोलन के मुख्यालय स्विट्जरलैंड ले गए। चोपड़ा का कहना है, 'इसके बाद वह लगातार बढ़ते गए। रवि शंकर ने समय को पीछे छोड़ दिया और श्री श्री रविशंकर के तौर पर उभरकर सामने आए।' आज बेंगलूरु के ऑर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के पास संभवत: 18.4 करोड़ रुपये की संपत्ति है। करीब 151 देशों के करीब 30 करोड़ लोग उनके 'हिंसा मुक्त, परेशानी मुक्त समाज' की अवधारणा को मानते हैं। श्री श्री के ट्विटर फीड पर सरसरी निगाह डालने से आपको पता चलता है कि उन्हें यमुना के किनारे विश्व सांस्कृतिक सम्मेलन में 155 देशों से करीब 20,000 मेहमानों के आने की उम्मीद है और जो लोग उन पर भरोसा करते हैं उनके लिए वह किसी दैवीय शक्ति से कम नहीं हैं।
उनके एक अनुयायी ने हाल ही में कहा कि प्रत्येक जीवित प्राणी ने उनके गुरु के प्रयासों की वजह से जीवन और घर पाया है। एक स्त्री रोग प्रसूति विशेषज्ञ लिखती हैं, 'प्रणाम गुरुजी, मेरी बेटी को एक प्यारा बच्चा देने के लिए धन्यवाद।' ऐसे तमाम लोग अभी भी ट्विटर पर मौजूद हैं जो ट्विटर पर हैं ही इसीलिए ताकि वे उन बातों को रिट्वीट कर सकें जो गुरुजी कहते हैं। ट्विटर पर उनके 14.2 करोड़ फॉलोअर हैं और गुरु खुद किसी को फॉलो नहीं करते हैं। जब उनसे नाम से पूर्व श्री श्री लगाए जाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऐसा जाने माने सितारवादक रविशंकर के नाम की वजह से होने वाले संदेह से बचने के लिए किया और 108 का इस्तेमाल बहुत सारे श्री करते हैं। खबर यह भी आई थी कि जब जानेमाने सितारवादक रविशंकर की मृत्यु हो गई तो कई टीवी चैनलों ने आध्यात्मिक गुरु रविशंकर की तस्वीर का इस्तेमाल किया।
शर्मीले स्वभाव के रविशंकर अब ऐसे गुरु बन गए हैं तो सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर बात करते हैं- जाट समुदाय के लोगों से बात करने लेकर उनसे देश की संपत्ति को नुकसान न पहुंचाने की अपील करने तक और शनि शिंगणापुर मंदिर प्राधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रही महिलाओं की तरफ से मध्यस्थता करने तक उन्होंने कई बार अपनी मौजूदगी का अहसास कराया। यमुना के बाढ़ के मैदानों पर उनके आयोजन को राष्टï्रीय हरित पंचाट द्वारा सवाल उठाए जाने और नदी में किए बदलावों के लिए जुर्माना लगाने को लेकर उनके बयान एक गुरु के तौर पर अशोभनीय जरूर लगे। उन्होंने कहा, 'जो लोग इस आयोजन को लेकर हो-हल्ला मचा रहे हैं, उनके लिए मेरा एक सवाल है। आपने बाटला हाउस पर पर्यावरण को लेकर कोई चिंता क्यों जाहिर नहीं की? राष्टï्रमंडल खेल गांव भी तो यहीं बनाया गया..दो गलत चीजें किसी चीज को सही नहीं ठहरा सकती हैं लेकिन मैं यही कहना चाहता हूं कि अचानक शुरू हुए इस विरोध के पीछे मंशा कुछ और ही है।' उन्होंने यह भी कहा कि वह जेल चले जाएंगे लेकिन एक भी पैसा जुर्माना अदा नहीं करेंगे।
पुरस्कारों और सम्मानों से इतर नए जमाने के इस गुरु में राजनेताओं के गुण भी हैं। इसी साल पद्म भूषण से सम्मानित किए गए रविशंकर के नाम पर कोलंबिया में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी चर्चा हो रही है। उनकी दिलचस्पी कारोबार में भी दिखती है। स्वतंत्र पत्रकार संजय आष्टïा ने कई वर्ष पहले गुरु से मुलाकात की थी वह मुख्य रूप से सुदर्शन क्रिया के बारे में बात करते हैं जो एओएल की श्वसन तकनीक है। आष्टïा कहते हैं, 'वह इसे नए ढंग से पेश करते हैं लेकिन मेडिटेशन या ध्यान लगाना ऐसा मामला है जो पीढिय़ों से हमें विरासत में मिला है, आप किस तरह ऐसी किसी ऐसी चीज पर अपना कॉपीराइट जता सकते हैं।' दिलचस्प बात यह है कि श्री श्री के गुरु महर्षि महेश योगी ने भी ध्यान की अपनी तकनीक का कॉपीराइट कराया था। आंतरिक शांति भी हमेशा नि:शुल्क हो, यह जरूरी नहीं है।
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